
लेखक – अम्बरीश तिवारी ‘अम्बर’
18 वीं लोकसभा चुनाव 2024 के मुकाबले के लिए मैदान फिर से तैयार हो चुका है एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के लिए प्रयास कर रहा है तो दूसरी तरफ कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता। यही कारण है कि इस बार कांग्रेस सहित 26 विपक्षी दलों ने इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव अलायंस (I.N.D.I.A.)नाम से गठबंधन करके चुनाव में उतरने का निर्णय लिया है। 17-18 जुलाई 2023 को बंगलुरु में दो दिवसीय बैठक में विपक्षी दलों ने गठबंधन का नाम तय करने के साथ ही यह भी फैसला किया कि इस गठबंधन का एक संयोजक होगा और 11 सदस्यीय समन्वय समिति होगी जो सीट बंटवारे का प्लान और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तैयार करेगी।अगले वर्ष होने वाले चुनाव के लिए दिल्ली में एक सचिवालय बनाया जाएगा ।यह पार्टियां बीजेपी का मुकाबला करने के लिए वैकल्पिक राजनीतिक ,सामाजिक और आर्थिक एजेंडा देने पर भी सहमत हुई है ।गठबंधन को नाम के रूप में नई पहचान दशकों पुराने यूपीए की जगह मिली है। जैसा कि कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे ने कहा है कि -“हर कोई गठबंधन के लिए एक नाम रखने पर सहमत हुआ है। पहले हमें यूपीए कहा जाता था अब हमें भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (I.N.D.I.A.) कहा जाएगा।”
विपक्षी दलों द्वारा अपने गठबंधन का नामकरण इंडिया रखने पर भाजपा नेताओं ने इंडिया और भारत के बीच की दूरी को लेकर विपक्ष पर सवाल दागने शुरू कर दिए तथा एनडीए भाजपा खेमे ने नाम पर विवादों की गुंजाइश बनाने की कोशिश तत्काल शुरू कर दी।असम के सीएम हेमंत बिस्व सरमा ने इंडिया को अंग्रेजों की गुलाम मानसिकता से जोड़ते हुए ट्विटर के अपने प्रोफाइल से इंडिया हटाकर भारत लिख दिया । राहुल गांधी ने कहा कि अब लड़ाई “इंडिया और नरेंद्र मोदी” के बीच है ।दूसरी ओर हेमंत बिस्व सरमा ने कटाक्ष किया कि अंग्रेजों ने देश का नाम इंडिया रखा था । भाजपा ने कहा कि गठबंधन का नाम इंडिया रखने से उसका चरित्र नहीं बदलेगा और 2024 के लोकसभा चुनाव की लड़ाई” भारत बनाम इंडिया” होने जा रही है। राष्ट्रीय लोक जनता दल के संस्थापक एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने विपक्षी गठबंधन इंडिया को उन लोगों का समूह करार दिया जो जनता की गाढ़ी कमाई लूटते हैं और गरीब लोगों का खून चूसते हैं।हेमंत बिस्व सरमा ने कहा -“हमारा सभ्यता गत संघर्ष इंडिया और भारत के आसपास केंद्रित है। अंग्रेजों ने हमारे देश का नाम इंडिया रखा। हमें औपनिवेशिक विरासतों से खुद को मुक्त करने का प्रयास करना चाहिए।” भाजपा ने ट्वीट कर कहा कि -“जिस इंडिया को दुनिया भर में बदनाम करते फिरते हैं, अपने अस्तित्व और परिवार को बचाने के लिए उसके नाम का ही सहारा लेना पड़ा।”। इंडिया और भारत के बीच दूरी के विवाद बनने से पहले ही विराम देने के लिए इंडिया गठबंधन ने अपनी टैगलाइन जुड़ेगा भारत जीतेगा इंडिया के जरिए भारत को जोड़ते हुए ऐसे सवालों का सामना करने की कोशिश की है इसी के साथ विपक्षी गठबंधन ने यह भी तय कर दिया है कि जुड़ेगा भारत जीतेगा इंडिया 2024 के चुनाव के लिए इंडिया गठबंधन का नारा होगा।
