अतुल्य भारत चेतना
रईस
बहराइच। 25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक लेकिन विनाशकारी फैसले ने उत्तर प्रदेश के लगभग 1.72 लाख शिक्षामित्रों के जीवन को पूरी तरह बदल दिया। इस फैसले ने शिक्षामित्रों के सहायक शिक्षक पद पर समायोजन को निरस्त कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप हजारों शिक्षामित्र मानसिक अवसाद, आर्थिक तंगी, और गंभीर बीमारियों से जूझने को मजबूर हुए। कई शिक्षामित्रों ने इलाज के अभाव में असमय ही अपनी जान गंवा दी। इस दुखद दिन की स्मृति में बहराइच के जिला पंचायत सभागार में 25 जुलाई 2025 को शिक्षामित्रों ने एकत्रित होकर अपने दिवंगत साथियों को श्रद्धांजलि अर्पित की और उत्तर प्रदेश सरकार की उदासीनता के खिलाफ मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन सिटी मजिस्ट्रेट को सौंपा।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और उसका प्रभाव
25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में 1.72 लाख शिक्षामित्रों के सहायक शिक्षक पद पर समायोजन को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक बनने के लिए टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) पास करना अनिवार्य होगा, और उन्हें इसके लिए दो अवसर दिए जाएंगे। साथ ही, उनके अनुभव को वेटेज देने की शर्त भी रखी गई। इस फैसले ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द किया गया था।
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हालांकि, इस फैसले ने शिक्षामित्रों के सामने एक अनिश्चित भविष्य खड़ा कर दिया। डॉ. अनवारुल के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार की उदासीनता और बार-बार किए गए वादों की अनदेखी ने शिक्षामित्रों को मानसिक और आर्थिक संकट में डाल दिया। हजारों शिक्षामित्रों ने मानसिक अवसाद, आर्थिक तंगी, और गंभीर बीमारियों के कारण अपनी जान गंवाई। कई शिक्षामित्रों ने आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाया, जबकि अन्य इलाज के अभाव में असाध्य रोगों से ग्रस्त होकर असमय मृत्यु को प्राप्त हुए।
बहराइच में श्रद्धांजलि सभा
25 जुलाई 2025 को बहराइच के जिला पंचायत सभागार में सैकड़ों शिक्षामित्र एकत्र हुए और अपने उन साथियों को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने इस संकट के कारण अपनी जान गंवाई। इस सभा में शिक्षामित्रों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सरकार की उदासीनता को “शिक्षामित्रों के जीवन का काला दिवस” करार दिया। सभा में उपस्थित शिक्षामित्रों ने एक स्वर में सरकार से मांग की कि उनकी समस्याओं का स्थायी समाधान किया जाए और उनके सम्मानजनक पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
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शिक्षामित्रों ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि वे वर्षों से प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कम वेतन पर कार्य करते हुए शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने में योगदान दे रहे थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सरकार की अनदेखी ने उनके परिवारों को आर्थिक और सामाजिक संकट में डाल दिया। सभा में मौजूद कई शिक्षामित्रों ने अपने अनुभव साझा किए और बताया कि कैसे इस फैसले ने उनके परिवारों की आजीविका और भविष्य को प्रभावित किया।
मुख्यमंत्री को ज्ञापन
श्रद्धांजलि सभा के बाद, शिक्षामित्रों ने एकजुट होकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन सिटी मजिस्ट्रेट को सौंपा। इस ज्ञापन में शिक्षामित्रों ने अपनी मांगें दोहराईं, जिनमें शामिल हैं:
शिक्षामित्रों का सम्मानजनक पुनर्वास: शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के रूप में समायोजित करने के लिए नई नीति बनाई जाए, जिसमें उनके अनुभव को प्राथमिकता दी जाए।
आर्थिक सहायता: जिन शिक्षामित्रों ने इस संकट के कारण अपनी जान गंवाई, उनके परिवारों को आर्थिक सहायता और सरकारी नौकरी प्रदान की जाए।
TET में छूट: शिक्षामित्रों के लिए TET पास करने की शर्त में आयु सीमा और अन्य छूट प्रदान की जाए, ताकि वे नियमित शिक्षक बन सकें।
स्वास्थ्य और मानसिक सहायता: मानसिक अवसाद और बीमारियों से जूझ रहे शिक्षामित्रों के लिए मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
ज्ञापन में शिक्षामित्रों ने सरकार की उदासीनता पर कड़ा रोष व्यक्त किया और कहा कि यदि उनकी मांगों पर शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई, तो वे बड़े स्तर पर आंदोलन करने को बाध्य होंगे।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
25 जुलाई 2017 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों के लिए एक काला अध्याय बन गया। सोशल मीडिया पर कई शिक्षामित्रों ने इस दिन को “शिक्षामित्रों के जीवन का काला दिवस” करार देते हुए अपनी पीड़ा व्यक्त की। एक X पोस्ट में लिखा गया, “25 जुलाई वह दिन था, जब लाखों परिवारों पर काल बनकर छा गया। सरकारी खंजर से बेगुनाहों का कत्ल हुआ और आज भी यह सिलसिला जारी है।”
यह मुद्दा न केवल सामाजिक, बल्कि राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील रहा है। शिक्षामित्रों ने विभिन्न मंचों पर अपनी मांगें उठाई हैं, लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस समाधान नहीं मिला है। 2017 के बाद से कई बार शिक्षामित्रों ने लखनऊ और अन्य शहरों में प्रदर्शन किए, लेकिन उनकी मांगें अनसुनी रही हैं।
भविष्य की दिशा
शिक्षामित्रों का यह आंदोलन और श्रद्धांजलि सभा बहराइच में उनकी एकजुटता और दृढ़ संकल्प को दर्शाती है। डॉ. अनवारुल ने कहा, “शिक्षामित्रों ने वर्षों तक शिक्षा के क्षेत्र में योगदान दिया, लेकिन आज उन्हें उपेक्षा और तिरस्कार का सामना करना पड़ रहा है। हमारी मांग है कि सरकार उनकी गरिमा और आजीविका की रक्षा करे।”
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बहराइच में आयोजित यह सभा न केवल शिक्षामित्रों की पीड़ा को सामने लाती है, बल्कि सरकार और समाज से उनके प्रति संवेदनशीलता और सहानुभूति की मांग भी करती है। शिक्षामित्रों का कहना है कि यदि उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो वे पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करेंगे। यह सभा शिक्षामित्रों के संघर्ष का एक प्रतीक बनी, जो न केवल अपनी आजीविका, बल्कि अपने सम्मान और भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं। 25 जुलाई 2017 का वह फैसला शिक्षामित्रों के लिए एक त्रासदी बन गया, जिसके दर्द को बहराइच के शिक्षामित्रों ने इस सभा में व्यक्त किया। यह आयोजन न केवल उनके दिवंगत साथियों को श्रद्धांजलि थी, बल्कि सरकार को यह चेतावनी भी थी कि शिक्षामित्र अब और उपेक्षा सहन नहीं करेंगे। उनकी मांगों का समाधान और सम्मानजनक पुनर्वास ही इस संकट का एकमात्र हल हो सकता है।