
बड़े एहसान है मुझपर
अब इस जालिम जमाने के ।
इसी की ठोकरों ने तो
मुझे चलना सिखाया है।
दिये को खोजता फिरता था
परवानो के जैसा मैं
अन्धेरों ने चरागों की तरह
जलना सिखाया है।
सभी को शुक्रिया जिस -जिस ने भी
रुसवाइयां दीं हैं।
जिन्होंने गम दिये मुझको
मुझे तनहाइयां दी हैं
मेरी मजबूरियों लाचारियों
गुरबत के तानों को ।
सभी खुदगर्ज अपनों को
सभी जालिम बेगानों को ।
मेरे कुनबे की पैदाइश
नये शाही घरानों को ।
हमारी झोपड़ी के सामने के
कुछ मकानों को ।
मुझे पूरा जलाकर
राख कर देने की कोशिश ने ।
नये सांचे मे नयी शक्ल मे
ढलना सिखाया है ।
बड़े एहसान है मुझपर
अब इस जालिम जमाने के ।
इसी की ठोकरों ने तो
मुझे चलना सिखाया है ।
-महेश मिश्र (मानव)
subscribe our YouTube channel
