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दलित चेतना के महानायक मान्यवर कांशीराम की जयंती पर हुआ कार्यक्रम

By News Desk Mar 16, 2025
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अतुल्य भारत चेतना (संवाददाता- रईस)

बहराइच। दलित चेतना के महानायक पिछड़ों, वँचितों के मसीहा मान्यवर कांशीराम जी की जयंती पर जिला पार्टी कार्यलय पर जिला अध्यक्ष श्री रामहर्ष यादव जी की अध्यक्षता में मान्यवर कांशीराम जी के चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर पूर्व विद्यालयक रमेश गौतम, पार्टी के ज़िला उपाध्यक्ष डाo आशिक अली, देवेश चंद मिश्र उत्तम सिंह एडवोकेट, रामजी यादव, अनिल यादव, प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य सुंदर लाल बजेपी, पेशकार राव अनवर अली, ज़िला सचिव आनंद यादव, अखिलेश यादव, अयोध्या प्रसाद सोनी, मुन्ना रायनी, मन्नूदेवी, नदीमलहक तन्नू, इ o राकेश सोनकर, रेखा राव, हरिशंकर आजाद, कन्हैया लाल लोधी, नंदेश्वर नंद यादव, रमेशकुमारसिंह, बाकेश यादव, यादब, पप्पू यादव, संतोष तिवारी, शांति गौतम, मो आसिफ, प्रताप अलबेला,बब्लू गौतम, मयंक मिश्र, अमित पाल, डा 0 गौरव यादव, सुनील यादव, श्यामता प्रसाद, आदि लोग उपस्थित आये।

दलित चेतना के महानायक कांशीराम के बारे में पूरी जानकारी

कांशीराम, जिन्हें “मान्यवर कांशीराम (Manyvar कांशीराम)” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय राजनीति और समाज सुधार के क्षेत्र में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व थे। वे दलित चेतना के महानायक और बहुजन आंदोलन के प्रणेता माने जाते हैं। उन्होंने अपने जीवन और कार्यों के माध्यम से दलितों, शोषितों और पिछड़े वर्गों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने का प्रयास किया। नीचे उनके जीवन, संघर्ष और योगदान की पूरी जानकारी दी जा रही है:

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

  • जन्म: कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ जिले के खवासपुर गांव में एक दलित रामदसिया सिख परिवार में हुआ था। उनका परिवार पहले हिंदू चमार जाति से था, जो बाद में सिख धर्म में परिवर्तित हो गया।
  • शिक्षा: उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्तर पर पूरी की और बाद में रोपड़ के गवर्नमेंट कॉलेज से विज्ञान में स्नातक (बीएससी) की डिग्री हासिल की। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि साधारण थी, लेकिन शिक्षा के प्रति उनकी रुचि ने उन्हें आगे बढ़ने का अवसर दिया।
  • नौकरी: 1957 में उन्होंने पुणे में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) में सहायक वैज्ञानिक के रूप में नौकरी शुरू की। यह एक प्रतिष्ठित सरकारी पद था, जो उस समय दलित समुदाय के लिए दुर्लभ था।

दलित चेतना का उदय और प्रेरणा

कांशीराम का जीवन तब बदला जब उन्होंने कार्यस्थल पर जातिगत भेदभाव और शोषण को करीब से देखा। खास तौर पर, एक घटना जिसमें दलित कर्मचारियों को डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती पर छुट्टी लेने के लिए भेदभाव का सामना करना पड़ा, ने उन्हें गहरे तक प्रभावित किया। इसके बाद उन्होंने अंबेडकर के लेखन, विशेष रूप से “एनिहिलेशन ऑफ कास्ट” (जाति का विनाश) को पढ़ा, जिसने उनके भीतर दलित चेतना को जागृत किया।

उन्होंने महसूस किया कि दलितों और शोषित वर्गों की मुक्ति केवल सरकारी नौकरी या आरक्षण से नहीं हो सकती, बल्कि इसके लिए राजनीतिक शक्ति और संगठन जरूरी है। इस प्रेरणा के साथ, उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता बनने का फैसला किया।

संगठन और आंदोलन

कांशीराम ने अपने विचारों को अमल में लाने के लिए कई संगठनों की स्थापना की, जो उनके बहुजन आंदोलन की नींव बने:

  1. बामसेफ (BAMCEF): 1971 में कांशीराम ने “अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी महासंघ” (BAMCEF) की स्थापना की। इसका उद्देश्य शिक्षित और नौकरीपेशा दलितों और पिछड़े वर्गों को एकजुट करना था, ताकि वे समाज को “पे बैक टू सोसाइटी” (समाज को वापस लौटाने) के सिद्धांत पर योगदान दे सकें।
  2. डीएस-4 (DS4): 1981 में उन्होंने “दलित शोषित समाज संघर्ष समिति” (DS4) की स्थापना की। यह संगठन अधिक आंदोलनकारी था और इसने दलितों व शोषितों के अधिकारों के लिए जमीनी स्तर पर काम किया। 1983 में इस संगठन ने एक विशाल साइकिल रैली का आयोजन किया, जिसमें तीन लाख से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया, जिसने उनकी संगठनात्मक शक्ति को प्रदर्शित किया।
  3. बहुजन समाज पार्टी (BSP): 14 अप्रैल 1984 को कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की। यह दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों (बहुजन समाज) के राजनीतिक सशक्तिकरण का मंच बना। उनका प्रसिद्ध नारा था- “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी”, जो जनसंख्या के आधार पर सत्ता में हिस्सेदारी की मांग को दर्शाता था।

