श्रावस्ती जिला, उत्तर प्रदेश के देवीपाटन मंडल में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है। यह जिला हिमालय की तलहटी में बसा है और भारत-नेपाल सीमा के निकट स्थित है। इसका मुख्यालय भिनगा है, जो लखनऊ से लगभग 175 किलोमीटर दूर है। श्रावस्ती का ऐतिहासिक महत्व मुख्य रूप से बौद्ध धर्म से जुड़ा है, क्योंकि भगवान बुद्ध ने अपने जीवन के 24 चतुर्मास (वर्षावास) यहीं बिताए थे। इसके अलावा, यहाँ जैन धर्म और हिंदू धर्म से संबंधित स्थल भी हैं, जो इसे एक बहु-धार्मिक तीर्थ स्थल बनाते हैं। नीचे श्रावस्ती जिले के प्रमुख पर्यटन स्थलों, उनके ऐतिहासिक महत्व और स्थान के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है:
श्रावस्ती जिले का पौराणिक इतिहास
श्रावस्ती का इतिहास अत्यंत प्राचीन और समृद्ध है, जो भारतीय महाकाव्यों रामायण और महाभारत से लेकर बौद्ध और जैन धर्म के महत्वपूर्ण काल तक फैला हुआ है। यह उत्तर प्रदेश के एक ऐतिहासिक जिले के रूप में जाना जाता है, जिसका नाम पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्यवंशी राजा श्रावस्त से लिया गया है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह नाम महाभारत में वर्णित राजा श्रावस्त से उत्पन्न हुआ, जो पृथु की छठी पीढ़ी में थे। इस नगर की स्थापना इन्हीं के नाम पर हुई थी।
रामायण के अनुसार, श्रावस्ती को भगवान राम के पुत्र लव और कुश से भी जोड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि वनवास के बाद माता सीता को लक्ष्मण ने इसी क्षेत्र में छोड़ा था, और लव-कुश ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। महाभारत में भी इसका उल्लेख मिलता है, जहां इसे कौशल देश का एक प्रमुख नगर बताया गया है। प्राचीन काल में यह उत्तर कौशल की राजधानी थी, जो बाद में अयोध्या से स्थानांतरित होकर श्रावस्ती में स्थापित हुई।
श्रावस्ती का सबसे गौरवशाली काल बौद्ध धर्म से जुड़ा है। भगवान बुद्ध ने अपने जीवन के 24 चतुर्मास (वर्षावास) यहीं बिताए थे। बौद्ध ग्रंथों में इसे “सावत्थी” के नाम से जाना जाता है। यहाँ के प्रसिद्ध व्यापारी अनाथपिंडक ने बुद्ध के लिए जेतवन विहार बनवाया था, जो उस समय का एक प्रमुख बौद्ध केंद्र था। बुद्ध ने यहाँ कई चमत्कार किए, जिसमें राजा प्रसेनजित के दरबार में अलौकिक शक्तियों का प्रदर्शन और डाकू अंगुलिमाल का उद्धार शामिल है। अंगुलिमाल, जो राहगीरों को लूटकर उनकी उंगलियों की माला बनाता था, बुद्ध की शिक्षाओं से प्रभावित होकर उनका अनुयायी बन गया था।
जैन धर्म में भी श्रावस्ती का विशेष महत्व है। यहाँ जैन तीर्थंकर संभवनाथ से संबंधित कई कथाएँ प्रचलित हैं। इसके अलावा, चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृतांतों में श्रावस्ती की समृद्धि और धार्मिक महत्व का वर्णन किया है। समय के साथ यह नगर अपने प्राचीन गौरव को खो बैठा और आज इसके भग्नावशेष सहेत-महेत क्षेत्र में देखे जा सकते हैं।
भौगोलिक विस्तार
श्रावस्ती जिला उत्तर प्रदेश के उत्तरी भाग में हिमालय की तलहटी में स्थित है। यह भारत-नेपाल सीमा के निकट बहराइच जिले से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर है। जिले का मुख्यालय भिनगा है, जो श्रावस्ती के प्राचीन स्थल से 약 55 किलोमीटर दूर है। इसका भौगोलिक विस्तार निम्नलिखित है:
- सीमाएँ: उत्तर में नेपाल, दक्षिण में गोंडा जिला, पूर्व में बलरामपुर जिला, और पश्चिम में बहराइच जिला।
- क्षेत्रफल: लगभग 1,640 वर्ग किलोमीटर।
- नदी: अचिरावती (राप्ती) नदी जिले के मध्य से बहती है, जो इसे प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाती है।
- भू-भाग: यह तराई क्षेत्र में स्थित है, जहाँ नवीन जलोढ़ मिट्टी (खादर) पाई जाती है। यहाँ घने जंगल और वन्यजीव अभयारण्य (सुहेलवा) भी हैं।
श्रावस्ती का गठन एक जिले के रूप में 22 मई 1997 को हुआ था, जब इसे बहराइच जिले से अलग किया गया। हालांकि, 2004 में इसका अस्तित्व समाप्त कर दिया गया था, लेकिन जून 2004 में इसे पुनर्जनन मिला। यह जिला लखनऊ से लगभग 175 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
प्रमुख पर्यटन स्थल
श्रावस्ती अपने धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक महत्व के कारण पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहाँ हिंदू, बौद्ध, और जैन धर्म के अनुयायियों के लिए कई महत्वपूर्ण स्थल मौजूद हैं। नीचे प्रमुख पर्यटन स्थलों की विस्तृत जानकारी दी गई है:
1. जेतवन (Jetavana)
- ऐतिहासिक महत्व: जेतवन श्रावस्ती का सबसे प्रसिद्ध बौद्ध स्थल है। यहाँ भगवान बुद्ध ने अपने जीवन के अधिकांश वर्षावास बिताए और 871 में से 844 सुत्तों (उपदेशों) का प्रवचन यहीं दिया। यह विहार अनाथपिंडिक (सुदत्त) नामक धनी व्यापारी द्वारा बुद्ध के लिए दान में दिया गया था। यहाँ गंधकुटी (बुद्ध का निवास स्थान) और कोसंबकुटी जैसे प्राचीन अवशेष मिलते हैं। पुरातात्विक खुदाई में यहाँ से बौद्ध स्तूप, मठ और मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, जो इसकी प्राचीनता को प्रमाणित करती हैं।
- स्थान: जेतवन सहेत-महेत क्षेत्र में स्थित है, जो भिनगा से लगभग 20 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में राप्ती नदी के किनारे है। यह NH730 पर स्थित है।
- विशेषता: यहाँ विपश्यना ध्यान केंद्र भी है, जहाँ बौद्ध अनुयायी ध्यान-साधना करते हैं।
2. सहेत-महेत (Sahet-Mahet)
- ऐतिहासिक महत्व: सहेत-महेत को प्राचीन श्रावस्ती का भौतिक अवशेष माना जाता है। सहेत को जेतवन और महेत को श्रावस्ती नगर के रूप में पहचाना गया है। यहाँ 19वीं सदी में जनरल कनिंघम द्वारा की गई खुदाई में बौद्ध मठ, स्तूप और जैन मंदिरों के अवशेष मिले। चीनी यात्री फाह्यान (5वीं सदी) और ह्वेन त्सांग (7वीं सदी) ने भी इस क्षेत्र का वर्णन किया है। ह्वेन त्सांग के समय तक यह नगर खंडहर में बदल चुका था। यहाँ से प्राप्त शिलालेख और मूर्तियाँ इसकी समृद्ध व्यापारिक और धार्मिक विरासत को दर्शाती हैं।
- स्थान: यह बहराइच और गोंडा जिले की सीमा पर, राप्ती नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है। भिनगा से लगभग 20-25 किलोमीटर की दूरी पर।
- विशेषता: यह UNESCO विश्व धरोहर सूची में शामिल होने की प्रक्रिया में है और बौद्ध तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण है।
3. कच्ची कुटी (Kacchi Kuti)
- ऐतिहासिक महत्व: कच्ची कुटी एक प्राचीन स्तूप है, जिसे अनाथपिंडिक (सुदत्त) के स्मारक के रूप में माना जाता है। इसका नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इसे अस्थायी ईंटों से बनाया गया था। यहाँ से प्राप्त शिलालेख कुषाण काल (1वीं-3वीं सदी ईस्वी) से संबंधित हैं, जो इसकी प्राचीनता को दर्शाते हैं। यह बौद्ध और जैन दोनों धर्मों के इतिहास से जुड़ा हुआ है।
