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Vidisha news; डॉ. परमानंद मिश्रा की आत्मकथा ‘यादों की तीलियां’ का भव्य विमोचन समारोह

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अतुल्य भारत चेतना
ब्युरो चीफ हाकम सिंह रघुवंशी

विदिशा। स्थानीय राधिका होटल एंड रेस्टोरेंट में विगत दिन राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक डॉ. परमानंद मिश्रा की आत्मकथा यादों की तीलियां का भव्य विमोचन समारोह संपन्न हुआ। इस अवसर पर विदिशा के विधायक मुकेश टंडन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता इतिहासकार श्री गोविंद देवलिया ने की। समारोह में साहित्यकारों, शिक्षाविदों, और प्रबुद्धजनों की उपस्थिति ने इसे और गरिमामय बनाया।

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विधायक मुकेश टंडन का संबोधन

मुख्य अतिथि विधायक मुकेश टंडन ने कहा, “मिश्रा परिवार से मेरा तीन दशकों से अधिक का संबंध है, और मैं उनकी जीवनी का साक्षी रहा हूँ। आज इस परिवार की खुशी में हम सब शरीक हैं।” उन्होंने डॉ. मिश्रा के आत्मकथा लेखन को साहसिक कदम बताते हुए कहा, “अपने जीवन वृत्त को लिखना आसान नहीं होता। डॉ. मिश्रा ने यह श्रमसाध्य कार्य किया, जिसके लिए मैं उन्हें हार्दिक बधाई देता हूँ।”

पुस्तक की समीक्षा और प्रशंसा

कवि एवं समालोचक सुलखान सिंह हाडा ने पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा, “डॉ. मिश्रा ने अपने जीवन के यथार्थ को प्रस्तुत करते हुए हिंदी साहित्य को ‘परमार्च’ जैसे नवीन शब्द से समृद्ध किया है। यह एक अनूठा योगदान है।” पीएम श्री कॉलेज की प्राचार्य डॉ. बनिता वाजपेई ने पुस्तक को आत्मकथा और संस्मरण के मध्य की एक नवीन विधा का सृजन बताया। उन्होंने कहा, “यह कृति साहित्यिक दृष्टिकोण से एक नया आयाम स्थापित करती है।”

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पूर्व प्राचार्य बी.के. जैन ने इसे बुंदेली भाषा की धरोहर बताते हुए कहा, “डॉ. मिश्रा का एक अन्य ग्रंथ भारतीय स्वर्ण युग के संस्कृत अभिलेख एवं अमरकोश के अभिधान विदेशों में भी लोकप्रिय है। यह आत्मकथा बुंदेली बोली की सेवा में एक महत्वपूर्ण कदम है।” उरई (जालौन) से पधारे सारस्वत अतिथि डॉ. पूरन सिंह निरंजन ने तुलसीदास का उल्लेख करते हुए कहा, “संसार का सबसे बड़ा दुख दरिद्रता है। डॉ. मिश्रा ने विद्यार्थी जीवन में गरीबी से संघर्ष करते हुए यहाँ तक का सफर तय किया और उसका सजीव चित्रण इस आत्मकथा में किया है।”

अध्यक्षीय उद्बोधन

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए इतिहासकार श्री गोविंद देवलिया ने कहा, “डॉ. मिश्रा ने अपने बाल्यकाल से लेकर जीवनसंगिनी के चयन तक की कालावधि का वर्णन सरल और बुंदेली भाषा में अत्यंत रुचिकर ढंग से किया है। लेखन से पहले उन्होंने अनेक लेखकों और महापुरुषों की जीवनी का अध्ययन किया, जो उनके मानसिक श्रम को दर्शाता है।”

कार्यक्रम का शुभारंभ और स्वागत

कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन और सरस्वती पूजन के साथ हुआ। मिश्रा परिवार ने सभी अतिथियों का हार्दिक स्वागत किया। लेखक डॉ. मिश्रा ने अपनी आत्मकथा लेखन की प्रेरणा और प्रक्रिया पर प्रकाश डाला, जिसमें उन्होंने बताया कि यह कृति किन-किन लोगों और अनुभवों से प्रेरित है।

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विदिशा विरासत समूह की ओर से प्रकाश जोशी, प्रवीण शर्मा, ओ.पी. चतुर्वेदी, विजय चतुर्वेदी, मनोज शर्मा, और राजकुमार शर्मा ने सारस्वत अतिथि डॉ. पूरन सिंह निरंजन को पुस्तक भेंट की। साथ ही, संतोष नामदेव ने भी अपनी आत्मकथा की प्रति उन्हें भेंट की।

उपस्थित गणमान्य व्यक्ति

कार्यक्रम में नगर के प्रबुद्धजन और साहित्यकार बड़ी संख्या में उपस्थित रहे, जिनमें साहित्यकार कालूराम पथिक, निसार मालवीय, गोवर्धन राजोरिया, चाँद खाँ चाद, शाहिद भाई, सुरेंद्र श्रीवास्तव, संतोष सागर, अमन जी, हरगोविंद मैथिल, प्रोफेसर के.के. पंजाबी, डॉ. वेद प्रकाश मेहरा, शिक्षाविद के.एन. शर्मा, धर्माचार्य विष्णु शास्त्री, संतोष शास्त्री, मनोज शास्त्री राजपुरोहित, रामकृष्ण शर्मा, धर्म नारायण चतुर्वेदी, डॉ. कैलाश कारोलिया, शैलेंद्र सिंह राजपूत, राजेश चौबे, धर्मेंद्र चतुर्वेदी, अनुराग मिश्रा, ऋतिक चौबे, काशीराम मिश्रा, अंशुल चतुर्वेदी, बचपन के मित्र कौशल किशोर शर्मा, श्रवण कुमार शर्मा, विरासत के हरिहर चतुर्वेदी, और अभिनय वर्मा शामिल थे।

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कार्यक्रम का संचालन और आभार

कार्यक्रम का कुशल संचालन आचार्य शिवकुमार तिवारी और आचार्य पुनीत कुमार संज्ञा ने किया। अंत में लेखक की पुत्री अनामिका चतुर्वेदी ने सभी का आभार व्यक्त किया। वरिष्ठ पत्रकारआर.के. वासुदेव बॉस ने कार्यक्रम की वीडियो और फोटोग्राफी की तथा पुस्तक यादों की तीलियां की भूरि-भूरि प्रशंसा की। अरविंद श्रीवास्तव और अरविंद द्विवेदी ने आयोजन में विशेष सहयोग प्रदान किया।

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आत्मकथा का महत्व

यादों की तीलियां न केवल डॉ. परमानंद मिश्रा के जीवन का दस्तावेज है, बल्कि यह बुंदेली भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। इस आत्मकथा में उनके जीवन के संघर्ष, उपलब्धियाँ, और साहित्यिक योगदान को रेखांकित किया गया है, जो पाठकों के लिए प्रेरणादायी है। यह समारोह विदिशा के साहित्यिक और सामाजिक परिदृश्य में एक ऐतिहासिक घटना के रूप में याद किया जाएगा।

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