23 March (शहीदी दिवस) पर आत्मावलोकन का एक गीत
गीत तुम्हारे गाते हैं पर रीत निभाना भूल गए
फूल चढ़ाना याद रहा पर क़सम उठाना भूल गए
राजगुरु सुखदेव भगत सिंह हम तेरे अपराधी हैं
हम तेरे सपनों का हिन्दुस्तान बनाना भूल गए
हम सैंतालिस से ही आपस के झगड़ों में उलझे हैं
मुँह में अल्ला राम रखें और छुरी बगल में रखते हैं
कहने को तो देश हैं लेकिन सच तुमसे भी छुपा नहीं
हम टुकड़ों में बँटे हुए कुछ ख़ुदगर्ज़ी के पुतले हैं
हमको बाँट के हमलावर ने जो दीवार बनाई थी
उसकी पहरेदारी की, दीवार गिराना भूल गए
इतना मेरा-तेरा है कि इक दूजे को ठोक दें हम
चले हमारा बस तो दूजों की साँसें भी रोक दें हम
उत्तर-दक्षिण, अगड़े-पिछड़े, हिन्दी-उर्दू, तू, वो, मैं
एक दूसरे से भिड़ने में जान भी अपनी झोंक दें हम
तुमने बोला था हम सारे एक हैं तब ही भारत हैं
हम अपने बच्चों को इतनी बात बताना भूल गए
-प्रबुद्ध सौरभ
(साहित्यकार, गीतकार एवं फिल्म पटकथा लेखक)