साहित्यिक योगदान

कांशीराम ने अपने विचारों को जनता तक पहुंचाने के लिए लेखन का भी सहारा लिया:

  • द चमचा एज (1982): इस पुस्तक में उन्होंने उन दलित नेताओं की आलोचना की जो मुख्यधारा की पार्टियों (जैसे कांग्रेस) के लिए “चमचा” (कठपुतली) बनकर काम करते थे। उन्होंने दलितों को स्वतंत्र राजनीतिक पहचान बनाने की प्रेरणा दी।
  • बर्थ ऑफ BAMCEF: इस किताब में उन्होंने अपने संगठन के उद्देश्यों और दर्शन को स्पष्ट किया।

राजनीतिक यात्रा और उपलब्धियाँ

  • प्रारंभिक संघर्ष: BSP के गठन के बाद कांशीराम ने कहा था कि उनकी पार्टी “पहला चुनाव हारने, दूसरा नजर में आने और तीसरा जीतने के लिए लड़ेगी।” यह रणनीति धीरे-धीरे सफल हुई।
  • मायावती का उदय: कांशीराम ने मायावती को अपना उत्तराधिकारी बनाया। 1995 में BSP और BJP के गठबंधन से मायावती उत्तर प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनीं। यह कांशीराम के सपने का साकार रूप था कि एक दलित की बेटी सत्ता के शिखर पर पहुंचे।
  • उत्तर प्रदेश में प्रभाव: BSP ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में गहरा प्रभाव डाला। 2007 में मायावती के नेतृत्व में पार्टी ने पूर्ण बहुमत हासिल किया, जो कांशीराम की नींव का परिणाम था।
  • राष्ट्रीय प्रभाव: कांशीराम के आंदोलन ने देश भर में दलित चेतना को जागृत किया और अन्य पिछड़े वर्गों के नेताओं (जैसे लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव) को भी प्रेरित किया।

व्यक्तिगत जीवन और सिद्धांत

  • कांशीराम ने कभी शादी नहीं की और न ही कोई संपत्ति अपने नाम की। उन्होंने अपना पूरा जीवन बहुजन आंदोलन को समर्पित कर दिया।
  • वे सादगी से जीवन जीते थे और ब्राह्मणवाद के कट्टर विरोधी थे। बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया, जो अंबेडकर के विचारों से प्रभावित था।
  • उनका मानना था कि दलितों को अपनी मुक्ति के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि खुद संगठित होकर सत्ता हासिल करनी चाहिए।

स्वास्थ्य और निधन

  • कांशीराम को डायबिटीज और हृदय संबंधी समस्याएं थीं। 1994 में उन्हें पहला दिल का दौरा पड़ा, 1995 में मस्तिष्क में रक्त का थक्का जमा और 2003 में ब्रेन स्ट्रोक हुआ।
  • 9 अक्टूबर 2006 को दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद मायावती ने BSP की कमान संभाली।

दलित चेतना में योगदान

  1. राजनीतिक सशक्तिकरण: कांशीराम ने दलितों को यह विश्वास दिलाया कि वे शासक बन सकते हैं, न कि सिर्फ शासित रहें। उनकी पार्टी ने सत्ता में दलित भागीदारी बढ़ाई।
  2. जातीय चेतना का राजनीतिकरण: उन्होंने जाति को एक राजनीतिक हथियार बनाया और बहुजन समाज को एकजुट करने के लिए संगठनात्मक ढांचा तैयार किया।
  3. अंबेडकर के विचारों का प्रसार: कांशीराम ने अंबेडकर के अधूरे सपनों को आगे बढ़ाया और दलितों में आत्मसम्मान की भावना जगाई।
  4. सामाजिक परिवर्तन: उनके नारे जैसे “वोट हमारा, राज तुम्हारा, नहीं चलेगा” और “तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार” ने शोषक वर्गों के खिलाफ आक्रोश को आवाज दी।

विरासत

कांशीराम की सबसे बड़ी विरासत बहुजन समाज पार्टी और मायावती का नेतृत्व है। उन्होंने भारतीय राजनीति का व्याकरण बदल दिया और दलितों को मुख्यधारा में लाने का मार्ग प्रशस्त किया। आज भी उनके विचार और संघर्ष दलित चेतना के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।

संक्षेप में, कांशीराम एक ऐसे महानायक थे जिन्होंने दलितों और शोषितों को न केवल सपने देखने की हिम्मत दी, बल्कि उन सपनों को हकीकत में बदलने का रास्ता भी दिखाया। उनका जीवन और कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल है।

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