सुधांशु तिवारी
(पत्रकार)
(प्रदेश उपाध्यक्ष-अखिल भारतीय राष्ट्रीय स्नातक संघ)
कुछ मन्नतें पूरी होने तक वफादार रहना- ए- ज़िन्दगी
बहुत अर्जियां डाल रखी है मैंने उम्मीदों के बाजार में।।
जीवन का अनमोल लम्हा धीरे धीरे आखरी मंजिल के तरफ बढ़ता जा रहा है! सांसों के समन्दर में तूफान आने का संकेत भी मिलने लगा है!मगर स्वार्थ की कश्ती पर सवार मुसाफिर आने वाले कल से ग़ाफ़िल साहिल की तलास में मुश्किल भरी राहों में भी अपनो की तरक्की के इन्तजामात में सगे सम्बन्धितों से भी दगा करने में गुरेज नहीं कर रहा है! जब की पता है कि कोई नहीं सगा हैं फिर भी कदम कदम पर जा रहा ठगा है!वक्त के साथ बदलती दुनियां में मतलबी मानव इतना नीचे गिरता जा रहा है कि उसे यह मिथ्या जगत जहां घोर अमावस्या का भयावह मंजर कुलांचे भर रहा है दिखाई नहीं देता!उसको जीवन दाता ही समस्या नजर आ रहा हैं।

दुनियां दारी से बेखबर होकर जिस जिस्म के टुकड़े को वफादारी के साथ तमाम वन्दिशो के बावजूद तरफदारी कर काबिल बनाया वहीं आखरी सफर के झंझावात करती शाम को बदनाम कर दिया!तन्हाई की बजती शहनाई में रूसवाई की काली चादर डालकर तरुणाई केशानिध्य में तिरस्कार का खजाना सौंप कर खुशहाली की थाली में भोजन करने लगा!शायद उसे यह पता नहीं की आह, कराह, से निकलते दर्द में अश्कों की वारिश से भीगते लावारिश किए गये अपनों का वियोग जिस योग का प्रादुर्भाव नियत करता है उसके चपेट में बर्बादी के लिए आना नियति नियन्ता की एक निश्चित नियमावली है! इससे कोई बच नहीं सका!आज नहीं तो कल ब्यवस्था के बाजार में कर्म फल का खरीद्दार निश्चित पैदा हो जायेगा!उस दिन पश्चाताप के तराजू पर केवल यादों के सामान का ही मुल्याकन होगा!ज़िन्दगी में होश सम्हालने से लेकर सफर के आखरी सांस तक तकदीर के पन्ने पर भरोशा के स्याही से पल पल का कल बल छल अंकित करते हुए जिनके भविष्य की सुखद कामना का लक्ष्य लिए जो मुसाफिर दिन रात मशक्कत के साथ मजबूत इरादों से अपनी औलादों को जमाने की बुरी नजरों से बचाकर इस मायावी संसार में जीने लायक बनाया वहीं मुसाफिर सफर के तन्हाई भरी राहों में अकेला होकर रह गया!आदमी मुसाफिर है आता है जाता है! आते जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है!यह तो आनी जानी दुनियां है चन्द दिनों का यहां ठीकाना है! कर्म फल भोगकर सब कुछ छोड़कर जाना ही जाना है!यहां कहां अपना ठिकाना है! यह शरीर तो महज बहाना है!प्रारब्ध के पार तोफिक में इस भौतिक जगत के मायावी संसार में वह सब कुछ भोगना है जो नियति नियन्ता के शानिध्य में प्राप्त हुआ है!हाथों की चन्द लकीरों में बस खेल सब तकदीरों का वर्ना अवतरण से लेकर श्मशान, कब्रिस्तान के वरण तक जिनके लिए सब कुछ किया वहीं जीते जी चीरहरण क्यों करते!मानवीय सोच बदल रही है! कलयुग अट्टहास कर रहा है!रिस्तो के बाजार में अपने पराए के सौदागर मुस्करा रहे हैं! हर कोई ताजगी भरी लाजवाब ज़िन्दगी के ख्वाब में बेकार हो चुके असबाब को दरकिनार कर रहा है!अब वह प्रचलन खत्म हो गया जिसमें पुराने खानदानी अहमियत रखने वाली हर चीज को संजोकर रखा जाता था!यादों की फेहरिस्त मे हर जिस्म को सजाया जाता था!मगर अब कहां वे लोग रहे! सबकुछ बदल गया!हर घर से इज्जत का जनाजा निकला गया?दुर्ब्यवस्था में ही आस्था फलीभूत हो रही है! हर परिवार में त्रिया चरित्र का विचित्र खेल एकाकी जीवन का सूत्र इजाद कर रहा है! संयुक्त परिवार शब्द की परिभाषा बदल गयी! जहां समरसता का विहंगम दृश्य मन मोहन लेता वहां कलह का बसेरा हो गया!सच का साथी अब कोई नहीं! अपना कहने को घराती अब कोई नहीं! कोई ऐसा दिन नहीं गुजरता जिसमें इन्सानियत गला फाड़कर रोई नहीं!अश्कों की वर्षांत में चलती तन्हाई की तेज आंधी जिस बर्बादी का मंजर पैदा कर जाती है उसका असर तब देखने को मिलता है जब उसके चपेट में खुद वह रहबर फंसता जिसने आयातित खून के जुनून में अपनी चाहत की बस्ती में खुद आग लगा दी थी! ए तो वक्त है साहब कट जाएगा!मगर पीछे एक इतिहास छोड़ जायेगा! जो आने वाली पीढ़ी को नसीहत दे जायेगी। जो बोएगा वहीं काटेगा!
बस इतना जरूर कहना चाहूंगा-
सम्हल कर चल ए मुसाफिर कदम कदम पर अपनों से धोखा है!
गुजरते हालात में बहुत करीब से हमने देखा है!!
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