ऐसा नहीं है कि इंडिया नाम रखने पर केवल एनडीए के सहयोगी दलों ने ही विरोध किया है बल्कि गठबंधन के साझेदार दलों के कई नेताओं ने भी अपनी नाखुशी जाहिर किया था ।कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा तैयार किए गए और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री द्वारा प्रस्तावित नाम पर कुछ नेता भी असहमत नजर आए, इनमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सीताराम येचुरी समेत कुछ अन्य नेता शामिल थे ।प्रेस कॉन्फ्रेंस के पहले ही नितीश कुमार के पटना वापसी ने तकरार की अटकलों को और हवा दे दी। ऐसी भी खबरें हैं कि बैठक के दौरान शब्द ‘D’ से डेवलपमेंट और डेमोक्रेटिक को लेकर बहस हुई थी। एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि बिहार के सीएम का कहना है कि गठबंधन का नाम इंडिया रखने का क्या मतलब है ? इसके पूर्व 23 जून को जब विपक्षी गठबंधन को आकार देने के लिए बिहार की राजधानी पटना में पहली बैठक हुई थी तब आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सर्वप्रथम विपक्षी गठबंधन को झटका देते हुए विपक्षी दलों की बैठक से दूरी बना ली थी ।पटना में हुई बैठक में केजरीवाल शामिल तो हुए लेकिन प्रेस कांफ्रेंस से पहले ही दिल्ली लौट गए।सीपीआईएम नेता सीताराम येचुरी ने साफ कर दिया है कि विपक्षी एकता के बीच उन्होंने तय किया है कि बंगाल में टीएमसी और कांग्रेस के साथ किसी भी हाल में गठबंधन नहीं करेंगे ।बीजेपी कांग्रेस और टीएमसी के खिलाफ उनकी जंग जारी रहेगी।

साल 2014 का चुनाव बीजेपी गठबंधन एनडीए के नाम से जबकि विपक्षी दलों ने यूपीए गठबंधन के नाम से लड़ा था ।श्री नरेंद्र मोदी 2014 में इंडिया के प्रधानमंत्री के चेहरे थे और विपक्ष ने कोई प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित ना करके इसे चुनाव पश्चात निर्णय पर छोड़ दिया था ।चुनाव के नतीजों में मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए को लगभग 38% वोटों के साथ कुल 336 सीटों पर विजय मिली जबकी विपक्षी यूपीए के खाते में कुल 60 सीटें गईं व 147 सीटें अन्य दलों के खाते में गईं। 2019 के लोकसभा चुनाव में परिणाम एक बार फिर एनडीए के पक्ष में गया जब एनडीए को कुल 45% वोट शेयरों के साथ कुल 353 सीटें प्राप्त हुईं। कांग्रेस नीत गठबंधन यूपीए को कुल 92 सीटों से संतोष करना पड़ा। अन्य दलों को 97 सीटें मिलीं। उसके साथ ही उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश ,उत्तराखंड, महाराष्ट्र एवं गोवा सहित कुल 15 राज्यों व एक केंद्र शासित राज्य में भी एनडीए दलों का आधार निरंतर बढ़ता चला गया जबकि विपक्षी यूपी की केंद्रीय सत्ता हासिल करने के मंसूबों पर लगातार पानी फिर गया।
