अतुल्य भारत चेतना
पतित यादव
छुईहा/छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ का पहला और प्रमुख त्यौहार हरेली, जो हरियाली और खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है, के पावन अवसर पर ग्राम पंचायत छुईहा में पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन को बढ़ावा देने के लिए एक भव्य पौधारोपण और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस वर्ष हरियाली अमावस्या की थीम “प्लास्टिक प्रदूषण को हराएँ” के तहत, ग्राम पंचायत छुईहा की सरपंच एस. कुमारी प्रीतम यादव के नेतृत्व में छुईहा से सोनदादर मुख्य रोड पर “एक पेड़ माँ के नाम” अभियान के अंतर्गत लगभग 50 पौधों का रोपण किया गया। इस आयोजन ने पर्यावरण संरक्षण और प्लास्टिक कचरे को कम करने की दिशा में एक सशक्त संदेश दिया।

कार्यक्रम का विवरण
हरेली त्यौहार, जो सावन माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है, छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और कृषि परंपराओं का प्रतीक है। इस अवसर पर ग्राम पंचायत छुईहा में आयोजित पौधारोपण कार्यक्रम में ग्रामीणों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। सरपंच एस. कुमारी प्रीतम यादव और सरपंच प्रतिनिधि प्रीतम यादव के मार्गदर्शन में, छुईहा से सोनदादर मुख्य रोड पर विभिन्न प्रजातियों के फलदार और छायादार पौधे रोपे गए। इस कार्यक्रम का उद्देश्य न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना था, बल्कि सिंगल-यूज प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के लिए जागरूकता फैलाना भी था।

प्रमुख उपस्थिति और सहभागिता
कार्यक्रम में ग्राम समिति के अध्यक्ष, सदस्यगण, समाजसेवी, पत्रकार, जनप्रतिनिधि, और ग्राम पंचायत छुईहा परिवार की सक्रिय भागीदारी रही। प्रमुख व्यक्तियों में शामिल थे:
इसे भी पढ़ें : Shiv Mandir Lucknow; लखनऊ स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिर और उनकी महिमा
निर्मल ठाकुर, पीताम्बर यादव, गोपाल चक्रधारी, शिव कुमार यादव, बालेश दीवान, धनेश्वर दीवान, हरेश निषाद, मुकेश सिन्हा, नागेश नागवंशी, भेखराम दीवान, महेंद्र दीवान, देवेंद्र यादव, ओगेश ठाकुर, कौशल दीवान, पीताम्बर दीवान, लोकेश ठाकुर, नितेश ठाकुर, डालेश्वर ठाकुर

इनके साथ ही समस्त ग्रामवासियों ने उत्साहपूर्वक पौधारोपण में भाग लिया और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया। ग्राम पंचायत छुईहा परिवार, जो पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक सेवा के लिए समर्पित है, ने इस अवसर पर महत्वपूर्ण योगदान दिया।
पर्यावरण संरक्षण और प्लास्टिक प्रदूषण पर जोर
इस वर्ष हरेली पर्व की थीम “प्लास्टिक प्रदूषण को हराएँ” के अनुरूप, कार्यक्रम में सिंगल-यूज प्लास्टिक के दुष्प्रभावों और इसके उपयोग को कम करने के उपायों पर चर्चा की गई। सरपंच श्रीमती एस. कुमारी प्रीतम यादव ने उपस्थित ग्रामीणों से अपील की कि वे प्लास्टिक कचरे को कम करने और पौधों की देखभाल को अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझें। उन्होंने कहा, “पेड़ हमारा वर्तमान और भविष्य हैं। हमें न केवल पौधे लगाने हैं, बल्कि उनकी देखभाल भी करनी है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ और हरित पर्यावरण मिले।”
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
हरेली त्यौहार छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और कृषि परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है। इस दिन ग्रामीण अपने कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं, गाय-बैलों को नहलाकर उनकी सेवा करते हैं, और छत्तीसगढ़ी व्यंजन जैसे गुड़ का चीला, ठेठरी, खुरमी, और गुलगुल भजिया बनाकर उत्सव मनाते हैं। इस वर्ष, पौधारोपण के साथ-साथ ग्रामीणों ने गेड़ी चढ़ने, कबड्डी, और सावन झूला जैसे पारंपरिक खेलों का भी आनंद लिया, जिसने कार्यक्रम में उत्साह और उमंग को दोगुना कर दिया।
सामाजिक प्रभाव और भविष्य की दिशा
यह पौधारोपण और जागरूकता कार्यक्रम न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि ग्रामीण समुदाय में एकता और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना को भी मजबूत करता है। ग्राम पंचायत छुईहा के इस प्रयास ने अन्य ग्राम पंचायतों और समुदायों के लिए एक प्रेरणादायी उदाहरण प्रस्तुत किया है। ग्रामीणों ने संकल्प लिया कि वे न केवल रोपे गए पौधों की देखभाल करेंगे, बल्कि अपने दैनिक जीवन में प्लास्टिक का उपयोग कम करने के लिए भी प्रयास करेंगे।
इसे भी पढ़ें : गर्मी में कूलर को बनाएं AC : आसान हैक्स और टिप्स
ग्राम पंचायत छुईहा की सरपंच श्रीमती एस. कुमारी प्रीतम यादव ने कहा, “हरेली का यह पर्व हमें प्रकृति के साथ हमारे गहरे जुड़ाव को याद दिलाता है। हमारा यह छोटा सा प्रयास पर्यावरण संरक्षण और प्लास्टिक मुक्त भारत की दिशा में एक बड़ा कदम है।”

इसे भी पढ़ें : ब्रेस्ट कैंसर से जूझ रही हिना खान बनीं कोरिया टूरिज्म की ब्रांड एंबेसडर
हरेली त्यौहार के अवसर पर छुईहा ग्राम पंचायत में आयोजित “एक पेड़ माँ के नाम” पौधारोपण कार्यक्रम पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक उत्सव का एक अनूठा संगम रहा। इस आयोजन ने न केवल ग्रामीणों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया, बल्कि प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने और हरियाली बढ़ाने की दिशा में एक ठोस कदम भी उठाया। ग्राम पंचायत छुईहा का यह प्रयास छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करते हुए पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी को बढ़ावा देने का एक प्रेरणादायी उदाहरण है।