जनार्दन पाण्डेय “नाचीज़” की कविता; छोड़ो यार भाड़ में जाये!
किसको इतनी फ़ुर्सत है जोहर मुश्किल में रोये गाये।छोड़ो यार भाड़ में जाये। हम चर्वाक नहीं पर हमनेमस्ती…
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Read Moreअतुल्य भारत चेतना मैं मिट्टी हूंलोग कहते हैंमेरा कोई मूल्य नहींपर मैं कहता हूंमैं मिट्टी हूंऔर मेरा ही…
Read Moreअतुल्य भारत चेतना पुराण कहते हैं कि सभी पातकी जीव यावज्जीवन अपनी सामर्थ्य से अधिक शक्ति लगाकर भी…
Read Moreअतुल्य भारत चेतना महामाया कर दे कृपा जगदम्बआया हूं द्वार तेरे कर पार मुझे अविलंबमाया मोह के इस…
Read More23 March (शहीदी दिवस) पर आत्मावलोकन का एक गीत गीत तुम्हारे गाते हैं पर रीत निभाना भूल गएफूल…
Read Moreअतुल्य भारत चेतना पेड़न पात पुरान तज्योंअरु नूतन कोपल बेल सजायों।खेतन फूलि गई सरसोंअरु आमन बौर सुगन्ध उडायों।सेज…
Read Moreअतुल्य भारत चेतना जलमैं जल हूंजलता हूं जगह जगहइसीलिए जन मुझेजल कहते हैंकहीं जलता हूं मैंअग्नि की ताप…
Read Moreशर्म आनी चाहिए इस देश को अगर इस देश में होली का त्यौहार और जुमे की नमाज़ एक…
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