इंडिया नाम रखने के पीछे विपक्ष विशेषकर कांग्रेस की मंशा क्या है इस बात का विश्लेषण आवश्यक हो जाता है। स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस सर्व स्वीकार्य पार्टी थी ।जिसका स्वतंत्रता संग्राम से भी सीधा जुड़ाव था यही कारण है कि लगभग 60 वर्षों तक सत्ता या तो सीधे कांग्रेस के या फिर कांग्रेस समर्थित सरकारों के हाथ में रही।कांग्रेस की राजनीति नेहरू-गांधी परिवार के ही चारों ओर केंद्रित रही ।साल 2014 का चुनाव बीजेपी गठबंधन एनडीए के नाम से जबकि विपक्षी दलों ने यूपीए गठबंधन के नाम से लड़ा था। श्री नरेंद्र मोदी 2014 में इंडिया के प्रधानमंत्री के चेहरे थे और विपक्ष ने कोई प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित ना करके इसे चुनाव पश्चात निर्णय पर छोड़ दिया था। चुनाव के नतीजों में देश की जनता ने मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए को लगभग 38% वोटों के साथ कुल 336 सीटें प्राप्त हुई विपक्षी यूपीए के खाते में कुल 60 सीटें गई वह 147 सीटें अन्य दलों के खाते में गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में परिणाम एक बार फिर एनडीए के पक्ष में गया जब एनडीए को कुल 45% वोट शेरों के साथ कुल 353 सीटें प्राप्त हुई कांग्रेस नीत गठबंधन यूपीए को कुल 92 सीटों से संतोष करना पड़ा अन्य दलों को 97 सीटें मिली उसके बाद साथ ही उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश उत्तराखंड महाराष्ट्र गोवा सहित कुल 15 राज्यों आदि एक केंद्र शासित राज्य में भी एनडीए दलों का आधार निरंतर बढ़ता चला गया जबकि विपक्षी यूपी की केंद्रीय सत्ता हासिल करने के मंसूबों पर लगातार पानी फिर गया।बीजेपी राम मंदिर , धारा 370, समान नागरिक संहिता आदि मुद्दों पर मुखर रही तथा कांग्रेस पर बहुसंख्यकों के ऊपर अल्पसंख्यकों को वरीयता देने तथा अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति का आरोप लगाती रही है। 2003 से 2014 तक कांग्रेस के शासन में होने वाले एक के बाद एक भ्रष्टाचार के कांडों से जनता में कांग्रेस की विश्वसनीयता भी कम हुई है। मोदी ने 2014 में भ्रष्टाचार, परिवारवाद ,नेशन फर्स्ट ,राष्ट्रवाद ,राम मंदिर, धारा 370 और समान नागरिक संहिता आदि मुद्दों को जनता के बीच मुखर तरीके से रखा ,जिस पर जनता ने भी भरोसा जताया । परिणाम स्वरुप 2014 व 2019 में भी जनता ने मोदी को पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता की कुर्सी सौंपी।
कांग्रेस ने राहुल गांधी को प्रोजेक्ट किया जिन्होंने मोदी को कभी चौकीदार चोर है तो कभी राफेल में घोटाला आदि आरोप लगाकर अपनी स्वीकार्यता जनता में बढ़ाना चाहा, किंतु राज्य दर राज्य व चुनाव दर चुनाव जनता ने उनको नकारा व बीजेपी गठबंधन पर भरोसा बनाए रखा । सभी विपक्षी पार्टियां अब मोदी के नए स्टाइल की राजनीति से असहज महसूस करने लगी हैं ,जिसके परिणाम स्वरूप अब सभी ने मिलकर मोदी के साथ 2024 में दो-दो हाथ करने का मन बना लिया है।
