अतुल्य भारत चेतना
मैं मिट्टी हूं
लोग कहते हैं
मेरा कोई मूल्य नहीं
पर मैं कहता हूं
मैं मिट्टी हूं
और मेरा ही मूल्य है
मुझमें ही तो छिपा है
दुनिया का बहुमूल्य रत्न
सोना, चांदी, हीरा
जवाहरात सभी
हीरा ही उपजती है
खाद्यान्न
जिससे दुनिया पलती है
हर प्राणी में मैं हूं
हर प्राणी को एक दिन
मुझमें ही समाना है।
बाहरी दृष्टि से तुम
मुझे मत देखो
आंतरिक चक्षु से देखो
तब समझोगे
कि मैं मिट्टी हूं
और मेरा ही मूल्य है।
प्रमोद कश्यप,
स्वरचित, रतनपुर