चैत्र नवरात्र हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा और उनके प्रति भक्ति को समर्पित होता है। यह नवरात्रि चैत्र मास (हिंदू पंचांग के अनुसार) में मनाई जाती है, जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल में पड़ता है। यह वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक भी माना जाता है, इसलिए इसे वासंतिक नवरात्रि भी कहते हैं। इस दौरान भक्त माँ दुर्गा की आराधना करते हैं, व्रत रखते हैं और आत्मिक शुद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं।
महत्व:
- आध्यात्मिक शक्ति: चैत्र नवरात्रि में नौ दिनों तक माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों (शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री) की पूजा की जाती है। यह भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
- नए कार्यों की शुरुआत: यह समय नए कार्यों, व्यापार या किसी शुभ कार्य को शुरू करने के लिए शुभ माना जाता है। इसे हिंदू नववर्ष के प्रारंभ के रूप में भी देखा जाता है।
- व्रत और तपस्या: व्रत रखने से शरीर और मन की शुद्धि होती है। कई लोग नौ दिनों तक उपवास रखते हैं, जिसमें फलाहार या सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है।
- अच्छाई की जीत: यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, जैसा कि माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था।
चैत्र नवरात्रि 2025 प्रारंभ तिथि:
चैत्र नवरात्रि हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होती है। अंतिम दिन, यानी नवमी को राम नवमी के रूप में भी मनाया जाता है, जो भगवान राम के जन्मोत्सव (प्राकट्य उत्सव) का पर्व है।
चैत्र नवरात्रि 2025 की शुरुआत 30 मार्च 2025 से होगी। यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है और नौ दिनों तक चलता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रतिपदा तिथि 29 मार्च 2025 को शाम 4:27 बजे शुरू होगी और 30 मार्च 2025 को दोपहर 12:49 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के आधार पर, चैत्र नवरात्रि का आरंभ 30 मार्च को माना जाएगा। इस बार नवरात्रि 8 दिनों की होगी, क्योंकि अष्टमी और नवमी एक ही दिन (6 अप्रैल) को पड़ रही हैं। समापन 7 अप्रैल 2025 को होगा।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
कलश स्थापना (घटस्थापना) चैत्र नवरात्रि के पहले दिन, यानी 30 मार्च 2025 को की जाएगी। शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं:
- सुबह का मुहूर्त: सुबह 6:13 बजे से 10:21 बजे तक।
- अभिजित मुहूर्त: दोपहर 12:00 बजे से 12:50 बजे तक (लगभग 50 मिनट की अवधि)।
ये समय सनातन शास्त्रों के अनुसार शुभ माने जाते हैं। यदि सुबह का समय उपलब्ध न हो, तो अभिजित मुहूर्त में भी कलश स्थापना की जा सकती है। ध्यान रखें कि अमावस्या तिथि या रात्रि में कलश स्थापना नहीं करनी चाहिए।
कलश स्थापना की विधि
कलश स्थापना के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:
- संकल्प: सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा का संकल्प लें।
- स्थान तैयार करें: घर के मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें। एक लकड़ी की चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं।
- जौ बोना: एक मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालें, उसमें जौ के बीज बोएं और थोड़ा पानी छिड़कें।
- कलश तैयार करें: एक मिट्टी या धातु के कलश में गंगाजल और जल भरें। इसमें सुपारी, दूर्वा, अक्षत (चावल), हल्दी की गांठ, और एक सिक्का डालें। कलश पर मौली (लाल धागा) बांधें और आम के 5 पत्ते रखें।
- नारियल स्थापित करें: कलश पर ढक्कन रखें, उस पर लाल कपड़े या चुनरी में लपेटा हुआ नारियल रखें और मौली बांधें।
- आह्वान: चौकी पर जौ का पात्र और उसके ऊपर कलश रखें। सभी देवी-देवताओं का आह्वान करें, विशेष रूप से गणेश जी और मां दुर्गा का।
