
भूख लगी है रोटी देते
भाषन देकर क्या होगा।
दे सकते हों तो रोजी दें
राशन देकर क्या होगा।।
बड़की बाढ़ मे धान बह गया
घर का सब सामान बह गया।
बिना ग्रहस्ती का ग्रहस्त है
कच्चा बना मकान ढह गया।
कर्जे पर जो फसल खडी थी
उसके खातिर बहुत बड़ी थी।
पानी संग अरमान बह गया।
अम्मा की आखें खुलनी थीं ‘
बाबू को तीरथ जाना था ।
छुटके की वनियान फटी थी
बड़के का बस्ता लाना था।
विटिया की शादी करनी थी
लेकिन मन का मान ढह गया।
कल कर्जे दारी अकड़ेगी
कसकर गिरहवान पकड़ेगी।
साहूकारों के आगे सब,
बचा खुचा सम्मान ढह गया।
अब जब उसको जहर चाहिए
भोजन देकर क्या होगा।
भूख लगी है रोटी देते,
भाषन देकर क्या होगा।
दे सकते हों तो रोजी दें
राशन देकर क्या होगा।
पानी की है अजब कहानी।
कुछ बह गया चढ़ा जब पानी।
कुछ ढह गया जब उतरा पानी।
पानी चढा तो फसल बह गई
उतरा तब सब मान ढह गया।
राहत जो आयी सरकारी
बाबू खा गये कुछ पटवारी।
पटवारी की कार आ गयी।
सारा दर्द किसान सह गया।
अब जब गुलशन उजड़ गया
आश्वासन देकर क्या होगा।
भूख लगी है रोटी देते
भाषन देकर क्या होगा।
दे सकते हों तो रोजी दें
राशन देकर क्या होगा।।
-महेश मिश्र “मानव”
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