अतुल्य भारत चेतना
प्रमोद कश्यप
रतनपुर।
ऐतिहासिक नगरी रतनपुर प्राचीन काल से ही लोक संस्कृति एवं विभिन्न परंपराओं की जन्मभूमि रही है। छत्तीसगढ़ की अधिकांश लोक कला एवं परंपराएं यहीं जन्मी और संपूर्ण छत्तीसगढ़ को सुवासित करती रहीं। यहाँ की लोक परंपराओं में भादों माह में गणेशोत्सव के अवसर पर होने वाली रतनपुरिहा भादों गम्मत की परंपरा लोक रंजन की एक अनूठी परंपरा है, जो एकादशी को गुटका पूजन से प्रारंभ होती है और छत्तीसगढ़ की समस्त लोक कला एवं लोक संस्कृति को समेटे हुए चार दिनों तक गम्मत होता है। पहले पूरे नगर में लगभग १५ स्थानों पर यह आयोजन होता था। बदलते समय के अनुसार यह आयोजन सिमटकर केवल करैहापारा में दो स्थानों पर हो रहा है। मोहल्ले के बाबूहाट एवं बेदपारा में यह आयोजन चल रहा है। २०० वर्ष पूर्व यहां के भक्त कवि बाबू रेवाराम द्वारा रचित गुटका भजन जो श्रीकृष्ण के लीलाओं पर आधारित है , जिसके गायन की एक अलग शैली है, अलग लय और ताल है। इन भजनों के साथ गम्मत नाचा होता है। इस बीच भगवान कृष्ण, कंस अकासुर, बकासुर, पूतना आदि का अभिनय होता है। अभिनय में कृष्ण द्वारा राक्षसों का वध होता है एवं विभिन्न लोक संस्कृति एवं लोक कलाओं का स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रदर्शन किया जाता है। लगभग १७५ वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है।
पारंपरिक रतनपुरिहा भादों गम्मत का हो रहा आयोजन