- अखंड ज्योति: पूजा स्थल पर अखंड दीप जलाएं और नौ दिनों तक इसे प्रज्वलित रखें।
- पूजा शुरू करें: मंत्र जाप और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
नव दुर्गा की पूजा विधि
चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन एक देवी को समर्पित होता है। यहाँ संक्षिप्त विधि और क्रम दिया गया है:
- दिन 1 (30 मार्च) – मां शैलपुत्री: सफेद वस्त्र पहनें, सफेद फूल और चंदन अर्पित करें। मंत्र: ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः।
- दिन 2 (31 मार्च) – मां ब्रह्मचारिणी: लाल या सफेद फूल, चावल और मिश्री चढ़ाएं। मंत्र: ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः।
- दिन 3 (1 अप्रैल) – मां चंद्रघंटा: पीले फूल, दूध और खीर का भोग लगाएं। मंत्र: ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः।
- दिन 4 (2 अप्रैल) – मां कुष्मांडा: नारंगी फूल, मालपुआ अर्पित करें। मंत्र: ॐ देवी कूष्मांडायै नमः।
- दिन 5 (3 अप्रैल) – मां स्कंदमाता: पीले या सफेद फूल, केले का भोग दें। मंत्र: ॐ देवी स्कंदमातायै नमः।
- दिन 6 (4 अप्रैल) – मां कात्यायनी: लाल फूल, शहद चढ़ाएं। मंत्र: ॐ देवी कात्यायन्यै नमः।
- दिन 7 (5 अप्रैल) – मां कालरात्रि: नीले फूल, गुड़ का भोग लगाएं। मंत्र: ॐ देवी कालरात्र्यै नमः।
- दिन 8 (6 अप्रैल) – मां महागौरी: गुलाबी या सफेद फूल, नारियल चढ़ाएं। मंत्र: ॐ देवी महागौर्यै नमः।
- दिन 8 (6 अप्रैल) – मां सिद्धिदात्री: पीले फूल, हलवा अर्पित करें। मंत्र: ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः।
(नोट: इस बार अष्टमी और नवमी एक ही दिन हैं, इसलिए दोनों की पूजा 6 अप्रैल को होगी।)
माँ नवदुर्गा की उपासना के लिए कई मंत्र प्रचलित हैं, जो उनकी नौ रूपों की पूजा के दौरान प्रयोग किए जाते हैं। नीचे कुछ प्रमुख मंत्र दिए जा रहे हैं, जो नवदुर्गा के प्रत्येक रूप से संबंधित हैं। इन्हें भक्ति और श्रद्धा के साथ जप करने से माँ की कृपा प्राप्त होती है:
1. माँ शैलपुत्री (Shailputri)
- मंत्र:
“ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः”
या
“वन्दे वाञ्छित लाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥”
2. माँ ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini)
- मंत्र:
“ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः”
या
“दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥”
3. माँ चंद्रघंटा (Chandraghanta)
- मंत्र:
“ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः”
या
“पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥”
4. माँ कुष्मांडा (Kushmanda)
- मंत्र:
“ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः”
या
“सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥”
5. माँ स्कंदमाता (Skandamata)
- मंत्र:
“ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः”
या
“सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥”
6. माँ कात्यायनी (Katyayani)
- मंत्र:
“ॐ देवी कात्यायन्यै नमः”
या
“चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥”
7. माँ कालरात्रि (Kalaratri)
- मंत्र:
“ॐ देवी कालरात्र्यै नमः”
या
“एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥”
8. माँ महागौरी (Mahagauri)
- मंत्र:
“ॐ देवी महागौर्यै नमः”
या
“श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥”
9. माँ सिद्धिदात्री (Siddhidatri)
- मंत्र:
“ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः”
या
“सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥”
सामान्य नवदुर्गा मंत्र:
अगर आप सभी रूपों की एक साथ उपासना करना चाहते हैं, तो यह मंत्र जप सकते हैं:
“या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”
उपयोग:
- इन मंत्रों का जप नवरात्रि के नौ दिनों में सुबह-शाम स्वच्छ मन से करें।
- प्रत्येक दिन संबंधित देवी के मंत्र का जप 108 बार करना शुभ माना जाता है।