- स्थान: यह महेत क्षेत्र में स्थित है, जो सहेत से लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी पर है।
- विशेषता: यहाँ का शांत वातावरण और ऐतिहासिक संरचनाएँ पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।
4. विभूतिनाथ मंदिर (Vibhutinath Temple)
- ऐतिहासिक महत्व: यह हिंदू धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जो पांडव काल से जुड़ा माना जाता है। मान्यता है कि महाबली भीम ने इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की थी। एक किंवदंती के अनुसार, मुगल शासक औरंगजेब ने इस शिवलिंग को नष्ट करने की कोशिश की, लेकिन शिवलिंग से रक्त बहने के कारण वह डर गया और क्षमा माँगकर चला गया। शिवलिंग पर आरी के निशान आज भी मौजूद हैं। यह मंदिर श्रद्धालुओं के बीच चमत्कारिक माना जाता है।
- स्थान: यह नेपाल सीमा के निकट, भिनगा से लगभग 30-35 किलोमीटर उत्तर में स्थित है।
- विशेषता: कजरी तीज के अवसर पर यहाँ विशाल मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु आते हैं।
5. सीताद्वार (Sitadwar)
- ऐतिहासिक महत्व: सीताद्वार का संबंध रामायण काल से है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, वनवास के दौरान लक्ष्मण जी ने माता सीता को इसी स्थान पर छोड़ा था। इसे लव-कुश की राजधानी भी माना जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व इसे हिंदू तीर्थ स्थल बनाते हैं।
- स्थान: यह श्रावस्ती तीर्थ क्षेत्र से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर, भिनगा से उत्तर-पूर्व में स्थित है।
- विशेषता: यहाँ एक विशाल झील है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। कार्तिक माह में यहाँ मेला भी आयोजित होता है।
6. सोनपथरी (Sonpathri)
- ऐतिहासिक महत्व: यह एक और धार्मिक स्थल है, जो हिंदू परंपराओं से जुड़ा है। इसका नाम और इतिहास स्थानीय लोककथाओं में मिलता है, हालाँकि इसका स्पष्ट ऐतिहासिक संदर्भ उपलब्ध नहीं है। यहाँ प्राकृतिक सौंदर्य और शांति इसे आकर्षक बनाती है।
- स्थान: भिनगा से लगभग 25-30 किलोमीटर की दूरी पर, जिले के ग्रामीण क्षेत्र में।
- विशेषता: यहाँ भी कार्तिक माह में मेला लगता है, जो स्थानीय लोगों के लिए महत्वपूर्ण है।
अन्य उल्लेखनीय स्थान:
- अंगुलिमाल का स्तूप: यहाँ डाकू अंगुलिमाल को बुद्ध ने अपने प्रभाव से सुधारा था। यह जेतवन के निकट स्थित है और बौद्ध कथाओं में इसका उल्लेख मिलता है।
- सुहेलवा वन्यजीव अभयारण्य: यह श्रावस्ती और बलरामपुर जिले में फैला हुआ है। यहाँ प्राकृतिक सौंदर्य और वन्यजीवों को देखा जा सकता है।
सामान्य जानकारी:
- पहुँच: श्रावस्ती सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा है। निकटतम रेलवे स्टेशन बलरामपुर (40 किमी) और बहराइच (50 किमी) हैं। निकटतम हवाई अड्डा लखनऊ (175 किमी) है।
- सर्वोत्तम समय: अक्टूबर से मार्च, जब मौसम सुहावना होता है।
- आवास: भिनगा और आसपास के क्षेत्रों में सरकारी गेस्ट हाउस और होटल उपलब्ध हैं, हालाँकि सुविधाएँ सीमित हैं। बहराइच बलरामपुर मार्ग पर इकौना तहसील के पास कटरा श्रावस्ती में पर्यटकों के लिए अच्छे होटल उपलब्ध हैं।
