अतुल्य भारत चेतना
पौराणिक नगरी रतनपुर का यह पवित्र प्रांगण प्राचीन समय में देवाधि देव महादेव एवं देवियों की सभागृह थी। यह सांसारिक प्रपंचों से दूर सिद्ध मुनि एवं योगियों की तपोभूमि थी। इसी कारण से यहां की मिट्टी आज भी भक्तों को दुर्लभ भक्ति प्रदान करतीं हैं। यहां कई देवी मंदिरों के साथ ही देश के बारह ज्योतिर्लिंग स्वरुप बारह महादेव का मंदिर है। इसमें इसके दक्षिण पूर्व में एक ऐतिहासिक रत्नेश्वर महादेव का मंदिर है।
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रतनपुर के करैहापारा मोहल्ला स्थित ऐतिहासिक रत्नेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण राजा रत्नदेव द्वितीय ने संवत् 1065 में करवाया था। बताया जाता है कि राजा रत्नदेव की रानी बेदमति भगवान शिव का परम भक्त थीं। इसी कारण राजा रत्नदेव ने अपनी रानी सहित नर्मदा नदी का बालू लाकर शिवलिंग का आकार दिया और स्वयं के द्वारा खुदवाए गए तालाब जिसे रत्नेश्वर तालाब कहा जाता है, इसके बीच के टापू में मंदिर बनवाकर शिवलिंग को स्थापित किया। जहां रानी बेदमति प्रतिदिन तालाब में अच्छादित पुरइन पत्ते के ऊपर चलकर मंदिर में पूजा करने जाती थी। पानी में उनके पैर डुबती नहीं थी। यह उनकी सतीत्व और शिव भक्ति का प्रभाव था। मगर एक समय ऐसे आया जिसमें रानी का पांव पुरईन पत्ते में चलने से डूबने लगी तब राजा ने रत्नेश्वर तालाब के पश्चिमी पार में मंदिर का निर्माण कराकर उसी शिवलिंग को स्थापित किया जहां आज मंदिर विद्यमान है। प्रारंभ में यह लिंग बहुत छोटे लोढ़े के आकार का था। किवदंती है कि मुगल शासन के समय यहां निवासरत मनिहार मुश्लिम चुड़ी कूटने के लिए इस लिंग को घर ले जाते थे, मगर यह लिंग समय पर मंदिर में ही मिलते थे। ऐसी इस शिवलिंग की महिमा है।
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आज वही छोटा सा शिवलिंग निरंतर बढ़ते हुए त्रिमूर्ति एक बड़े शिवलिंग के रुप में विराजित हैं। इसके बढ़ते हुए रुप का एहसास आज भी किया जा सकता है। जो सच्ची श्रद्धा के साथ इस शिवलिंग की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
जय रत्नेश्वर महादेव
प्रमोद कश्यप, रतनपुर छत्तीसगढ़