अतुल्य भारत चेतना
महामाया कर दे कृपा जगदम्ब
आया हूं द्वार तेरे कर पार मुझे अविलंब
माया मोह के इस सागर में डूबकी आज लगाने को
आया था आज मैं मां दुख दर्द बिसराने को
डूब रही है नाव मेरी कोई नहीं अवलंब
हे आदिशक्ति महिमामयी मां तेरा गुण मै गाऊं
निशदिन तेरे द्वार की मिट्टी आकर तिलक लगाऊं
बचा ले मुझको आज हे माते भटक रहा मेरा मन
हे शक्ति पीठ रतनपुर वासिनी मां महामाया काली
जय जय जय बिन कारण मां भक्त की सुधि लेने वाली
दे आश का प्रकाश पुंज मां तेरी ज्योति अमित अखंड
महामाया कर दे कृपा जगदम्ब
आया हूं द्वार तेरे कर पार मुझे अविलंब
महामाया कर दे कृपा जगदम्ब
प्रमोद कश्यप
रतनपुर