- माला (रुद्राक्ष या स्फटिक) का प्रयोग कर सकते हैं।
पूजन सामग्री:
- मूर्ति या चित्र: माँ दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर।
- चौकी: मूर्ति रखने के लिए लकड़ी या धातु की चौकी।
- लाल कपड़ा: चौकी पर बिछाने के लिए।
- कलश: तांबे या मिट्टी का कलश, पानी से भरा हुआ।
- नारियल: कलश के ऊपर रखने के लिए।
- आम के पत्ते: कलश में सजाने के लिए।
- अक्षत: कच्चे चावल (हल्दी मिले हुए)।
- कुमकुम, हल्दी, चंदन: तिलक और पूजा के लिए।
- फूल: ताजे फूल (गेंदा, गुलाब आदि)।
- माला: फूलों की माला।
- धूप और अगरबत्ती: सुगंध के लिए।
- दीपक: घी या तेल का दीपक और रुई की बत्ती।
- प्रसाद: फल, मिठाई (जैसे खीर, हलवा), पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर का मिश्रण)।
- पान-सुपारी: पूजा में अर्पण के लिए।
- लाल चुनरी: माँ को अर्पित करने के लिए।
- दूर्वा या घास: पूजा में प्रयोग के लिए।
- जौ: मिट्टी के पात्र में बोने के लिए (प्रतिपदा के दिन)।
- पवित्र जल: गंगाजल या स्वच्छ जल।
- पाठ के लिए पुस्तक: दुर्गा सप्तशती या अन्य मंत्र पाठ के लिए।
- घंटी और शंख: पूजा के दौरान बजाने के लिए।
पूजन की विधि:
- स्नान और शुद्धता: सबसे पहले सुबह स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- स्थान की शुद्धि: पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़कें।
- कलश स्थापना:
- चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं।
- कलश में जल भरें, उसमें आम के पत्ते और ऊपर नारियल रखें।
- इसे माँ के दाहिनी ओर स्थापित करें।
- जौ बोना: एक मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर जौ बोएं और इसे पूजा स्थल पर रखें।
- मूर्ति स्थापना: माँ दुर्गा की मूर्ति या चित्र को चौकी पर स्थापित करें।
- आह्वान: माँ का ध्यान करें और उन्हें प्रणाम करते हुए मंत्र पढ़ें-
- “ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।”
- दीप प्रज्वलन: घी या तेल का दीपक जलाएं।
- अर्पण: माँ को कुमकुम, हल्दी, चंदन, फूल, माला, चुनरी और प्रसाद अर्पित करें।
- आरती: माँ की आरती करें (जैसे “जय अम्बे गौरी…”) और घंटी बजाएं।
- मंत्र जाप: दुर्गा मंत्र “ॐ दुं दुर्गायै नमः” का जाप करें या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
- प्रसाद वितरण: पूजा के अंत में प्रसाद परिवार और उपस्थित लोगों में बांटें।
व्रत के नियम:
- व्रत के दौरान सात्विक भोजन करें (फल, दूध, कुट्टू का आटा, साबूदाना आदि)।
- लहसुन, प्याज और मांसाहार से परहेज करें।
- दिन में एक बार भोजन करें या पूर्ण उपवास रखें, अपनी क्षमता अनुसार।
- मन और शरीर की शुद्धता बनाए रखें।
पूजा की सामान्य विधि:
- सुबह-शाम स्नान कर मां की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाएं।
- फूल, धूप, नैवेद्य (सात्विक भोग) अर्पित करें।
- दुर्गा सप्तशती या संबंधित मंत्रों का पाठ करें।
- आरती करें और प्रसाद वितरित करें।
- नौवें दिन कन्या पूजन करें, जिसमें 9 कन्याओं को भोजन कराएं।
यह विधि सामान्य रूप से प्रचलित है। यदि आपके परिवार या क्षेत्र में कोई विशेष परंपरा है, तो उसे भी शामिल करें। नवरात्रि के नौ दिनों तक माँ के विभिन्न रूपों (शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी आदि) की पूजा की जाती है, इसलिए प्रतिदिन उनके मंत्र और कथा का पाठ भी करें।
अतिरिक्त जानकारी
- इस बार मां दुर्गा का आगमन और प्रस्थान हाथी पर होगा, जो समृद्धि और शुभता का संकेत है।
- पूजा में सात्विकता बनाए रखें, तामसिक भोजन (लहसुन, प्याज, मांस) से बचें।
- घर में स्वच्छता और शांति बनाए रखें।
यह जानकारी धार्मिक मान्यताओं और उपलब्ध पंचांग के आधार पर दी गई है। पूजा के लिए स्थानीय पंडित से भी सलाह ले सकते हैं। माँ दुर्गा आपकी पूजा स्वीकार करें और आपको आशीर्वाद दें!
जय माता दी! माँ नवदुर्गा आपकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करें!
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