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नागों के राजा वासुकी को समर्पित श्री नागवासुकी मन्दिर, प्रयागराज के बारे में पूरी जानकारी

By News Desk Mar 20, 2025
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श्री नागवासुकी मंदिर, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) में स्थित एक प्राचीन और पौराणिक हिंदू मंदिर है, जो नागों के राजा वासुकी को समर्पित है। यह मंदिर गंगा नदी के किनारे, दारागंज क्षेत्र के उत्तरी छोर पर संगम तट के निकट स्थित है। अपनी धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता के कारण यह मंदिर श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों के बीच विशेष रूप से प्रसिद्ध है। नीचे इस मंदिर के बारे में विस्तृत जानकारी दी जा रही है:


स्थान

  • पता: नागवासुकी मंदिर, दारागंज, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भारत।
  • यह मंदिर संगम (गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के मिलन स्थल) से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित है।

पौराणिक महत्व

नागवासुकी मंदिर का संबंध हिंदू धर्म के प्रमुख पौराणिक घटनाक्रम “समुद्र मंथन” से है। मान्यताओं के अनुसार:

  • समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों ने नागराज वासुकी को रस्सी के रूप में उपयोग किया था, जिसमें सुमेरु पर्वत को मथानी बनाया गया था।
  • इस प्रक्रिया में वासुकी का शरीर रगड़ और घर्षण से लहूलुहान हो गया था, जिसके कारण उन्हें असहनीय जलन हुई।
  • भगवान विष्णु ने उन्हें प्रयागराज आने और सरस्वती नदी का जल पीकर विश्राम करने की सलाह दी। वासुकी ने ऐसा ही किया और उनकी पीड़ा शांत हुई।
  • इसके बाद, देवताओं और ऋषियों ने उनसे इस पवित्र स्थल पर रहने की प्रार्थना की। वासुकी ने शर्त रखी कि उनकी पूजा सावन मास की नाग पंचमी को तीनों लोकों में होगी और प्रयाग आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए उनके दर्शन अनिवार्य होंगे। उनकी शर्त स्वीकार की गई, और तब से यह स्थान नागवासुकी मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

धार्मिक महत्व

  • कालसर्प दोष निवारण: इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने से कालसर्प दोष (ज्योतिष में एक ग्रह दोष) से मुक्ति मिलती है। यहाँ विशेष अनुष्ठान जैसे रुद्राभिषेक और हवन किए जाते हैं।
  • नाग पंचमी: सावन मास की नाग पंचमी के दिन यहाँ लाखों श्रद्धालु दर्शन और पूजन के लिए आते हैं। इस दिन विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें भक्त वासुकी को दूध चढ़ाते हैं और विधि-विधान से पूजा करते हैं।
  • शिव से संबंध: वासुकी भगवान शिव के परम भक्त हैं और उनके गले में आभूषण के रूप में विराजते हैं। इसलिए इस मंदिर का शिव भक्तों के लिए भी विशेष महत्व है।
  • पंचकोसी परिक्रमा: प्रयागराज की पंचकोसी परिक्रमा में यह मंदिर शामिल है। संगम स्नान के बाद वेणीमाधव, सोमेश्वर महादेव, अक्षयवट, भारद्वाज आश्रम के साथ नागवासुकी मंदिर के दर्शन से ही परिक्रमा पूर्ण मानी जाती है।

मंदिर की संरचना और इतिहास

  • प्राचीनता: मंदिर का निर्माण महाभारत काल से जोड़ा जाता है, हालाँकि इसका वर्तमान स्वरूप बाद के जीर्णोद्धार का परिणाम है। कुछ विशेषज्ञ इसे 10वीं शताब्दी का मानते हैं।
  • मूर्तियाँ: मंदिर के गर्भगृह में नागवासुकी और शेषनाग की भव्य मूर्तियाँ स्थापित हैं। ये मूर्तियाँ प्राचीन वास्तुशिल्प और शिल्पकला का उदाहरण हैं।
  • जीर्णोद्धार: इतिहास में इस मंदिर का जीर्णोद्धार नागपुर के राजा श्रीधर भोंसले द्वारा कराया गया था। हाल ही में, महाकुंभ 2025 की तैयारियों के तहत उत्तर प्रदेश सरकार ने इसका सौंदर्यीकरण और नवीनीकरण करवाया है।
  • औरंगजेब की कथा: लोककथाओं के अनुसार, मुगल सम्राट औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ने का प्रयास किया था। जब उसने मूर्ति पर तलवार चलाई, तो वासुकी का दिव्य रूप प्रकट हुआ, जिसे देखकर वह डर से बेहोश हो गया और मंदिर को क्षति नहीं पहुँचा सका।

