
अयोध्या
वर्षो तक जिसके हिस्से में
अनचाहा वनवास रहा हो
औऱ समय ऐसे भी देखे
स्वयं समय भी दास रहा हो
इतनी दूर गया वो ही
जो मन के सबसे पास रहा हो
इतनी चोटें सहीं कि जैसे
मूरत कोई तराश रहा हो
जाने किसकी नजर लगी थी
कितनी पावन रही अयोध्या
पुरखो से सुनते आए हैं
बड़ी अभागन रही अयोध्या
अतिवादों ने सच्चाई की
अनुनय विनय कभी न मानी
वर्षों तक चलती आई फिर
सही गलत में खींचातानी
सही बात सहमी रहती थी
चिल्लाती थी गलतबयानी
जाने कितने कितने दिन तक
लाल रहा सरयू का पानी
राजनीति के काले मन का
उजला दरपन रही अयोध्या
जिसने केवल इतना चाहा
सारे मसले हल हो जाएं
सूनी गलियों के सन्नाटे
फिर से चहल पहल हो जाएं
संघर्षों की कालिख वाले
किस्से , बीता कल हो जाएं
घर के बेटे के हिस्से के
तम्बू , राजमहल हो जाएं
बिना राम की रामकहानी
सुनती बेमन रही अयोध्या
कुछ कहते हैं दबी जुबां से
माँ सीता का शाप लगा है
दो जोड़ी बूढ़ी आँखों का
पुत्र वियोग , विलाप लगा है
सूरज को जन्मा है , शायद
इसीलिए यह ताप लगा है
कोई तो अपराध हुआ है
जिसका सिर पर पाप लगा है1
देव और दानव दोनों का
सागर मंथन रही अयोध्या
-स्वयं श्रीवास्तव
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