अतुल्य भारत चेतना
रईस
बहराइच। मदरसा नूरुल उलूम बहराइच के पूर्व प्रधानाचार्य और हदीस के प्रोफ़ेसर मौलाना मुफ़्ती ज़िकरुल्लाह क़ासमी का आज फ़ज्र की नमाज़ के बाद लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। यह समाचार, शैक्षणिक जगत और उनके चाहने वालों के बीच दुःख और अफ़सोस के साथ सुना गया।
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जुमे की नमाज़ के बाद, हज़ारों लोगों की मौजूदगी में जामा मस्जिद में जनाज़ा की नमाज़ जामिया नूरुल उलूम के प्रोफ़ेसर मुफ़्ती महमूदुल हसन क़ासमी की इमामत में अदा की गई, और उन्हें खाकी शाह तकिया कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। जनाज़े में शामिल होने आए लोगों की भारी संख्या को देखते हुए, जनाज़े में बाँस लगाए गए थे। जनाज़े के साथ चलने वाले जितने लोग थे लगभग उतने ही लोग कब्रिस्तान में पहले से मौजूद थे। वह मौलाना सैयद फखरुद्दीन अहमद मुरादाबादी के शिष्य थे, उन्हें फकी़हुल-उम्मत मौलाना मुफ्ती महमूदुल-हसन गंगोही का विशेष अनुग्रह प्राप्त था, और हकीम-उल-इस्लाम मौलाना कारी मुहम्मद तैय्यब कासमी की मजलिस के उपस्थित लोगों में से एक थे।
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दारुल उलूम देवबंद से फ़राग़त के बाद उन्होंने अपना अधिकांश जीवन पढ़ने पढ़ाने, और दीन के प्रचार-प्रसार में बिताया। शुरुआत में, उन्होंने मदरसा खादिम-उल-इस्लाम बागोंवाली हापुड़ में एक शिक्षक के रूप में कार्य किया। जून 1973 में वह पूर्वी भारत के महान धार्मिक शिक्षण संस्थान जामिया अरबिया मसौदिया नूरूल-उलूम में आ गए, और अपनी मृत्यु तक (गंभीर बीमारी की अवधि को छोड़कर) इससे जुड़े रहे। इस दौरान, दर्स निज़ामी की छोटी किताबों से लेकर मिश्कात और मुस्लिम शरीफ की किताबों का दर्स दिया।
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उनसे पढ़े हुए सैकड़ों छात्र आज भी बहराइच जिले में ही नहीं बल्कि पूरे देश में धर्म की सेवा में लगे हुए हैं। दिवंगत मौलाना जामिया नूर-उल-उलूम में लंबे समय तक दारुल इफ्ता से भी जुड़े रहे। इस दौरान उन्होंने कई विषयों पर फतवे लिखे।