विशेषताएँ और मान्यताएँ

  • दर्शन का महत्व: ऐसा माना जाता है कि प्रयागराज आने वाले किसी भी तीर्थयात्री की यात्रा तब तक अधूरी रहती है, जब तक वे नागवासुकी के दर्शन न करें।
  • अलौकिक शक्ति: मंदिर में पुजारी मानते हैं कि वासुकी रात में गर्भगृह में आते हैं। यहाँ रोज़ आरती के बाद उनके लिए बिस्तर लगाया जाता है, जो सुबह अस्त-व्यस्त मिलता है।
  • सावन और कुंभ: सावन मास और कुंभ मेले (माघ मेला, अर्धकुंभ, महाकुंभ) के दौरान यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। कुंभ में यह मंदिर तीर्थयात्रियों के लिए प्रमुख आकर्षण होता है।

वर्तमान स्थिति

  • सौंदर्यीकरण: महाकुंभ 2025 को ध्यान में रखते हुए मंदिर का भव्य नवीनीकरण किया गया है। मंदिर परिसर को सुंदर और सुविधाजनक बनाया गया है ताकि श्रद्धालुओं को बेहतर अनुभव मिले।
  • आसपास के मंदिर: इसके समीप अन्य मंदिर जैसे हनुमान मंदिर, राम जानकी मंदिर और हरित माधव मंदिर भी स्थित हैं, जो इसे धार्मिक दृष्टिकोण से और समृद्ध बनाते हैं।

कैसे पहुँचें

  • रेल मार्ग: प्रयागराज जंक्शन देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों में से एक है। यहाँ से मंदिर तक ऑटो, टैक्सी या स्थानीय परिवहन से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
  • सड़क मार्ग: प्रयागराज सड़क मार्ग से उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। मंदिर दारागंज क्षेत्र में होने के कारण आसानी से उपलब्ध है।
  • हवाई मार्ग: प्रयागराज का बमरौली हवाई अड्डा मंदिर से लगभग 15 किलोमीटर दूर है।

श्री नागवासुकी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह प्रयागराज की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का भी प्रतीक है। यहाँ दर्शन करने से न सिर्फ़ आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि पौराणिक कथाओं और परंपराओं से भी जुड़ाव महसूस होता है। यदि आप प्रयागराज की यात्रा पर हैं, विशेषकर कुंभ या सावन के दौरान, तो इस मंदिर के दर्शन अवश्य करें।

कालसर्प दोष क्या होता है? प्रयागराज स्थित श्रीनाग वासुकी मंदिर के अतिरिक्त भारत में कालसर्प दोष निवारण के प्रमुख मंदिर पूरी जानकारी:

कालसर्प दोष क्या होता है?

कालसर्प दोष ज्योतिष शास्त्र में एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली योग माना जाता है। यह तब बनता है जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में सभी सात ग्रह (सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि) राहु और केतु के बीच में आ जाते हैं। राहु को सर्प का मुख और केतु को उसकी पूंछ माना जाता है, और ये दोनों ग्रह हमेशा 180 डिग्री के अंतर पर होते हैं। जब ये ग्रह कुंडली में इस तरह स्थित होते हैं कि बाकी ग्रह इनके बीच फंस जाते हैं, तो इसे कालसर्प दोष कहा जाता है।

“काल” का अर्थ है समय और “सर्प” का अर्थ है सांप। यह दोष व्यक्ति के जीवन में लंबे समय तक कठिनाइयाँ और बाधाएँ ला सकता है। ऐसा माना जाता है कि यह पिछले जन्मों के कर्मों का परिणाम हो सकता है। कालसर्प दोष के प्रभाव से व्यक्ति को आर्थिक, मानसिक, शारीरिक और पारिवारिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसके लक्षणों में बार-बार असफलता, वैवाहिक जीवन में परेशानी, संतान सुख में कमी, नौकरी या व्यवसाय में रुकावट और मानसिक तनाव शामिल हो सकते हैं।

