
आज मै खुद से मिला था ।
हैं कई अरमां अधूरे ‘ ख्वाइशें हैं ।
ढेर सारी उलझने हैं बन्दिशें हैं ।
ठोकरों के घाव हैं कुछ ।
और जख्मो की निशानी ।
बचपना भी कुछ बचा है।
और है थोड़ी जवानी ।
कुछ हसीं यादों की जानिब ।
आंशुओं का सिलसिला था ।
आज मै खुद से मिला था ।
खर्च हूं रिश्तों मे थोड़ा सा बचा हूं ।
हूं कभी बेटा पती भाई ‘ पिता हूं।
खुद से पूंछा मैं भला इन्सान हूं क्या ।
कई हिस्सों में बंटा सामान हूं क्या ।
रोटियों की खोज मे मै खो गया हूं ।
ना रहा अपना पराया हो गया हूं ।
जहां जिम्मेदारियां हैं मै वहां हूं ।
ढूंढता रहता हूं खुदको मै कहां हूं ।
था अकेला मै सफर मे ।
साथ बेशक काफिला था ।
आज मै खुद से मिला था ।
समय की धारा के संग मै बह गया हूं ।
सिर्फ दुनियां का ही होकर रह गया हूं ।
तोड़ कर खुदको मै सिक्के जोड़ता हूं ।
पूरी बच्चों की जरूरत हो सके ।
मै मेरे टुकड़ो फिर से तोड़ता हूं ।
अब मेरी खुशियां पराई हो गयीं हैं।
फूल से चेहरे पे झांईं हो गयी है ।
कल खिलौने देख करके ।
जब मेरा बच्चा हंसा था ।
मुद्दतों के बाद तब मै भी खिला था ।
आज मै खुद से मिला था
-महेश मिश्र (मानव)
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