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Chhindwara news; तामिया में आदि गुरु शंकराचार्य जयंती: एकात्म पर्व के रूप में व्याख्यानमाला का भव्य आयोजन

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अतुल्य भारत चेतना
डॉ. मीरा पराड़कर

छिंदवाड़ा/मध्यप्रदेश। मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद के तत्वावधान में तामिया विकासखंड, छिंदवाड़ा में आदि गुरु शंकराचार्य जी की जयंती को एकात्म पर्व के रूप में उत्साहपूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर एक व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया, जिसमें सनातन धर्म, अद्वैत वेदांत, और सामाजिक एकता के विचारों पर गहन चर्चा हुई। कार्यक्रम का आयोजन जिला समन्वयक अखिलेश जैन के निर्देशन और विकासखंड समन्वयक संजय वामने के मार्गदर्शन में किया गया।

आयोजन का शुभारंभ:

कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती और आदि गुरु शंकराचार्य के चित्र पर पूजा-अर्चना और माल्यार्पण के साथ हुई। इस अवसर पर मां नैना देवी माता मंदिर, तुलतुला के महंत व राष्ट्रीय संत श्री झीनानंद जी महाराज मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। अन्य प्रमुख अतिथियों में वरिष्ठ भाजपा नेता व महामंत्री दुर्गेश सलामे, धर्म जागरण मंच के प्रांत प्रवक्ता व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चंद्रशेखर श्रीवास शामिल थे। मंच का संचालन परामर्शदाता संदीप राज ने किया, जबकि स्वागत उद्बोधन और जन अभियान परिषद का परिचय भूविक सोशल वेलफेयर सोसाइटी के परामर्शदाता सुभाष मिनोटे ने दिया।

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आदि गुरु शंकराचार्य के जीवन और दर्शन पर चर्चा

मुख्य वक्ता चंद्रशेखर श्रीवास ने अपने उद्बोधन में आदि गुरु शंकराचार्य के जीवन दर्शन को कल्याणकारी और एकात्म मानवतावाद का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा, “आदिगुरु शंकराचार्य प्रत्येक वस्तु में ईश्वर का अनुभव करते थे। मात्र 23 वर्ष की आयु में उन्होंने वेदांत और उपनिषदों का पूर्ण अध्ययन किया, जो उनकी अद्भुत विद्वता को दर्शाता है।” श्रीवास ने उनके द्वारा स्थापित चार मठों (ज्योतिर्मठ, द्वारका, पुरी, और श्रृंगेरी) और सनातन धर्म को विदेशी आक्रांताओं के षड्यंत्रों से बचाने में उनके योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने ‘सर्वं खल्विदं ब्रह्म’ के सिद्धांत के माध्यम से एकात्मक ईश्वरवाद को समाज में स्थापित करने के उनके प्रयासों की सराहना की।

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वरिष्ठ भाजपा नेता दुर्गेश सलामे ने शंकराचार्य के नाम का अर्थ सरल शब्दों में समझाते हुए कहा, “शंकर के समान आचरण करने वाला ही शंकराचार्य है। आदिवासी समाज उनके आदर्शों का साक्षात उदाहरण रहा है, लेकिन आज हमें अपने मूल्यों की ओर लौटने की आवश्यकता है।” उन्होंने समाज को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने के लिए शंकराचार्य के दर्शन को अपनाने का आह्वान किया। ग्राम विकास प्रस्फुरण समिति, अलीवाड़ा के अध्यक्ष आसाराम कवरेती ने शंकराचार्य के जीवन दर्शन को सामाजिक विकास से जोड़ा। उन्होंने कहा, “हमें शासन पर निर्भर रहने के बजाय स्वयं को सशक्त करना होगा और आदर्श ग्राम की कल्पना को साकार करना होगा।” इसी तरह, सतपुड़ांचल जन कल्याण समिति के अध्यक्ष धर्मेंद्र वासनिक ने शंकराचार्य के दर्शन को सामाजिक समरसता और एकता का आधार बताया।

मुख्य अतिथि का आशीर्वचन

मुख्य अतिथि संत श्री झीनानंद जी महाराज ने अपने आशीर्वचन में ‘सर्वजन हिताय’ की भावना पर बल दिया। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य का दर्शन हमें सभी के कल्याण के लिए कार्य करने की प्रेरणा देता है। उनके वचनों ने उपस्थित लोगों में आध्यात्मिक और सामाजिक जागरूकता का संचार किया।

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सहभागिता: सामुदायिक नेतृत्व और स्वैच्छिक संगठनों की भूमिका

कार्यक्रम में तामिया विकासखंड की विभिन्न नवांकुर संस्थाओं, ग्राम विकास प्रस्फुरण समितियों, और मुख्यमंत्री सामुदायिक नेतृत्व क्षमता विकास पाठ्यक्रम के छात्र-छात्राओं ने सक्रिय भागीदारी की। सतपुड़ांचल जन कल्याण समिति, उषा समाज कल्याण महिला बाल विकास समिति, ग्राम विकास प्रस्फुरण समिति टेकपार, और दादाजी जन कल्याण समिति के प्रतिनिधियों, जिनमें प्रदीप उइके, गौरीशंकर उइके, और अनिल पंद्राम शामिल थे, ने आयोजन को समृद्ध बनाया। परामर्शदाता चंद्रकांत विश्वकर्मा, पंकज राय, और स्वाति सूर्यवंशी ने अतिथियों का स्वागत किया, जबकि विश्वकर्मा ने कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन किया।

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जन अभियान परिषद की भूमिका

मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद का उद्देश्य शासन और समाज के बीच सेतु के रूप में कार्य करना है। यह आयोजन जन अभियान परिषद के सामुदायिक विकास और जागरूकता के लक्ष्यों को दर्शाता है। परिषद द्वारा समर्थित स्वैच्छिक संगठन, जैसे भूविक सोशल वेलफेयर सोसाइटी, सामाजिक उत्थान और सांस्कृतिक संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इस आयोजन ने स्थानीय समुदाय को शंकराचार्य के दर्शन के माध्यम से आत्मनिर्भरता और सामाजिक समरसता की दिशा में प्रेरित किया।

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तामिया में आदि गुरु शंकराचार्य जयंती का यह आयोजन न केवल एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव था, बल्कि सामाजिक जागरूकता और एकता का भी प्रतीक बना। व्याख्यानमाला ने शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत और एकात्मक दर्शन को जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस प्रकार के आयोजन समाज को सनातन धर्म के मूल्यों और सामुदायिक विकास के लिए प्रेरित करते हैं।

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