कालसर्प दोष के लक्षण:

कालसर्प दोष ज्योतिष शास्त्र में एक महत्वपूर्ण योग माना जाता है, जो कुंडली में तब बनता है जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में आ जाते हैं। इसके प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में कई तरह की चुनौतियाँ और परेशानियाँ आ सकती हैं। नीचे कालसर्प दोष के कुछ प्रमुख लक्षण दिए गए हैं:

  1. मानसिक अशांति: व्यक्ति को बार-बार तनाव, चिंता, और बेचैनी का अनुभव हो सकता है। नींद में कमी या बुरे सपने आना भी आम है।
  2. आर्थिक परेशानियाँ: धन संबंधी समस्याएँ जैसे अचानक नुकसान, कर्ज का बढ़ना, या आय के स्रोतों में रुकावट आना।
  3. पारिवारिक कलह: परिवार में तनाव, झगड़े, या रिश्तों में दरार पड़ना इसके लक्षण हो सकते हैं।
  4. करियर में रुकावट: नौकरी या व्यवसाय में बार-बार असफलता, प्रमोशन में देरी, या अस्थिरता का सामना करना।
  5. स्वास्थ्य समस्याएँ: लंबे समय तक चलने वाली बीमारियाँ, विशेष रूप से त्वचा, पेट, या नसों से संबंधित रोग।
  6. विवाह में देरी: शादीशुदा जीवन में परेशानियाँ या विवाह तय होने में बार-बार बाधाएँ आना।
  7. दुर्घटनाओं का भय: जीवन में बार-बार छोटी-मोटी दुर्घटनाएँ या जोखिम का सामना करना।
  8. आध्यात्मिक झुकाव या भय: कुछ लोगों में अत्यधिक धार्मिकता या फिर सांपों से संबंधित डर का अनुभव होना।

हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि कालसर्प दोष का प्रभाव कुंडली में ग्रहों की स्थिति, दोष के प्रकार (जैसे अनंत, कुलिक, वासुकी आदि), और व्यक्ति की दशा पर निर्भर करता है। इसे ठीक करने के लिए ज्योतिषी आमतौर पर पूजा-पाठ, मंत्र जाप (जैसे महामृत्युंजय मंत्र), या तीर्थ स्थानों पर अनुष्ठान की सलाह देते हैं।

कालसर्प दोष के 12 प्रमुख प्रकार होते हैं, जो राहु और केतु की कुंडली में स्थिति के आधार पर निर्धारित होते हैं। इनमें से कुछ हैं:

  • अनंत कालसर्प दोष: राहु पहले भाव में और केतु सातवें भाव में।
  • वासुकी कालसर्प दोष: राहु तीसरे भाव में और केतु नवम भाव में।
  • शंखपाल कालसर्प दोष: राहु चौथे भाव में और केतु दसवें भाव में।
  • कर्कोटक कालसर्प दोष: राहु आठवें भाव में और केतु दूसरे भाव में।

कालसर्प दोष निवारण के प्रमुख मंदिर

भारत में कालसर्प दोष के निवारण के लिए कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहाँ विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान किए जाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मंदिर निम्नलिखित हैं:

1. श्रीनाग वासुकी मंदिर, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

  • स्थान: यह मंदिर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में दारागंज मोहल्ले के उत्तरी छोर पर स्थित है।
  • विशेषता: यह मंदिर नागराज वासुकी को समर्पित है, जिन्हें भगवान शिव के गले का हार और समुद्र मंथन में रस्सी के रूप में प्रयुक्त होने के लिए जाना जाता है। मान्यता है कि यहाँ नागपंचमी के दिन दर्शन और पूजा करने से कालसर्प दोष दूर हो जाता है।
  • पूजा विधि: भक्तों को पहले संगम में स्नान करना चाहिए, फिर मटर, चना, फूल, माला और दूध लेकर मंदिर में वासुकी नाग की पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद इन सामग्रियों को अर्पित कर कालसर्प दोष निवारण की प्रार्थना की जाती है।
  • महत्व: पुराणों के अनुसार, गंगा की धारा नागराज वासुकी के फन पर गिरी थी, जिससे यहाँ भोगवती तीर्थ का निर्माण हुआ। यह मंदिर कालसर्प दोष निवारण के लिए उत्तर भारत में अत्यंत प्रसिद्ध है।

2. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, नासिक (महाराष्ट्र)

  • स्थान: यह मंदिर महाराष्ट्र के नासिक जिले में, त्र्यंबक क्षेत्र में स्थित है, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
  • विशेषता: त्र्यंबकेश्वर मंदिर को कालसर्प दोष निवारण के लिए सबसे प्रभावशाली स्थानों में से एक माना जाता है। यहाँ भगवान शिव के त्र्यंबक रूप की पूजा होती है, जो सभी संकटों को हरने वाले माने जाते हैं।
  • पूजा विधि: यहाँ कालसर्प शांति पूजा वैदिक अनुष्ठानों के साथ की जाती है। इसमें रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय मंत्र जाप और नाग पूजा शामिल होती है। पूजा आमतौर पर 4-5 घंटे तक चलती है और इसे ताम्रपत्रधारी पंडितों द्वारा संपन्न किया जाता है।
  • महत्व: यहाँ गंगा का उद्गम माना जाता है और ब्रह्मा-विष्णु-महेश का एकत्रित स्वरूप विराजमान है। यह स्थान कालसर्प दोष के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए देश भर में प्रसिद्ध है।

3. महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन (मध्य प्रदेश)

  • स्थान: मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित, यह भी 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
  • विशेषता: उज्जैन को महाकाल की नगरी कहा जाता है और यहाँ कालसर्प दोष निवारण पूजा के लिए विशेष महत्व है। यहाँ शिप्रा नदी के तट पर पूजा की जाती है।
  • पूजा विधि: यहाँ एक दिन की विशेष कालसर्प शांति पूजा की जाती है, जिसमें शिवलिंग पर अभिषेक, नाग पूजा और मंत्र जाप शामिल होते हैं। यह पूजा अनुभवी पंडितों द्वारा संपन्न की जाती है।
  • महत्व: मान्यता है कि यहाँ पूजा करने से कालसर्प दोष के दुष्प्रभाव जल्दी समाप्त हो जाते हैं और व्यक्ति को जीवन में शांति व समृद्धि मिलती है।

4. काल हस्ती मंदिर, चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)

  • स्थान: यह मंदिर उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में स्थित है।
  • विशेषता: यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और कालसर्प दोष निवारण के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ प्राकृतिक रूप से बने शिवलिंग की पूजा की जाती है।
  • पूजा विधि: यहाँ रुद्राभिषेक और नाग पूजा के साथ कालसर्प शांति पूजा की जाती है। नागपंचमी और सावन के महीने में यहाँ विशेष अनुष्ठान होते हैं।
  • महत्व: चित्रकूट धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और यहाँ पूजा करने से दोष के प्रभाव में कमी आती है।

5. श्री काल भैरव मंदिर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

  • स्थान: वाराणसी में स्थित यह मंदिर भगवान काल भैरव को समर्पित है।
  • विशेषता: काल भैरव को शिव का रूप माना जाता है और यहाँ कालसर्प दोष निवारण के लिए पूजा की जाती है।
  • पूजा विधि: यहाँ काल भैरव की पूजा के साथ-साथ राहु-केतु शांति पूजा और मंत्र जाप किया जाता है।
  • महत्व: वाराणसी एक पवित्र नगरी है और यहाँ पूजा करने से सभी प्रकार के दोषों से मुक्ति मिलने की मान्यता है।

कालसर्प दोष एक जटिल ज्योतिषीय स्थिति है, जिसके निवारण के लिए भारत में कई मंदिर और तीर्थ स्थल प्रसिद्ध हैं। प्रयागराज का श्रीनाग वासुकी मंदिर अपनी अनूठी मान्यता के लिए जाना जाता है, जहाँ दर्शन मात्र से दोष दूर होने की बात कही जाती है। इसके अलावा, त्र्यंबकेश्वर, उज्जैन, चित्रकूट और वाराणसी जैसे स्थान भी इस दोष के निवारण के लिए विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। इन मंदिरों में वैदिक विधि से पूजा करने से न केवल कालसर्प दोष के प्रभाव कम होते हैं, बल्कि जीवन में सुख-शांति और समृद्धि भी प्राप्त होती है।

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