अतुल्य भारत चेतना
मेहरबान अली कैरानवी
कैराना/शामली। उत्तर प्रदेश सरकार के परिषदीय विद्यालयों के विलय (मर्जर) के निर्णय के खिलाफ उत्तर-प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने मंगलवार, 15 जुलाई 2025 को कैराना में जोरदार विरोध दर्ज किया। संगठन के पदाधिकारियों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) और पूर्व मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम एक ज्ञापन सौंपा। शिक्षकों ने इस निर्णय को शिक्षा के अधिकार अधिनियम-2009 और बाल अधिकारों के विरुद्ध बताते हुए इसे तत्काल वापस लेने की मांग की।
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ज्ञापन सौंपने की प्रक्रिया
उत्तर-प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष विनय तिवारी और महामंत्री उमाशंकर सिंह के आह्वान पर संगठन के स्थानीय पदाधिकारियों ने शामली जिलाध्यक्ष संजीव मलिक और मांडलिक मंत्री विनय चौहान के नेतृत्व में भाजपा एमएलसी चौधरी वीरेंद्र सिंह से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें सरकार के विद्यालय विलय के निर्णय को शिक्षा के अधिकार अधिनियम-2009 के प्रावधानों और बाल अधिकारों के खिलाफ बताया गया। इस अवसर पर पूर्व विधायक महीपाल माजरा भी उपस्थित रहे।
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शिक्षकों की आपत्तियाँ
ज्ञापन में शिक्षक संगठन ने कहा कि कम छात्र संख्या के आधार पर परिषदीय विद्यालयों का विलय करना शिक्षा के अधिकार अधिनियम-2009 का उल्लंघन है। इस अधिनियम के तहत प्रत्येक गाँव में स्कूल स्थापित किए गए ताकि गरीब और वंचित परिवारों के बच्चे निःशुल्क शिक्षा प्राप्त कर सकें। संगठन ने तर्क दिया कि विद्यालयों में छात्र संख्या कम होने के लिए केवल शिक्षक जिम्मेदार नहीं हैं। इसके पीछे कई अन्य कारण हैं, जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी, आर्थिक तंगी, और स्कूलों में संसाधनों का अभाव।
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शिक्षकों ने चेतावनी दी कि स्कूलों के विलय से ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों, के लिए शिक्षा तक पहुँच मुश्किल हो जाएगी। दूर-दराज के स्कूलों में जाने के लिए बच्चों को कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ सकता है, जिससे ड्रॉपआउट दर बढ़ने की आशंका है। ज्ञापन में निकट भविष्य में इस निर्णय के संभावित दुष्परिणामों, जैसे शिक्षा से वंचित होना और सामाजिक असमानता में वृद्धि, पर विस्तार से प्रकाश डाला गया।
मांग और अपील
उत्तर-प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने सरकार से मांग की कि विद्यालय विलय का निर्णय जनहित में तत्काल वापस लिया जाए। संगठन ने सुझाव दिया कि इसके बजाय सरकार को स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती, बुनियादी ढांचे का विकास, और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा जागरूकता अभियान पर ध्यान देना चाहिए। शिक्षकों ने कहा कि यह निर्णय विशेष रूप से दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक, और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बच्चों के लिए हानिकारक है।
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सामुदायिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस विरोध प्रदर्शन में जिला मंत्री गुलाब सिंह, वरुण चौधरी, हारुण चौहान, सुनील चौधरी, महावीर सिंह, संदीप कुमार, सचिन चौहान, हरविंदर, गोविंद, अमित, जगत सिंह सहित अनेक शिक्षक शामिल रहे। शिक्षकों ने एक स्वर में कहा कि यदि सरकार ने यह निर्णय वापस नहीं लिया, तो वे अपने आंदोलन को और तेज करेंगे। इस मुद्दे पर विपक्षी दलों ने भी सरकार की नीति की आलोचना की है। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने इसे शिक्षा के अधिकार के खिलाफ बताया, जबकि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे गरीब और वंचित वर्गों के खिलाफ साजिश करार दिया।
प्रशासनिक दृष्टिकोण
उत्तर प्रदेश सरकार ने तर्क दिया है कि कम नामांकन वाले स्कूलों का विलय शिक्षा प्रणाली को अधिक कार्यात्मक और व्यवहार्य बनाने के लिए किया जा रहा है। सरकार का कहना है कि इससे संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा और शिक्षक-छात्र अनुपात में सुधार होगा। हालांकि, शिक्षक संगठनों और विपक्षी दलों ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि यह निर्णय ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की पहुँच को और सीमित करेगा।
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व्यापक प्रभाव
कैराना में यह ज्ञापन सौंपने का आयोजन पूरे उत्तर प्रदेश में चल रहे स्कूल विलय के विरोध का हिस्सा है। बरेली, मऊ, रायबरेली, और मोहनलालगंज जैसे क्षेत्रों में भी शिक्षक संगठनों और सामाजिक संगठनों ने इस नीति के खिलाफ प्रदर्शन किए हैं। यह विरोध प्रदर्शन शिक्षा के अधिकार और ग्रामीण बच्चों के भविष्य को लेकर गंभीर चिंताओं को दर्शाता है। कैराना में शिक्षकों का यह प्रयास न केवल सरकार के निर्णय पर सवाल उठाता है, बल्कि यह शिक्षा के महत्व और ग्रामीण क्षेत्रों में इसके प्रसार की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। यह आंदोलन जनहित में शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने और सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए एक मजबूत संदेश देता है।