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Gulabganj news; श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी का संदेश: महाविनाश के बाद सतयुग में आएंगे श्रीकृष्ण

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अतुल्य भारत चेतना
ब्युरो चीफ हाकम सिंह रघुवंशी

गुलाबगंज/विदिशा। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय, गुलाबगंज में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव 13 अगस्त 2025 को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर पालकी में सजे भगवान श्रीकृष्ण की मनमोहक झांकी का दर्शन सभी श्रद्धालुओं ने किया। कार्यक्रम में ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी और रुक्मणी दीदी ने अपने प्रेरक विचारों से उपस्थित लोगों को आध्यात्मिकता और पवित्रता की राह पर चलने की प्रेरणा दी। यह आयोजन न केवल जन्माष्टमी का उत्सव था, बल्कि यह आत्मचिंतन और सतयुगी सृष्टि की अवधारणा को समझने का भी एक महत्वपूर्ण अवसर बना।

ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी का उद्बोधन

ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत में भ्रष्टाचार, विकार, दुख, और धर्मग्लानि को देखकर लोग श्रीकृष्ण के पुनः प्रकट होने की आशा रखते हैं, क्योंकि गीता में वर्णित महावाक्य “जब-जब धर्म की ग्लानि होती है, तब-तब मैं अवतरित होता हूं” को वे श्रीकृष्ण से जोड़ते हैं। लेकिन वास्तव में यह महावाक्य अशरीरी परमपिता परमात्मा ज्योतिर्लिंगम शिव का है। उन्होंने स्पष्ट किया कि श्रीकृष्ण कलियुगी, अपवित्र, और भ्रष्टाचारी सृष्टि में पांव नहीं रख सकते। श्रीकृष्ण तो सतयुग के आरंभ में जन्म लेते हैं, जब सृष्टि पूर्ण पावन और सुखी होती है, जिसे ‘सुखधाम’ या ‘वैकुण्ठ’ कहा जाता है। स्वयंवर के बाद श्रीकृष्ण को ‘श्री नारायण’ और श्री राधे को ‘श्री लक्ष्मी’ कहा जाता है, जैसे त्रेतायुग में जानकी जी को ‘श्री सीताजी’ कहा गया।

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रेखा दीदी ने बताया कि परमपिता परमात्मा शिव हर कल्प के अंत में प्रजापिता ब्रह्मा के तन में अवतरित होकर आदि सनातन देवी-देवता धर्म की पुनः स्थापना करते हैं। महादेव शंकर के माध्यम से वे मनुष्यों को महाभारत-प्रसिद्ध विश्व-युद्ध के लिए प्रेरित कर अधर्म और भ्रष्टाचारी सृष्टि का महाविनाश कराते हैं। इसके बाद ही विष्णु के साकार रूप श्रीकृष्ण (श्री नारायण) जन्म लेकर सतयुगी सृष्टि की पालना करते हैं। उन्होंने कहा कि अब भगवान शिव अपने दोनों ईश्वरीय कर्तव्यों—प्रजापिता ब्रह्मा और महादेव शंकर—के माध्यम से कार्य कर रहे हैं, और निकट भविष्य में होने वाले एटॉमिक विश्व-युद्ध और महाविनाश के बाद सतयुगी सृष्टि के आरंभ में पुनः श्रीकृष्ण आएंगे।

ब्रह्माकुमारी रुक्मणी दीदी का संदेश

ब्रह्माकुमारी रुक्मणी दीदी ने जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर अपनी शुभकामनाएं देते हुए आत्मचिंतन पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “जन्माष्टमी के दिन हमें अपने अंतःकरण में झांककर देखना चाहिए। श्रीकृष्ण को ‘मनमोहन’ कहने से लक्ष्य की सिद्धि नहीं होगी। हमें यह परखना होगा कि हमारे मन को वास्तव में श्याम ने मोहित किया है या काम ने। यदि हमारे अंदर विकार हैं, तो बाह्य रूप से श्रीकृष्ण-गोविंद के भजन गाने से सद्गति नहीं मिलेगी। यह तो ‘बगल में छुरी और मुंह में राम-राम’ जैसा होगा।”

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उन्होंने आगे कहा, “यदि श्रीकृष्ण से सच्चा प्यार है और उनके वैकुण्ठ में जाना चाहते हैं, तो पूर्ण पवित्रता अपनानी होगी। विकारी और आसुरी स्वभाव वाली आत्माएं वैकुण्ठ में प्रवेश नहीं कर सकतीं और उनका श्रीकृष्ण से कोई संबंध नहीं हो सकता। श्रीकृष्ण सर्वगुण संपन्न, सोलह कला संपूर्ण, और संपूर्ण अहिंसक थे। इसलिए हमें देखना चाहिए कि हमने कितने दैवी गुण धारण किए हैं और पवित्रता की कितनी कलाएं अपनाई हैं।”

कार्यक्रम का स्वरूप और प्रभाव

गुलाबगंज में ब्रह्माकुमारी संस्थान द्वारा आयोजित यह जन्माष्टमी महोत्सव भक्ति और आध्यात्मिकता का संगम बना। पालकी में सजे श्रीकृष्ण की झांकी ने श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। रेखा दीदी और रुक्मणी दीदी के विचारों ने उपस्थित लोगों को आत्मचिंतन और पवित्रता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। स्थानीय निवासी रमेश साहू ने कहा, “यह आयोजन हमें श्रीकृष्ण के सतयुगी स्वरूप और पवित्रता के महत्व को समझाता है।” एक अन्य श्रद्धालु, शांति बाई, ने कहा, “झांकी और दीदीजी के विचारों ने हमें आध्यात्मिक जागरण की ओर प्रेरित किया।”

सामुदायिक और आध्यात्मिक महत्व

यह जन्माष्टमी महोत्सव न केवल एक धार्मिक उत्सव था, बल्कि यह आध्यात्मिक जागरण और सतयुगी सृष्टि की अवधारणा को समझने का अवसर भी प्रदान करता है। ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी और रुक्मणी दीदी के संदेशों ने श्रद्धालुओं को विकारों से मुक्त होकर पवित्रता और दैवी गुणों को अपनाने की प्रेरणा दी। यह आयोजन ब्रह्माकुमारी संस्थान की आध्यात्मिक शिक्षा और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।

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गुलाबगंज में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा आयोजित यह जन्माष्टमी महोत्सव सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। श्रीकृष्ण की झांकी और दीदीजी के प्रेरक विचारों ने श्रद्धालुओं में भक्ति, पवित्रता, और सतयुगी चेतना को जागृत किया।

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