
जागरण के समय में शयन यदि किया
तो तुम्हारी कहानी मिलेगी नहीं !
हर नयन में भरे अश्रु हैं तो सही
दूसरे की व्यथा कौन सुनता यहाँ
खोजने में लगे हैं विजय सूत्र सब
हारने की कथा कौन सुनता यहाँ
भूल से भी कभी छिन गयी यदि कहीं
तो पुनः राजधानी मिलेगी नहीं !
लोग अपने भ्रमों में घिरे इस तरह
हर किसी को महकते सुमन चाहिए
किन्तु तय ही नहीं कर सके आज तक
पूर्णिमा चाहिये या ग्रहण चाहिये
मन करे तो बसा लीजिये द्वारका
गाय गोकुल मथानी मिलेगी नहीं !
किस तरह खण्डहर हो चुके हैं सभी
हो समय तो पुराने महल देखना
कुछ पुरानी कथाएं पढ़ो और फिर
तुम स्वयं की तरफ एक पल देखना
एक ही चूक पर्याप्त है नाश को
फिर कहीं भी निशानी मिलेगी नहीं !
-ज्ञानप्रकाश आकुल
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