हिमाचल व कर्नाटक का चुनाव भले ही कांग्रेस जीत गई किंतु लोकसभा चुनाव में मोदी की छवि धूमिल कर उन्हें जनता के मन से गिराने की सभी कोशिशें फिलहाल तो विफल ही होती नजर आई हैं और विपक्ष की निराशा व हताशा का कारण बन गई है। राष्ट्रवाद के मुद्दों पर भी बीजेपी कांग्रेस के मुस्लिम तुष्टीकरण पर भारी पड़ती रही है ।पाकिस्तान के विरुद्ध दो-दो बार सर्जिकल स्ट्राइक तथा गलवान घाटी में चीन की आंखों में आंखें डाल कर व्यवहार करने की नीति ने भी जनता के मन में मोदी सरकार पर भरोसा बढ़ाया । इन्हीं सब कारणों से अब विपक्ष के पास ,आपस में लाख मतभेद होने के बावजूद, मोदी के विरुद्ध एक साथ खड़े होने के अलावा और कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है,क्योंकि 2024 का चुनाव विपक्ष के लिए अस्तित्व की भी लड़ाई बन गया है ।
इंडिया नाम का गठबंधन बनाने का प्रयास एक ओर जहां जनता के मन में इंडिया (देश)के प्रति स्वाभाविक संवेदनाओं को स्पंदित करके उसका चुनाव में वोटों के रूप में लाभ उठाने का प्रयास है तो वहीं दूसरी ओर अपने अस्तित्व को भी बचाने का एक आखिरी प्रयास मालूम पड़ता है। यही कारण है कि कई विपक्षी नेताओं ने 2024 के लोकसभा चुनाव को इंडिया बनाम मोदी कहना प्रारंभ कर दिया है मानो इंडिया अर्थात पूरा देश मोदी के विरुद्ध विपक्षी गठबंधन के साथ है।
इंडिया नाम रखने के पीछे विपक्ष की एक और मंशा स्पष्ट नज़र आती है जिसमें मौजूदा राजनीतिक युद्ध में राष्ट्रवाद के मुद्दे से बीजेपी ने स्पष्ट बढ़त बना लिया है ।इंडिया नामकरण राष्ट्रवाद पर बीजेपी के एकाधिकार को चुनौती देने का सोचा समझा फैसला लगता है ।बीजेपी अपनी राजनीति पर नेशन फर्स्ट का तमगा लगाने में कामयाब रही है। बीजेपी ने अपनी बहुसंख्यक वाली नीतियों से ना सिर्फ बड़ी हिंदू आबादी को अपनी तरफ खींचा बल्कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों को राष्ट्रवाद के फ्रेमवर्क से ही बाहर कर दिया।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विपक्ष द्वारा गठबंधन का नाम इंडिया रखना राष्ट्रवाद के मैदान-ए-जंग में विपक्ष का अंतिम कदम है ।
अगले साल होने वाले 18 वीं लोकसभा चुनाव के लिए दो बड़े गठबंधन एनडीए और इंडिया पूरे दमखम के साथ मैदान में हैं। दोनों के बीच होने वाले चुनावी संग्राम को लेकर देश में भी लोगों के मध्य अलग-अलग राय होते हुए भी जिज्ञासा बढ़ने लगी है। लोग अनुमान लगा रहे हैं कि क्या इससे कांग्रेस को फायदा होगा और लगातार मिलने वाली चुनावी असफलताओं का दौर खत्म होगा? क्या केंद्र की सत्ता से मोदी को बेदखल कर कांग्रेस पुन: केन्द्रीय भूमिका में आ पाएगी?इंडिया -टुडे सीएनएन के सर्वे परिणामों के अनुसार बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए को अभी भी सर्वाधिक लोगों का समर्थन मिलेगा जबकि विपक्षी इंडिया गठबंधन के काफी पीछे रहने का अनुमान है ।जहां तक बात कांग्रेस को होने वाले फायदे की है तो उसकी सीटों में लगभग एक तिहाई का उछाल देखने को मिल सकता है।
इंडिया टीवी के सर्वे के मुताबिक एनडीए को 318 सीटों पर जबकि इंडिया गठबंधन 175 सीटों पर व अन्य के खाते में 50 सीटें जाने का अनुमान बताया गया है ।इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के पास सबसे ज्यादा सीटें रहने का अनुमान है जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र 52 सीटें मिली थी और 2014 लोकसभा चुनाव में तो पार्टी सिर्फ 44 सीटों पर ही अटक गई थी।
