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Chhindwara news; पॉक्सो एक्ट के दुरुपयोग और दुष्प्रभावों को रोकने के लिए छिंदवाड़ा में जिला कलेक्टर को सौंपा गया ज्ञापन

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अतुल्य भारत चेतना
अखिल सुर्यवंशी

छिंदवाड़ा/मध्यप्रदेश। सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक भगवानदीन साहू के नेतृत्व में विभिन्न धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने 18 जून 2025 को महामहिम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को एक ज्ञापन सौंपा। इस ज्ञापन में पॉक्सो एक्ट (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज एक्ट, 2012) के कथित दुरुपयोग और इसके भयानक दुष्प्रभावों को रोकने के लिए तत्काल संशोधन की मांग की गई।

ज्ञापन का उद्देश्य और दावे

ज्ञापन में दावा किया गया कि पॉक्सो एक्ट को 14 नवंबर 2012 को बाल दिवस के अवसर पर एक षड्यंत्र के तहत लागू किया गया, जिसका उद्देश्य निम्नलिखित था:

  • भारत को विश्वगुरु बनने से रोकना।
  • सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार को बाधित करना।
  • हिंदुओं की घर वापसी को रोकना और विश्व में समस्त प्राणियों के सुखी, स्वस्थ, और सम्मानित जीवन को प्रभावित करना।
  • धर्मांतरण के समर्थकों द्वारा हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति पर आस्था रखने वालों को लक्षित करना।

ज्ञापन में कहा गया कि इस कानून का पहला शिकार संत आशारामजी बापू को बनाया गया, जिनके खिलाफ 31 अगस्त 2013 को पॉक्सो एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज किया गया। उस समय केंद्र, दिल्ली, और राजस्थान में धर्मांतरण का समर्थन करने वाली सरकारें थीं।

आंकड़े और आरोप

ज्ञापन में निम्नलिखित आंकड़ों का उल्लेख किया गया:

  • 2001 में देशभर में बलात्कार के लगभग 16,000 प्रकरण दर्ज थे।
  • 2014 से 2017 के बीच इन प्रकरणों की संख्या बढ़कर 4,20,000 से अधिक हो गई, जो केवल तीन वर्षों का आंकड़ा है।
  • पॉक्सो एक्ट के दुरुपयोग के कारण पुलिस और न्याय व्यवस्था पर बोझ बढ़ा है।
  • इस कानून का उपयोग हनीमून कांड, नीला ड्रम कांड, और सास-दामाद विवाह जैसे मामलों में पैसे ऐंठने और व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए किया जा रहा है।

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ज्ञापन में यह भी आरोप लगाया गया कि पॉक्सो एक्ट का उपयोग विशेष रूप से सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार करने वालों के खिलाफ किया जाता है, जबकि राजनेता और मीडिया प्रतिनिधि जैसे प्रभावशाली लोग इससे बचे रहते हैं। उदाहरण के तौर पर निम्नलिखित लोगों का उल्लेख किया गया, जिन पर आरोप लगे लेकिन गिरफ्तारी नहीं हुई:

  • ब्रजभूषण सिंह (भाजपा नेता)
  • बी.एस. येदियुरप्पा (कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री)
  • रंजन गोगोई (सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश)
  • दीपक चौरसिया (मीडिया प्रतिनिधि)

सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

ज्ञापन में दावा किया गया कि पॉक्सो एक्ट के दुरुपयोग के कारण:

  • हिंदू युवा विवाह करने से कतरा रहे हैं।
  • पुरुष और महिलाओं के बीच वैमनस्यता बढ़ रही है।
  • महिलाओं के प्रति समाज में पहले मौजूद पूज्य भाव समाप्त हो रहा है।
  • कई लोगों ने डर और सामाजिक अपमान के कारण आत्महत्या की, जिनमें भय्यू जी महाराज और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेंद्र गिरी शामिल हैं।
  • देश के 70 करोड़ पुरुष इस कानून से प्रभावित हैं, और लाखों लोगों का जीवन बर्बाद हो चुका है।

विधि आयोग की रिपोर्ट और मांग

ज्ञापन में उल्लेख किया गया कि विधि आयोग की एक रिपोर्ट में भी पॉक्सो एक्ट के दुरुपयोग को स्वीकार किया गया है। इसके आधार पर निम्नलिखित मांगें की गईं:

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पॉक्सो एक्ट में तत्काल संशोधन किया जाए ताकि इसका दुरुपयोग रोका जा सके।

झूठे प्रकरण दर्ज करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई का प्रावधान हो।

कानून को निष्पक्ष और समान रूप से लागू किया जाए, ताकि यह धर्म या समुदाय विशेष को लक्षित न करे।

समाज में पुरुषों और महिलाओं के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए उपाय किए जाएं।

ज्ञापन सौंपने वाले प्रमुख व्यक्ति

ज्ञापन सौंपने के दौरान निम्नलिखित लोग प्रमुख रूप से उपस्थित थे:

  • आधुनिक चिंतन हरशूल रघुवंशी
  • नितेश साहू (राष्ट्रीय बजरंग दल)
  • अंकित ठाकरे (कुंबी समाज के युवा नेता)
  • ओमी साहू (साहू समाज)
  • बबलू माहोरे (कलार समाज)
  • सुभाष इंगले (कुंबी समाज के मार्गदर्शक)
  • भूपेश पहाड़े (आईटी सेल प्रभारी)
  • ओम प्रकाश डहेरिया, अश्विन पटेल, अशोक कराडे, नारायण ताम्रकार, रामराव लोखंडे, और अन्य।

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सामाजिक संगठनों की भूमिका

ज्ञापन में विभिन्न धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने एकजुट होकर इस मुद्दे को उठाया। उनका कहना है कि पॉक्सो एक्ट का दुरुपयोग न केवल व्यक्तियों, बल्कि पूरे समाज और सनातन संस्कृति के लिए खतरा बन चुका है। उन्होंने सरकार से इस कानून की समीक्षा और संशोधन की प्रक्रिया को जल्द शुरू करने की अपील की।

पॉक्सो एक्ट का पृष्ठभूमि

पॉक्सो एक्ट, 2012 को बच्चों (18 वर्ष से कम आयु) के यौन शोषण, उत्पीड़न, और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से बचाने के लिए लागू किया गया था। यह कानून संयुक्त राष्ट्र के बाल अधिकार संन्यास (UNCRC) के अनुरूप है, जिसे भारत ने 1992 में स्वीकार किया था। इस कानून में 10 वर्ष तक की सजा और गंभीर मामलों में आजीवन कारावास तक के प्रावधान हैं। हालांकि, ज्ञापन में दावा किया गया है कि इसका दुरुपयोग व्यक्तिगत, सामाजिक, और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है।

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छिंदवाड़ा में सौंपे गए इस ज्ञापन ने पॉक्सो एक्ट के कथित दुरुपयोग और इसके सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभावों को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। सामाजिक संगठनों और स्थानीय नेताओं ने इसे एक षड्यंत्र करार देते हुए सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। यह मुद्दा न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी संवेदनशील है, जिसके लिए संतुलित और निष्पक्ष समाधान की आवश्यकता है।

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