अतुल्य भारत चेतना
समझेगी नहीं दुनिया कभी
फिर किसको क्या समझाए
व्यर्थ का क्यो टांग अड़ाए।
श्रीराम भी आकर जग मे
क्या?अवध को ही सुधार सके
सारे दानव को खत्म कर भी
कुछ दानवता को न मार सके।
एक धोबी के खातिर उसने
माता सीता को वन में पठाए।
नहीं समझेगी दुनिया कभी
फिर किसको क्या समझाए।
कुत्ते के दुम को कभी
कोई सीधा कर भी पाया है
वैसे ही मानव है यहां
जो झूठे जग मे भरमाया है
दुनिया के इस माया जाल में
जान बुझकर क्यों भरमाए।
समझेगी नहीं दुनिया कभी
फिर किसको क्या समझाए।
स्वार्थ में सभी सने हुए हैं
अंधकार आज घने हुए हैं
बुरे लोगों का जमाना आया
इसीलिए आज वे तने हुए हैं।
ऐसे में क्यों दीमाग खपाए।
समझेगी नहीं दुनिया कभी
फिर किसको क्या समझाए।
अपने को बस देखो यारों
भाड़ में जाए ये दुनिया
कोई बजाये कुछ भी क्या
हम बजाए हारमोनिया ।
फ़ुरसत कहां है अब किसी को
किसी के दुःख में कोई
रोए गाएं।
समझेगी नहीं दुनिया कभी
फिर किसको क्या समझाए।
प्रमोद कश्यप, रतनपुर, स्वरचित,