विपक्ष द्वारा यूपीए का नाम इंडिया रखना एक प्रकार से पुराने माल को ही नई पैकिंग में प्रस्तुत करना है इसके द्वारा कांग्रेस का यूपीए की छवि को दोबारा बनाने का तरीका भी हो सकता है जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा अक्सर वंशवाद की राजनीति और भ्रष्टाचार को लेकर युग युग को भर्ती रही है पीएम ने विपक्ष की बैठक पर तंज करते हुए कहा कि जब वे सभी एक प्रेम में दिखाई देते हैं तो देश को केवल भ्रष्टाचार दिखाई देता है लोग इसे भ्रष्टाचार का गठबंधन कहते हैं।यही कारण है कि विपक्षी गठबंधन में ऐसे भी दल इस इंडिया में शामिल हो गए हैं जिनकी अपने-अपने राज्यों में एक दूसरे से भी मुकाबला रहता है ,उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस -सपा ,बिहार में राजद ,पश्चिम बंगाल में ममता की टीएमसी, वाम दलों ,कांग्रेस, जम्मू कश्मीर में पीडीपी व नेशनल कॉन्फ्रेंस, तमिलनाडु में डीएमके- एमडीएमके आदि।
बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में किए गए बड़े वादों में से राम मंदिर ,धारा 370 की समाप्ति के वादे पूरे कर दिए अब वही यूसीसी पर भी जनता की राय जानकर राजनीतिक दलों के मध्य एक राय पर तेजी से कार्य कर रही है यहां तक कि उत्तराखंड में यूसीसी को लागू करने की घोषणा भी कर दिया गया है। गोवा में पहले से हीयूसीसी लागू है। मध्य प्रदेश व अन्य बीजेपी शासित राज्य भी लागू करने की घोषणा कर चुके हैं ।दूसरी ओर भ्रष्टाचार का कोई भी दाग अभी तक मोदी सरकार पर नहीं लगा है। हालांकि विपक्षी विशेष कर कांग्रेस ने शुरू से ही कभी चौकीदार चोर है तो कभी राफेल में भ्रष्टाचार होने की बात कही तथा कभी नोटबंदी में कमियां गिना कर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की लेकिन जनता ने विपक्ष के नेताओं पर कोई विश्वास नहीं किया व 2019 में और भी अधिक सीटों के साथ मोदी को विजयी बना कर सत्ता में वापसी कराई।
2024 के चुनावों से पूर्व किए गए सर्वे में भी कांग्रेस को कुल 66 सीटों पर जीतने का अनुमान है अर्थात 2019 की तुलना में कांग्रेस को करीब 30% ज्यादा सीटों का फायदा होता दिखाई दे रहा है। लोकसभा में कुल सीटों की संख्या 543 है और सरकार बनाने के लिए जादुई अंक 272 है। इंडिया टीवी सीएनएक्स सर्वे में वोट शेयर को लेकर आए आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं ।इस सर्वे में अकेले बीजेपी को सबसे ज्यादा 42.5 प्रतिशत शेयर मिल सकता है जबकि विपक्षी पार्टियों की इंडिया गठबंधन का वोट शेयर अन्य को मिलने वाले वोट प्रतिशत से भी कम होने का अनुमान है ।सर्वे के अनुसार लोकसभा चुनाव में इंडिया को 24.9% रहने का अनुमान है। बीजेपी तो इस प्रकार इंडिया नाम रखने का विरोध कर ही रही थी अनेक पीआईएल भी सुप्रीम कोर्ट में विपक्ष के 26 दलों व चुनाव आयोग को पार्टी बनाते हुए दाखिल की गई है तथा राष्ट्रीय प्रतीक व नाम एक्ट का हवाला देकर इंडिया नाम से गठबंधन बनाने का विरोध करने हेतु दाखिल की गई है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृष्टया सुनवाई हेतु उपयुक्त पाया है।
