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वीरता की मिसाल नरेंद्र नाथ धर दुबे जी से प्रेसिडेंट कोच प्रांशु त्रिपाठी ने की शिष्टाचार भेंट

By News Desk May 7, 2025
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कीर्ति चक्र सम्मान से सम्मानित नरेंद्र नाथ धर दुबे के जीवन पर आधारित फिल्म ग्राउंड जीरो की समीक्षा

अतुल्य भारत चेतना | संवाददाता

25 अप्रैल 2025 को रिलीज हुई फिल्म ग्राउंड जीरो ने देशभर में एक बार फिर बीएसएफ कमांडेंट नरेंद्र नाथ धर दुबे की वीरता और साहस की कहानी को जन-जन तक पहुंचाया। भारत सरकार द्वारा कीर्ति चक्र से सम्मानित इस वीर सपूत की प्रेरणादायक कहानी ने न केवल सिनेमाघरों में दर्शकों को भावुक किया, बल्कि देशभक्ति की भावना को भी प्रज्वलित किया। हाल ही में, लखनऊ की प्रसिद्ध रियल एस्टेट कंपनी धरा इन्फ्रा प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रेसिडेंट कोच प्रांशु त्रिपाठी ने ग्रेटर नोएडा में श्री दुबे से शिष्टाचार भेंट की। इस मुलाकात में श्री दुबे ने प्रांशु त्रिपाठी को उनके कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए शुभकामनाएं और आशीर्वाद दिया। यह लेख श्री नरेंद्र नाथ धर दुबे के जीवन, उनके कार्यक्षेत्र, देश के प्रति योगदान, वीरता, और ग्राउंड जीरो फिल्म की कहानी व समीक्षा पर विस्तृत प्रकाश डालता है।

नरेंद्र नाथ धर दुबे: जीवन परिचय

नरेंद्र नाथ धर दुबे का जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एक सामान्य परिवार में हुआ। बचपन से ही उनके मन में देशसेवा का जज्बा था, जिसने उन्हें सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण ने उन्हें एक कुशल और समर्पित अधिकारी बनाया। बीएसएफ में कमांडेंट के रूप में सेवा करते हुए, उन्होंने कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में असाधारण साहस और नेतृत्व का परिचय दिया। उनकी वीरता की सबसे बड़ी गाथा 2001-2002 के दौरान सामने आई, जब उन्होंने संसद हमले और अक्षरधाम मंदिर हमले के मास्टरमाइंड, जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी गाजी बाबा को ढेर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस मिशन के दौरान उनकी बहादुरी ने उन्हें कीर्ति चक्र जैसे प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा गया।

कार्यक्षेत्र और योगदान

नरेंद्र नाथ धर दुबे जी का कार्यक्षेत्र मुख्य रूप से कश्मीर घाटी में रहा, जहां आतंकवाद अपने चरम पर था। बीएसएफ कमांडेंट के रूप में, उन्होंने न केवल सीमाओं की रक्षा की, बल्कि आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए कई जोखिम भरे ऑपरेशन का नेतृत्व किया। उनकी रणनीतिक बुद्धिमत्ता और साहस ने बीएसएफ को कई महत्वपूर्ण सफलताएं दिलाईं।

  • संसद हमले का जवाब: 2001 में दिल्ली के संसद भवन पर हुए आतंकी हमले के पीछे गाजी बाबा का हाथ था। नरेंद्र नाथ धर दुबे ने इस हमले के बाद गाजी बाबा को पकड़ने के लिए एक लंबा और खतरनाक मिशन शुरू किया।
  • अक्षरधाम मंदिर हमला: 2002 में गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हुए हमले के तार भी गाजी बाबा से जुड़े थे। दुबे की अगुवाई में बीएसएफ ने इस आतंकी नेटवर्क को ध्वस्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • गाजी बाबा का एनकाउंटर: दो साल के कठिन मिशन के बाद, नरेंद्र नाथ धर दुबे ने गाजी बाबा को मार गिराया। इस ऑपरेशन के दौरान उन्हें कई गोलियां लगीं, और वह लंबे समय तक कोमा में रहे। उनकी मेडल ने कई गोलियों को डिफ्लेक्ट किया, लेकिन एक गोली उनके शरीर में आज भी एक स्मृति के रूप में मौजूद है।

उनके इस बलिदान और साहस के लिए भारत सरकार ने उन्हें कीर्ति चक्र से सम्मानित किया, जो देश का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है।

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वीरता और साहस की कहानी

नरेंद्र नाथ धर दुबे की वीरता की कहानी कश्मीर के उस दौर की है, जब आतंकवाद ने घाटी को अपनी चपेट में ले रखा था। उनके नेतृत्व में बीएसएफ ने न केवल आतंकियों का सफाया किया, बल्कि स्थानीय लोगों के बीच विश्वास भी जगाया। एक लॉन्च इवेंट में उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “AK-47 की भारी फायरिंग के बीच मुझे कई गोलियां लगीं। मेरी मेडल की वजह से ज्यादातर गोलियां डिफ्लेक्ट हो गईं, लेकिन एक गोली मुझे छू गई और आज भी मेरे शरीर में है।” इस बयान ने उनके साहस और देश के प्रति समर्पण को उजागर किया।

