
तू उठ, तू चल, तू दौड़
कौन क्या कहता है
उसकी परवाह न कर।
जब तुझे खुद है पता
कि मंजिल मेरी है कहां
बेदर्द दुनिया के लोगों से
कभी तू मत डर।
तू उठ, तू चल, तू दौड़
कौन क्या कहता है
उसकी परवाह न कर।
गऱ यकीं है तेरी मेहनत में
आज नहीं तो कल छायेगा
कहने वाले कहते रहेंगे
वो कुछ नहीं कर पायेगा।
तुम्हारी कामयाबी वो
देखते ही रह जायेगा।
तू लड़ परिस्थितियों से
जीवन है एक समर।
तू उठ, तू चल तू दौड़
कौन क्या कहता है
उसकी परवाह न कर।
मंजिल कहां मुश्किल
जब पक्के हो इरादे
सफलता मिलेगी जरूर
जब दृढ़ हो तेरे वादे।
नेक है जब तेरे इरादे
नहीं आयेगी बाधा तेरे डगर।
तू उठ, तू चल, तू दौड़
कौन क्या कहता है
उसकी परवाह न कर।
इरादों की दृढ़ता ही
मंजिल तक पहुंचाती है
सीढ़ियों पर चढ़ने का
मग आसान बनाती है।
मंजिल पाने तू पी
पीना पड़े यदि जहर।
तू उठ, तू चल, तू दौड़
कौन क्या कहता है
उसकी परवाह न कर।
मंजिल उसी को मिलती हैं
जो कर्म पथ पर बढ़ता है
कर्महीन मानव तो जग में
जीते जी मरता है।
तू लड़ अन्यायी जग से
जीते जी मत मर।
तू उठ, तू चल, तू दौड़
कौन क्या कहता है
उसकी परवाह न कर।
-आस्था कश्यप
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