
है मनुज का आधार जो।
पालक है जो, संचार है जो।।
जिनके सृजन से सृष्टि है।
जिनकी ममतामई सी दृष्टि है।।
उनके लिए बस एक दिन।
ये तो उचित है प्यार नही।।
ये दिखावे का “मदर डे” ।
हमको है स्वीकार नहीं।।
जो मां तेरी पालन की खातिर।
थी खटती कड़कती धूप में।।
तुझे दे निवाला प्यार का।
खुद सो गई वो भूख में।।
जिसके छांव में तुम बड़े हुए।
आज पैर पे हो खड़े हुए।।
उसके लिए महज एक दिन का।
ओछापन सा प्यार ये ।।
लगे दे रहा है भीख उन्हे।
या चुका रहा है उधार कोई।।
ये दिखावे का “मदर डे” ।
हमको है स्वीकार नहीं।।
– आकाश कुमार सिंह
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