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4 जून को मनाया जाएगा जेष्ठ माह का दूसरा बड़े मंगलवार

By News Desk Jun 3, 2024
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अतुल्य भारत चेतना
वीरेंद्र यादव

28 मई 2024 को पहला बड़ा मंगल था और अब 4 जून 2024 मंगलवार के दिन दूसरा बड़ा मंगल रहेगा। ज्येष्‍ठ माह के सभी मंगल को बुढ़वा मंगल और बड़ा मंगल कहते हैं। इसके बाद 11 जून और फिर 18 जून को मंगलवार रहेगा। सभी दिन हनुमानजी के साथ रामजी की पूजा का है खास महत्व। आओ जानते हैं कि कैसे करें हनुमान पूजा और क्या महत्व है दूसरे बड़ा मंगल का साथ ही जानें मंगलवार के नियम।

महत्व:- दक्षिण भारत की मान्यता के अनुसार इन में से किसी एक मंगलवार को प्रभु श्रीराम और हनुमानजी का मिलन हुआ था और एक को हनुमानजी का जन्म। इस दिन हनुमान जी की पूजा करने से जीवन की सभी दुख – तकलीफें दूर हो जाती हैं।

बड़ा मंगल के दिन करें ये 5 उपाय:-

  1. हनुमान मंदिर में रसीला पान चढ़ाएं।
  2. लाल परिधान छोटे बच्चों को दें, स्वयं भी खरीदें।
  3. लाल अनाज लाल वस्त्र में दक्षिणा के साथ लपेटकर हनुमान मंदिर में चढ़ाएं।
  4. लाल शर्बत बंटवाएं।
  5. बच्चों में लाल रंग के फल बांटे

मंगलवार के नियम:-

इस दिन लहसुन, प्याज, नॉनवेज, अंडा, नमक, शराब आदि सभी तरह की तामसिक खाद्य पदार्थों का त्याग कर देने चाहिए।
मंगलवार को उधार लेना और देना अशुभ माना जाता है।
इस दिन सफेद और काले वस्त्रों का भी त्याग कर दिया जाता है।
इस दिन किसी का अपमान न करें, क्रोध न करें, अपशब्द न बोलें, ब्रह्मचर्य का पालन करें।
आज उत्तर दिशा में दिशाशूल है। यदि यात्रा करना जरूरी हो तो गुड़खाकर ही यात्रा करें।

हनुमान पूजा विधि:-

प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत हो व्रत का संकल्प लें और पूजा की तैयारी करें।

नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद हनुमानजी की मूर्ति या चि‍त्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें और आप खुद कुश के आसन पर शुद्ध और पवित्र वस्त्र पहनकर बैठें।

मूर्ति को स्नान कराएं और यदि चित्र है तो उसे अच्छे से साफ करें। इसके बाद धूप, दीप प्रज्वलित करके पूजा प्रारंभ करें।

हनुमानजी को अनामिका अंगुली से तिलक लगाएं, सिंदूर अर्पित करें, गंध, चंदन आदि लगाएं और फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं।

अच्छे से पंचोपचार पूजा करने के बाद उन्हें प्रसाद या नैवेद्य (भोग) अर्पित करें। नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है।

अंत में हनुमानी की आरती उतारें और उनकी आरती करें। उनकी आरती करके नैवेद्य को पुन: उन्हें अर्पित करें और अंत में उसे प्रसाद रूप में सभी को बांट दें।

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