Breaking
Thu. Apr 24th, 2025

मृत्यु के बाद भी सम्बन्धों की अटूट कड़ी हैं, ‘पितृपक्ष’

By News Desk Sep 30, 2023
Spread the love

अतुल्य भारत चेतना
अमिता तिवारी ‘प्रेरणा’
विशेष रिपोर्ट

ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।
ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च,
नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।

सनातन संस्कृति में हमारे उन पुरखों की भी विशेष मान्यता होती है, जो स्वर्ग की अनंत यात्रा पर निकल चुके हैं, अर्थात जिन्होंने इस मृत्युलोक में अपना देह त्याग दिया है, और वैकुण्ठ की ओर प्रस्थान कर चुके हैं।

सनातन संस्कृति के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा से आरंभ होकर अश्विन मास अमावस्या तक अर्थात 16 दिनों तक ‘पितृपक्ष’ के दिन रहते हैं, जिसमें कुल 16 तिथियाँ होती हैं। इन दिनों को पितरों का दिन कहा जाता है। इन्हीं पितरों की स्मृति या उनकी याद में सनातनी उनके श्राद्ध कर्म से संबंधित सभी कर्म-कांड पितृपक्ष में करते हैं। पितृपक्ष में पितरों की तिथि के अनुसार उनका तर्पण किया जाता है।

तर्पण देते समय मंत्रों को जरूर बोलना चाहिए। आप जिस पितर को जलांजलि दे रहे हैं, तो उससे जुड़े मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए। माता-पिता और दादा-दादी से जुड़े मंत्र यहां दिए गए हैं………. गोत्रे अस्मतपिता (पिता जी का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः।
पितृपक्ष में हर दिन पितरों के लिए तर्पण किया जाता है। इस समय सबसे पहले देवों के लिए तर्पण किया जाता है। तर्पण के लिए आपको कुश, अक्षत्, जौ और काला तिल का उपयोग करना चाहिए।

तर्पण करने के बाद पितरों से पूर्व में आपने जो भी गलतियाँ की हैं, उन गलतियों के लिए उनसे प्रार्थना करनी चाहिए, क्षमायाचना करनी चाहिए जिससे वे प्रसन्न हो जाएं और आपको सुखी रहने का आशीर्वाद दें, तथा आप पर उनकी कृपा सदैव बनी रहे।

पितृपक्ष में पितरों का मनपसंद भोजन भी बनाया जाता है। पितृपक्ष में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है,और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दिया जाता है।

पितृपक्ष में सनातनी परिवारों के लोग मृत पितरों का श्राद्ध कर्म करते हैं। इसी पक्ष में ‘श्रीगया जी’ में किए जाने वाले श्राद्ध का भी विशेष महत्व होता है।
‘श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌’ –
जो श्रद्धा से किया जाए, वह श्राद्ध है।

‘पितृपक्ष’ या पितरपख को ‘महालय पक्ष’, ‘अपर पक्ष’ आदि नामों से भी जाना जाता है।
पितृपक्ष में शराब, मांसाहार, पान, बैंगन, प्याज, लहसुन, बासी भोजन, सफेद तिल, लौकी, मूली, काला नमक, सत्तू, जीरा, मसूर की दाल, सरसों का साग, आदि वर्जित माना गया है। पितृपक्ष में ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य होता है।
इस साल पितृ पक्ष 29 सितंबर 2023 से शुरू हो चुका है और इसका समापन 14 अक्टूबर को होगा।


हिंदुओं के पास पितृपक्ष के दौरान अपने पूर्वजों का सम्मान करने और अपने मृत प्रियजनों को सम्मान देने का सुअवसर होता है।
श्री दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा। ॐ द्रां नक्षत्राय स्वाहा। आप पितृ पक्ष के 15 दिनों तक किसी भी एक मंत्र का जाप 108 बार कर सकते हैं।

*******************
‘ऊँ श्री पितृदेवाय नमः’

*******************


Responsive Ad Your Ad Alt Text
Responsive Ad Your Ad Alt Text

Related Post

One thought on “मृत्यु के बाद भी सम्बन्धों की अटूट कड़ी हैं, ‘पितृपक्ष’”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Responsive Ad Your Ad Alt Text