श्रावस्ती जिले के पर्यटक स्थलों के बारे में संक्षिप्त जानकारी
- जेतवन विहार
- स्थान: सहेत क्षेत्र में।
- महत्व: यह बौद्ध धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है। अनाथपिंडक ने इसे बुद्ध के लिए बनवाया था। बुद्ध ने यहाँ अपने जीवन के सबसे अधिक वर्षावास बिताए और कई उपदेश दिए। यहाँ खंडहरनुमा अवशेष, स्तूप, और विहार आज भी मौजूद हैं।
- आकर्षण: बुद्ध के समय के अवशेष, शांति घंटा उद्यान, और बौद्ध मठ।
- सहेत-महेत
- स्थान: राप्ती नदी के दक्षिणी किनारे पर, बहराइच और गोंडा की सीमा पर।
- महत्व: यह श्रावस्ती का प्राचीन स्थल है, जो आज दो गाँवों सहेत और महेत के रूप में जाना जाता है। यहाँ बुद्धकालीन नगर के भग्नावशेष हैं, जिनकी खुदाई 1862-63 में जनरल कनिंघम और 1884-85 में डॉ. होय ने की थी।
- आकर्षण: प्राचीन स्तूप, मठ, और पुरातात्विक अवशेष।
- अंगुलिमाल स्तूप
- स्थान: महेत क्षेत्र में।
- महत्व: यहाँ बुद्ध ने डाकू अंगुलिमाल का उद्धार किया था। यह स्तूप उस घटना की स्मृति में बनाया गया है।
- आकर्षण: शांत वातावरण और ऐतिहासिक कहानी से जुड़ा स्थल।
- विभूतिनाथ मंदिर
- स्थान: नेपाल सीमा के निकट।
- महत्व: यह पांडवकालीन शिव मंदिर है। मान्यता है कि भीम ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी। औरंगजेब के समय इस पर आक्रमण हुआ, लेकिन चमत्कार के कारण यह सुरक्षित रहा। शिवलिंग पर आरी के निशान आज भी दिखते हैं।
- आकर्षण: कजरी तीज मेले में लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं।
- सीताद्वार
- स्थान: श्रावस्ती तीर्थ क्षेत्र से 10 किलोमीटर दूर।
- महत्व: पौराणिक मान्यता के अनुसार, यहाँ लक्ष्मण जी ने माता सीता को छोड़ा था। इसे लव-कुश की राजधानी भी माना जाता है।
- आकर्षण: विशाल झील और प्राकृतिक सौंदर्य।
- विपश्यना ध्यान केंद्र
- स्थान: जेतवन के पास।
- महत्व: यहाँ बुद्ध ने लंबे समय तक ध्यान किया था। यह आधुनिक समय में ध्यान और शांति के लिए प्रसिद्ध है।
- आकर्षण: शांत वातावरण और बौद्ध अनुयायियों के लिए विशेष स्थान।
- सोनपथरी
- स्थान: जिले के वन क्षेत्र में।
- महत्व: यह हिंदू धर्म से जुड़ा एक धार्मिक स्थल है, जो प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी जाना जाता है।
- आकर्षण: जंगल और वन्यजीवों का अनुभव।
- सुहेलवा वन्यजीव अभयारण्य
- स्थान: श्रावस्ती और बलरामपुर जिले में फैला हुआ।
- महत्व: यह प्राकृतिक प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहाँ विभिन्न प्रजातियों के जंगली जानवर और पक्षी पाए जाते हैं।
- आकर्षण: वन्यजीव सफारी और प्रकृति का आनंद।
श्रावस्ती का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व इसे देश-विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाता है। यहाँ की शांति, प्राकृतिक सौंदर्य और प्राचीन अवशेष इसे एक अनूठा गंतव्य बनाते हैं। श्रावस्ती जिला अपने पौराणिक इतिहास, बौद्ध और जैन तीर्थस्थलों, और प्राकृतिक सौंदर्य के कारण एक अनूठा पर्यटन स्थल है। यहाँ की यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इतिहास और प्रकृति के प्रेमियों के लिए भी आकर्षक है। हालांकि, यहाँ आवागमन और रात्रि विश्राम की सुविधाओं की कमी एक चुनौती है, जिसे सुधारने से पर्यटन को और बढ़ावा मिल सकता है।