अतुल्य भारत चेतना
ब्युरो चीफ हाकम सिंह रघुवंशी
विदिशा/मध्यप्रदेश। विदिशा जिले की नटेरन जनपद पंचायत के ग्राम पंचायत खैरी के ग्राम बेला नारा में मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण किसान हर साल बरसात के मौसम में भारी परेशानियों का सामना कर रहे हैं। कच्चे रास्तों के कारण बरसात में खेतों तक पहुंचने वाले मार्ग कीचड़ और दलदल में तब्दील हो जाते हैं, जिससे किसानों और ग्रामीणों को अपने खेतों तक पहुंचने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। यह समस्या न केवल स्थानीय निवासियों, बल्कि आसपास के गांवों से आने-जाने वाले किसानों के लिए भी गंभीर चुनौती बन गई है।
समस्या का विवरण
ग्राम बेला नारा से घिनोची गांव की ओर जाने वाला रास्ता पूरी तरह कच्चा है। बरसात के मौसम में यह रास्ता कीचड़ और दलदल में बदल जाता है, जिससे खेतों तक पहुंचना लगभग असंभव हो जाता है। इस रास्ते का उपयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए किया जाता है:
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कृषि कार्य: किसान अपने खेतों तक फसल, उपकरण, और अन्य सामग्री ले जाने के लिए इस रास्ते पर निर्भर हैं।
पशुपालन: खिलन सिंह जाटव जैसे किसान, जो अपने कृषि फार्म पर गाय और भैंस रखते हैं, को दिन में चार बार इस रास्ते से गुजरना पड़ता है।
श्रमिकों का आवागमन: आशुतोष रघुवंशी के कृषि फार्म पर बाहर से आने वाले मजदूरों को भी इस रास्ते से होकर जाना पड़ता है।
दैनिक आवागमन: ओमकार जाटव जैसे स्थानीय निवासी, जो साल भर अपने मकान में रहते हैं, को इस रास्ते से होकर बाहर जाना पड़ता है।
प्रभावित लोग और उनकी समस्याएं
इस कच्चे रास्ते के कारण कई किसानों और ग्रामीणों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। प्रभावित लोगों में शामिल हैं:
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स्थानीय किसान: ओमकार जाटव, मुकेश रघुवंशी (खैरी), प्रीतम सिंह (हथोड़ा), हिम्मत सिंह रघुवंशी (खैरी), गजेंद्र सिंह रघुवंशी (खैरी), हरि सिंह कुशवाहा, बाबूलाल साहू, निलेश साहू, हरि सिंह पंथी, भगवान सिंह जाटव, रतन सिंह जाटव, राम सिंह वंशकार, गंगाराम जाटव, लक्ष्मण जाटव, मोतीलाल जाटव, ग्यासी लाल जाटव, मुन्ना लाल, लखन जाटव, हरेत देसवरी, सुरेश देसवरी, उधम जाटव, रामगोपाल कुशवाहा, भोगी राम जाटव।
आसपास के गांवों के लोग: अन्य गांवों से आने-जाने वाले किसान और मजदूर भी इस रास्ते का उपयोग करते हैं।
ओमकार जाटव ने अपनी व्यथा साझा करते हुए कहा: बरसात में इस रास्ते से निकलना मुश्किल हो जाता है। कीचड़ और दलदल के कारण खेतों तक पहुंचना और फसल लाना असंभव है। हमें आधा किलोमीटर की दूरी के लिए 6 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है, जिससे समय और संसाधनों की बर्बादी होती है।”
लंबा चक्कर और आर्थिक नुकसान
कच्चे रास्ते के कारण किसानों को अपनी फसल को खेतों से बाजार या घर तक लाने के लिए 6 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है, जबकि वास्तविक दूरी मात्र आधा किलोमीटर है। इससे न केवल समय और श्रम की हानि होती है, बल्कि परिवहन लागत भी बढ़ जाती है। यह स्थिति किसानों के लिए आर्थिक और मानसिक तनाव का कारण बन रही है।
ग्रामीणों की मांग
ग्राम बेला नारा के निवासियों और प्रभावित किसानों ने क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों और शासन-प्रशासन से इस रास्ते को पक्का करने की मांग की है। उनका कहना है कि एक पक्का रास्ता बनने से न केवल उनकी दैनिक समस्याएं हल होंगी, बल्कि क्षेत्र में कृषि उत्पादकता और आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा। मुकेश रघुवंशी ने कहा:
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‘हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि इस रास्ते को जल्द से जल्द पक्का किया जाए। यह हमारी मूलभूत जरूरत है।”
शासन की जिम्मेदारी
ग्रामीणों ने इस समस्या को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ग्रामीण विकास के दृष्टिकोण से जोड़ा। उनका कहना है कि ग्रामों के अंतिम छोर तक विकास पहुंचाना सरकार का लक्ष्य है, और इस रास्ते का निर्माण उस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों और जिम्मेदार अधिकारियों से अपेक्षा है कि वे इस मुद्दे को प्राथमिकता दें और शीघ्र समाधान करे।
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नटेरन जनपद पंचायत के ग्राम बेला नारा में कच्चे रास्ते की समस्या ने किसानों और ग्रामीणों के लिए बरसात को एक अभिशाप बना दिया है। यह स्थिति न केवल उनके दैनिक जीवन को प्रभावित कर रही है, बल्कि उनकी आजीविका को भी नुकसान पहुंचा रही है। प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को इस समस्या का त्वरित समाधान करना चाहिए ताकि अन्नदाताओं को इस प्रताड़ना से मुक्ति मिले और ग्रामीण क्षेत्रों में विकास का सपना साकार हो सके।