
क्यों किसी को ज्ञान दे कर खुश करें।
मूर्ख को सम्मान दे कर खुश करें।
त्याग कर्मठता दिखा कर क्या मिला,
एक बीड़ा पान दे कर खुश करें।
तन बदन क्या आत्मा तक नग्न है,
क्यों इन्हें परिधान दे कर खुश करें।
दफ़्तरों की भूख अपरम्पार है,
कब तलक श्रीमान दे कर खुश करें।
हो चुका असुरों का संरक्षण बहुत,
मत इन्हें वरदान दे कर खुश करें।
चाह आज़ादी की उनको है बहुत,
मृत्यु का अनुदान दे कर खुश करें।
कामचोरों की तमन्ना बस यही,
मुफ़्त में भगवान, दे कर खुश करें।
है जिन्हें अस्तित्व का ख़तरा बहुत,
चित्र में स्थान दे कर खुश करें।
यह ‘सुरक्षा शुल्क’ है संकोच क्यूँ,
हो भले नुकसान दे कर खुश करें।
जा रहा है गाँव से हो कर विकास,
खेत औ खलिहान दे कर खुश करें।
दिल नहीं तोहमत ही दें ‘नाचीज़’ को,
कुछ तो मेरी जान, दे कर खुश करें।
-जे0 पी0 “नाचीज़”
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