उनके मिशन में कई चुनौतियां थीं, जैसे लालफीताशाही, निलंबन, और करीबी लोगों का नुकसान। फिर भी, उनकी पत्नी और इंटेलिजेंस टीम की अधिकारी आदिला ने उन्हें कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उनकी यह कहानी न केवल सैनिकों के लिए, बल्कि हर भारतीय के लिए प्रेरणा है।

ग्राउंड जीरो: कहानी और समीक्षा

कहानी

ग्राउंड जीरो एक वास्तविक घटना पर आधारित फिल्म है, जो नरेंद्र नाथ धर दुबे की वीरता को सलाम करती है। फिल्म की कहानी अगस्त 2001 में श्रीनगर से शुरू होती है, जहां कश्मीरी युवाओं को आतंकवाद की ओर धकेला जा रहा है। बीएसएफ अधिकारी नरेंद्र नाथ धर दुबे (इमरान हाशमी) इस आतंकी नेटवर्क को तोड़ने के लिए एक खतरनाक मिशन पर निकलते हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे दुबे गाजी बाबा को पकड़ने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं, और इस दौरान उन्हें कई गोलियां लगती हैं।

फिल्म का दूसरा भाग और भी गंभीर है, जहां दुबे को निलंबन, हार, और व्यक्तिगत नुकसान का सामना करना पड़ता है। फिर भी, उनकी दृढ़ता और टीम का विश्वास उन्हें मिशन को पूरा करने के लिए प्रेरित करता है। फिल्म कश्मीर के स्थानीय दृष्टिकोण को भी सामने लाती है, जो वर्तमान परिदृश्य में प्रासंगिक है।

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समीक्षा

ग्राउंड जीरो को समीक्षकों और दर्शकों से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है। फिल्म की ताकत इसकी प्रामाणिकता, कश्मीर की खूबसूरत सिनेमैटोग्राफी, और इमरान हाशमी की दमदार अभिनय में निहित है। कमलजीत नेगी की सिनेमैटोग्राफी घाटी की खामोशी और दर्द को बखूबी दर्शाती है, जबकि जॉन स्टीवर्ट एडुरी का बैकग्राउंड स्कोर कहानी को प्रभावशाली बनाता है।

इमरान हाशमी ने नरेंद्र नाथ धर दुबे के किरदार को मानवीय और जांबाज दोनों रूपों में पेश किया है, जो उनकी पिछली छवि से अलग है। सहायक कलाकारों में जोया हुसैन (आदिला) और सई ताम्हणकर ने भी प्रभावशाली प्रदर्शन किया, हालांकि समीक्षकों का मानना है कि सई को अधिक स्क्रीन स्पेस मिलना चाहिए था।

हालांकि, कुछ कमजोरियां भी हैं। कुछ समीक्षकों ने पटकथा को एकरस और भावनात्मक रूप से कमजोर बताया। फिल्म का क्लाइमेक्स देर से आता है, और इमरान हाशमी की कास्टिंग को कुछ दर्शकों ने स्वीकार करने में समय लिया। फिर भी, कश्मीर की पृष्ठभूमि और देशभक्ति की भावना ने इसे 5 में से 3 स्टार की रेटिंग दिलाई।

प्रांशु त्रिपाठी के साथ मुलाकात

लखनऊ की धरा इन्फ्रा प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रेसिडेंट कोच प्रांशु त्रिपाठी ने हाल ही में ग्रेटर नोएडा में नरेंद्र नाथ धर दुबे जी से मुलाकात की। इस शिष्टाचार भेंट में श्री दुबे ने प्रांशु जी को उनके रियल एस्टेट क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए शुभकामनाएं दीं और अपना स्नेह व आशीर्वाद प्रदान किया। यह मुलाकात न केवल दो क्षेत्रों के बीच एक सेतु का प्रतीक थी, बल्कि यह भी दर्शाती है कि श्री दुबे आज भी समाज के विभिन्न वर्गों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

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नरेंद्र नाथ धर दुबे की कहानी साहस, समर्पण, और बलिदान की एक जीवंत मिसाल है। ग्राउंड जीरो ने उनकी वीरता को बड़े पर्दे पर लाकर देश के उन गुमनाम नायकों को सम्मान दिया, जो अपनी जान की परवाह किए बिना देश की रक्षा करते हैं। यह फिल्म कश्मीर के जटिल मुद्दों को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करती है और दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि “क्या सिर्फ कश्मीर हमारा है, या वहां के लोग भी?”

श्री दुबे का जीवन और ग्राउंड जीरो की कहानी हमें यह सिखाती है कि देशभक्ति केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्मों में झलकती है। प्रांशु त्रिपाठी जैसे युवा उद्यमियों के साथ उनकी मुलाकात यह दर्शाती है कि उनकी प्रेरणा समाज के हर क्षेत्र को प्रभावित कर रही है। यह फिल्म और श्री दुबे की गाथा हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है।

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