अतुल्य भारत चेतना
वीरेंद्र यादव
रायगढ़। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 का भव्य आयोजन 28 जून को धूमधाम से संपन्न हुआ। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आयोजित होने वाली यह रथ यात्रा भारत के प्रमुख धार्मिक उत्सवों में से एक है, जिसे रथ त्योहार और श्री गुंडीचा यात्रा के नाम से भी जाना जाता है। रायगढ़ की यह यात्रा रियासत कालीन परंपरा का अनूठा उदाहरण है, जो भक्ति, संस्कृति, और सामुदायिक एकता का प्रतीक है।
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रियासत कालीन परंपरा का निर्वहन
रायगढ़ में जगन्नाथ रथ यात्रा की परंपरा रियासत काल से चली आ रही है। पहले दिन भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र, और बहन सुभद्रा को मंदिर प्रांगण में भक्तों के दर्शन के लिए रखा जाता है। यह परंपरा राजा भूपदेव सिंह द्वारा शुरू की गई थी, ताकि दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालु, जो पहले दिन रथ यात्रा का दर्शन नहीं कर पाते, वे भगवान के दर्शन कर सकें। दूसरे दिन, यानी 28 जून 2025 को, भव्य रथ यात्रा का आयोजन किया गया, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा तीन विशाल रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकले।

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भव्य रथ यात्रा और भक्ति का सागर
रथ यात्रा का शुभारंभ सुबह पूजा-अर्चना और हवन के साथ हुआ। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोक गायक देवेश शर्मा ने अपने मधुर कृष्ण भजन के स्टेज शो से भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया। भक्तों के हरी बोल और जय जगन्नाथ के जयघोष से पूरा रायगढ़ शहर भक्ति के रंग में सराबोर हो गया। रथों को खींचने के लिए हजारों श्रद्धालु उमड़ पड़े, और सड़कों पर आस्था का सैलाब देखने को मिला।
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पौराणिक और धार्मिक महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने पुरी नगर दर्शन की इच्छा जताई थी। तब भगवान जगन्नाथ और बलभद्र ने उन्हें रथ पर बैठाकर नगर भ्रमण कराया और अपनी मौसी के घर, गुंडीचा मंदिर, में कुछ दिन ठहरे। रायगढ़ में भी यह परंपरा निभाई जाती है, जहां भगवान तीनों भाई-बहन रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं। मान्यता है कि रथ यात्रा में शामिल होने या रथ खींचने से भक्तों के पाप नष्ट होते हैं और उन्हें भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह यात्रा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग मानी जाती है। जगन्नाथ मंदिर, जो चार धामों में से एक है, इस यात्रा का केंद्र है। ऐसा माना जाता है कि रथ यात्रा के दर्शन और इसमें भाग लेने से हजार यज्ञों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।

15 दिन का विश्राम और बीमारी की परंपरा
रथ यात्रा से पहले भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा के 15 दिन के विश्राम की परंपरा भी प्रचलित है। मान्यता है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के स्नान के बाद भगवान बीमार पड़ जाते हैं और एकांतवास में चले जाते हैं। इस दौरान उनका आयुर्वेदिक उपचार किया जाता है, जिसमें औषधीय स्नान और जड़ी-बूटियों का उपयोग होता है। 15 दिन बाद, आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को स्वस्थ होकर वे रथ यात्रा के लिए निकलते हैं।
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रथ यात्रा की भव्यता
रथ यात्रा में तीन विशाल रथों का निर्माण परंपरागत रूप से किया गया, जिनमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा विराजमान थे। रथों को भक्तों ने भजन-कीर्तन और ढोल-नगाड़ों की धुन पर खींचा। रियासत कालीन परंपरा के अनुसार, रथ यात्रा में छेरा पहरा रस्म भी निभाई गई, जिसमें रास्ते को चंदन जल छिड़ककर और सोने की झाड़ू से साफ किया गया, जो भगवान के प्रति विनम्रता और सेवा भाव का प्रतीक है।
सामुदायिक एकता का प्रतीक
रायगढ़ की जगन्नाथ रथ यात्रा न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है। इस अवसर पर स्थानीय लोग और दूर-दराज से आए श्रद्धालु एक साथ मिलकर भगवान के रथ को खींचते हैं, जो सामाजिक समरसता और भक्ति का संदेश देता है।
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रायगढ़ में इस वर्ष की रथ यात्रा ने एक बार फिर भक्ति, परंपरा, और उत्साह का अनूठा संगम प्रस्तुत किया। यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि रियासत कालीन परंपराओं को जीवित रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।