
राम सिया का वन को जाना
साधारण सी बात नहीं है।
यह सत्ता का पैदल चल कर
जन मानस की खोज खबर है।
बाट जोहती थीं वर्षों से
शबरी सी कितनी आशाएँ।
बानर भालू गिद्ध तपस्वी
ऋषि मुनि कानन विटप लताएँ।
एक दशानन का वध केवल
कारण नहीं अवतरण का था।
धरा त्राण हित चौदह वर्षों का यह पावन कठिन सफर है।
स्वर्ण – पात्र में खाने वाले
क्या जाने फुटपाथी जीवन।
महलों के वातायन से कब
दिखता है झोपड़ियों का तन।
राजभवन के बाहर कितना
है दुष्कर यह मानव जीवन।
अनुभव हेतु एक राजा का पर्णकुटी में गुजर बसर है।
साथ रहा जब तक गौतम का
ज्ञानस्वरूपा रहीं अहिल्या।
जब प्रमाद का स्पर्श मिला तो
क्षण में पत्थर हुईं अहिल्या।
एक शिला का नारी होना
यह केवल संयोग नहीं है।
मर्यादा की छुअन मात्र से यह जड़ता में चेतन स्वर है।
धरती पर विधि के विधान से
बंधा हुआ हर एक चराचर।
सुर नर मुनि पशु पक्षी जग में
कोई नहीं नियति से ऊपर।
यही सत्य जग को समझाने,
जीवन का निहितार्थ बताने,
सुख दुख के इस भंवरजाल में हुआ अवतरित परमेश्वर है।
» जनार्दन पाण्डेय “नाचीज़”
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