Breaking
Thu. Aug 21st, 2025

Rupaidiha news; रूपईडीहा में अकीदत और गमगीन माहौल में निकला मोहर्रम का जुलूस, हजरत इमाम हुसैन की शहादत को किया याद

Spread the love

अतुल्य भारत चेतना
रईस

रूपईडीहा/बहराइच। रविवार, 6 जुलाई 2025 को सीमावर्ती क्षेत्र रूपईडीहा में अरबी माह मुहर्रम की 10वीं तारीख, जिसे ‘यौम-ए-आशूरा’ के रूप में जाना जाता है, को हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में गमगीन और अकीदतमंद माहौल में ताजिया जुलूस निकाला गया। इस अवसर पर समुदाय के लोगों ने इराक के कर्बला में हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की कुर्बानी को याद करते हुए मातम और नोहा पढ़कर अपनी अकीदत का इजहार किया। जुलूस शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ और स्थानीय प्रशासन की सतर्कता ने इसे सुव्यवस्थित बनाए रखा।

इसे भी पढ़ें: इसे भी पढ़ें: लोन, फाइनेंस, इंश्योरेंस और शेयर ट्रेडिंग से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

जुलूस का शुभारंभ और मार्ग

मोहर्रम चेहल्लुम कमेटी के सदर हाजी अब्दुल माजिद ने बताया कि जुलूस शाम 5 बजे असर की नमाज के बाद जामा मस्जिद परिसर से शुरू हुआ। यह जुलूस रूपईडीहा बाजार से होते हुए चकिया रोड स्थित कर्बला पहुंचा, जहां ताजियों को सुपुर्द-ए-खाक किया गया। जुलूस के दौरान अकीदतमंदों ने ताजिए और अलम लेकर ‘हक हुसैन, या हुसैन’ और ‘या अली’ के नारे बुलंद किए। हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मातम और नोहों की गूंज ने पूरे क्षेत्र को गमगीन माहौल में डुबो दिया।

बुद्धिजीवियों का सम्मान

चकिया चौराहे पर मोहर्रम चेहल्लुम कमेटी ने स्थानीय बुद्धिजीवियों और गणमान्य व्यक्तियों को सम्मानित किया। सम्मानित होने वालों में शामिल थे:

इसे भी पढ़ें : उनसे पूछो मंदिर क्या है ?

रूपईडीहा नगर पंचायत चेयरमैन प्रतिनिधि डॉ. अश्वनी वैश्य, पूर्व प्रधान जुबैर अहमद फारूकी, पत्रकार संजय वर्मा, पत्रकार मनीराम शर्मा, सभासद गुड्डू मधेशिया, समाजसेवी सुशील बंसल, समाजसेवी नीरज बर्नवाल यह सम्मान सामुदायिक एकता और सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए कमेटी की ओर से एक सराहनीय कदम था।

लंगर और सामुदायिक भागीदारी

जुलूस के मार्ग पर स्थानीय लोगों ने अकीदत के साथ लंगर का इंतजाम किया। शर्बत, सबील, और अन्य खाद्य सामग्री जुलूस में शामिल लोगों को वितरित की गई। इस लंगर ने हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश की। स्थानीय निवासियों ने इस पहल की सराहना की और इसे सामुदायिक एकता का प्रतीक बताया। एक अकीदतमंद ने कहा, “हजरत इमाम हुसैन की शहादत हमें सत्य और इंसाफ के लिए कुर्बानी देने की प्रेरणा देती है। इस जुलूस में सभी समुदायों का एक साथ आना हमारी एकता को दर्शाता है।”

इसे भी पढ़ें: लखनऊ स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिर और उनकी महिमा

यौम-ए-आशूरा का महत्व

मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है, और 10वीं तारीख, यौम-ए-आशूरा, इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखती है। मान्यता है कि इस दिन पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन को इराक के कर्बला में यजीद की सेना ने शहीद कर दिया था। उनकी कुर्बानी हक और बातिल की लड़ाई का प्रतीक है। दुनिया भर में मुस्लिम समुदाय इस दिन को ताजिया जुलूस, मातम, और मजलिस के माध्यम से अकीदत के साथ मनाता है। रूपईडीहा में भी यह परंपरा पूरे जोश और श्रद्धा के साथ निभाई गई।

इसे भी पढ़ें : …लेकिन विडम्बना पता है क्या है?

सुरक्षा व्यवस्था और प्रशासन की भूमिका

स्थानीय प्रशासन ने जुलूस को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न कराने के लिए पुख्ता सुरक्षा इंतजाम किए। पुलिस बल की तैनाती, बैरिकेडिंग, और क्षेत्र में गश्त ने किसी भी अव्यवस्था को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रूपईडीहा थाना प्रभारी और अन्य अधिकारियों की सतर्कता ने आयोजन की सुचारूता सुनिश्चित की। स्थानीय लोगों ने प्रशासन के सहयोग की सराहना की और इसे सामुदायिक सौहार्द का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बताया।

भविष्य की योजनाएं और अपील

मोहर्रम चेहल्लुम कमेटी के सदर हाजी अब्दुल माजिद ने कहा कि भविष्य में भी मुहर्रम का पर्व इसी तरह शांति और भाईचारे के साथ मनाया जाएगा। उन्होंने युवाओं से हजरत इमाम हुसैन के सिद्धांतों—सब्र, इंसाफ, और कुर्बानी—को अपनाने की अपील की। कमेटी ने नागरिकों से सामुदायिक एकता और शांति बनाए रखने का आग्रह किया।

इसे भी पढ़ें: बाबा नीम करोली कैंची धाम की महिमा तथा नीम करोली बाबा के प्रमुख संदेश!

रूपईडीहा में आयोजित यह मुहर्रम जुलूस न केवल हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का अवसर बना, बल्कि सामुदायिक एकता, शांति, और गंगा-जमुनी तहजीब को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण साबित हुआ। यह आयोजन क्षेत्र में सामाजिक सौहार्द और धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक बन गया।

Responsive Ad Your Ad Alt Text
Responsive Ad Your Ad Alt Text

Related Post

Responsive Ad Your Ad Alt Text