
राकेश मिश्र (सरयूपारीण) के गीत के साथ यशगीत की आगामी श्रृंखला में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े आप सभी साथियों का हृदय से स्वागत है।
जब नित्य चुभाई जायेंगी
गीतों के पावों में कीलें।
जब क्रूर झपट्टा मारेंगी
कविताओं पर पागल चीलें।
‘यशगीत’ गीत-कविताओं के
घावों पर लेप लगाएगा।
मरने से उन्हें बचाएगा।
छंदों की पावन वंश – वधू
जब नगर – नगर में भटकेगी।
जब सहस अंकशायिनि कुलटा
महलों में आकर मटकेगी।
सारे के सारे मठाधीश
जब अपने अधरों को सी लें।
भाषा के हिस्से विष आए,
पीयूष कुभाषाएँ पी लें।
‘यशगीत’ कुलवधू को उसका
सारा अधिकार दिलाएगा।
वापस घर लेकर आयेगा।
हम सब हैं साधनहीन भले
लेकिन भाषा के साधक हैं।
चाहे न कृपा हम पर बरसे,
फिर भी सच्चे आराधक हैं।
जिनको लेना हो नभ लेलें
जिनको लेनी हो अवनी, लें।
लेकिन पानी को तरसेंगी,
हिंदी की जब प्यासी झीलें।
‘यशगीत’ विमल जल बरसाकर
तब उनकी प्यास बुझाएगा?
युग-युग तक क्रम दुहराएगा।
-राकेश मिश्र ‘सरयूपारीण’
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