साफ दिल का हूं साहेब
गणित बाजी नहीं जानता
लोग कहे, कुछ भी कहे
गणित बाजी को नहीं मानता
पर, आज कलयुग है यारो
गणित बाजी का जमाना है
गणित बाजी जो नहीं जानता
उसका कहीं नहीं ठिकाना है
बोलता की अकरी बिकती
चुप्पो की गेहूं में घुन है लगता
दोष नहीं कुछ भी चुप्पे की
पर दोष उसी पर है मढ़ता
काम क्रोध लोभ मोह ने
भयावह रुप दिखाया है
उस पर भी गणित बाजी ने
जगत को बहुत भरमाया है
ये घोर कलयुग है यारो
ईमान का यहां मोल नहीं
ईमान है तो बेईमानी के लिए
बेईमानी का कोई तोल नहीं
सज्जन तो है यहां बहुत
सज्जन बंधा मर्यादा में अपनी
समाज में दुर्जन विष घोलती।
प्रमोद कश्यप, रतनपुर स्वरचित