जीवन में गुरु की महिमा बहुत गहरी और व्यापक है। भारतीय संस्कृति और दर्शन में गुरु को एक मार्गदर्शक, ज्ञान का स्रोत और आत्मिक उन्नति का आधार माना जाता है। गुरु वह प्रकाश है जो अज्ञान के अंधेरे को दूर करता है और शिष्य को सत्य, धर्म और जीवन के उच्च उद्देश्यों की ओर ले जाता है।
गुरु की महिमा
- ज्ञान का संचार: गुरु शिष्य को न केवल बौद्धिक ज्ञान देता है, बल्कि जीवन के व्यावहारिक और आध्यात्मिक पहलुओं को भी समझाता है। “गुरु बिन ज्ञान न उपजै” – यह कहावत गुरु के बिना सच्चे ज्ञान की प्राप्ति असंभव मानती है।
- जीवन का मार्गदर्शन: गुरु एक दिशासूचक की तरह कार्य करता है, जो शिष्य को भटकने से बचाता है और सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है।
- आत्म-जागृति: गुरु शिष्य के भीतर छिपी संभावनाओं को जागृत करता है और उसे अपनी वास्तविक शक्ति का एहसास कराता है।
गुरु के प्रति समर्पण और भरोसा
गुरु के प्रति समर्पण और भरोसा शिष्य के लिए एक मजबूत नींव बनाते हैं। यह रिश्ता विश्वास, श्रद्धा और आत्म-समर्पण पर टिका होता है। इसके लाभ इस प्रकार हैं:
- मानसिक शांति: जब शिष्य गुरु पर पूर्ण भरोसा करता है, तो उसे अनिश्चितता और भय से मुक्ति मिलती है। वह यह विश्वास रखता है कि गुरु जो भी मार्ग दिखाएगा, वह उसके हित में होगा।
- आध्यात्मिक प्रगति: समर्पण के माध्यम से शिष्य अपने अहंकार को त्यागता है, जो आध्यात्मिक विकास का पहला कदम है। गुरु की कृपा से वह उच्च चेतना तक पहुंच सकता है।
- संकटों से मुक्ति: गुरु के प्रति भरोसा शिष्य को जीवन के कठिन क्षणों में धैर्य और साहस प्रदान करता है। गुरु की शिक्षाएं और आशीर्वाद उसे संकटों से उबारते हैं।
- सच्चाई की प्राप्ति: समर्पण और भरोसे के साथ शिष्य गुरु के दिखाए मार्ग पर चलकर जीवन के गहरे सत्यों को समझ पाता है।
उदाहरण और संदर्भ
भारतीय ग्रंथों में गुरु-शिष्य परंपरा के अनेक उदाहरण हैं। जैसे, भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देकर उसे कर्तव्य पथ पर चलने की प्रेरणा दी। इसी तरह, स्वामी विवेकानंद ने श्री रामकृष्ण परमहंस के प्रति समर्पण से जीवन का उद्देश्य पाया।
अंततः, गुरु के प्रति समर्पण और भरोसा शिष्य को न केवल सांसारिक सुख-शांति देता है, बल्कि उसे मोक्ष या आत्म-साक्षात्कार जैसे परम लक्ष्य की ओर भी ले जाता है। यह एक ऐसा बंधन है जो जीवन को अर्थपूर्ण और पूर्ण बनाता है।
नमोस्तु गुरुवे तस्मै
तन तपकर कुंदन बन जाये तो तुमको अर्पित कर दूं।
मन सुगन्धित चंदन हो जाये तो तुमको अलंकृत कर दूं।।
नैत्र गंगा की निर्झर धार बने तो तुमको निमज्जन कर दूं।
इस जन्म में तू उद्धार करे तो स्वयं को कुमकुम कर दूं।।

-अमिता सिंह “अपराजिता”
(एडवोकेट)