श्री राम जन्मभूमि मंदिर को समर्पित कवि ज्ञान प्रकाश आकुल (लखीमपुर) की कालजयी रचना
उनसे पूछो मंदिर क्या है ?
दो घड़ी लिपट कर रो लेना उन तीरथ जैसे पाँवों से
आँखें भर आयेंगी लेकिन पूछना कभी उन मांओं से
जिनके बेटे माथे पर तिलक लगाकर घर से निकले थे
जिनके बेटे सौगंध राम की खाकर घर से निकले थे
जिनके बेटे बस उसी साल ही पहली बार जवान हुये
जिनके बेटे इस जन्मभूमि के आँगन में बलिदान हुये
बारात निकलनी थी जिनकी
घर में बजनी शहनाई थी
उनका शरीर तक नहीं मिला
बस एक खबर ही आई थी
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सरयू की धारा में जाने कितने कंकाल पड़े होंगे
मिलना जाकर उन माँओं से जिनके भी लाल पड़े होंगे
बरसों का वह सूना ऑंगन जैसे कुछ कुछ मुस्काया है
उन राह ताकती कौशल्याओं का बेटा घर आया है
कोई कुछ कहता रहे मगर
यह मंदिर उनका बेटा है !
उनसे पूछो मंदिर क्या है ?

उनसे पूछो जिनके प्रियतम घर आँगन बस्ती छोड़ गये
बस रामलला ने बुला लिया वे बसी गृहस्थी छोड़ गये
सब लौटे लेकिन उनकी मन मुँदरी के रतन नहीं लौटे
तैंतीस बरस होने को हैं पर उनके सजन नहीं लौटे
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हर संध्या एक प्रतीक्षा है
बस एक प्रतीक्षा हर दिन है
कुछलोग उन्हें विधवा कहते,
कहते कुछलोग सुहागिन है

जाने कितनी यादें मन में कितनी कहानियाँ रखी रहीं
सेंदुर तो नहीं लगाया पर सिन्दूरदानियाँ रखी रहीं
अब कोई सपन नहीं आता उनकी पथरीली आँखों में
इक मूरत प्राण प्रतिष्ठित है सरयू सी गीली आँखों में
उनकी आँखों में इंतजार का भार दिखाई देता है
उनकी आँखों में सिर्फ राम दरबार दिखाई देता है
बस राम प्रतीक्षा में जिन भी
सीता का जीवन बीता है !
उनसे पूछो मंदिर क्या है

यह मंदिर क्या है यह कोई कैसे तुमको समझायेगा
जिसका बेटा बलिदान हुआ तुमको वह पिता बतायेगा
वह बहन बताएगी जिसने बस एक साधना साधी है
जिस दिन से भाई चला गया मूरत को राखी बाँधी है
देखा न पिता को ऑंखों से
बिन उँगलीपकड़े खड़ा हुआ
वह पुत्र बताएगा तुमको
जो बिना पिता के बड़ा हुआ
यह मंदिर जाने ही कितनी आँखों का पलता सपना है
हम सबका है लेकिन उससे पहले यह उनका अपना है
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हम क्यों न मनाएं दीवाली
हम क्यों न करें उत्सव सारे
पूरे हो गये सपन कितने
मुस्काने लगे नयन खारे
यह सपने सारे जीवन भर
हर पल बस आठों याम दिखें
सारा भारत हो अवधपुरी
हर एक नयन में राम दिखें
उसको कोई क्या बतलाए
जिसने हमसे यह पूछा है
उनसे पूछो मंदिर क्या है ?

-रचनाकार
ज्ञानप्रकाश आकुल
राष्ट्रीय कवि एवं गीतकार
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