
मैं शिक्षामित्र हूं (भाग-2)
कान्तिहीन काया है।
चिन्ता की छाया है।
जीते है मरते हैं।
खटते हैं डरते हैं।
छोटे से वेतन मे
काम सब करते हैं।
मैले परिधानो मे
उज्ज्वल चरित्र हूं।
मैं शिक्षा मित्र हूं ।
घर मे बीमारी है।
बाहर उधारी है ।
सेवा सरकारी है ।
फिर भी लाचारी है ।
टीवी की चर्चा मे ।
काबा है काशी है ।
अन्दर निराशा है ।
बाहर उदासी है ।
सत्ता के शीर्ष पर ।
यद्यपि सन्यासी है।
टूटी सी शीशी मे ।
महकदार इत्र हूं ।
मै शिक्षामित्र हूं ।
किसी की पढ़ाई हूं ।
किसी की दवाई हूं ।
उसकी विदाई हूं ।
जिसका मै पापा हूं ।
जिसका मै भाई हूं ।
कइयों सवालो का ‘
एकल जबाब हूं ।
कई अरमान हूं ।
कइयों का ख्वाब हूं ।
घिरा हूं सवालों से ।
पर ला जबाब हूं ।
सियासत का मोहरा ।
खिलाफत का चेहरा ।
मै दिखता हूं उथला ।
मगर मै हूं गहरा ।
मै क्या क्या हूं कैसा हूं ।
कितना विचित्र हूं ।
मै शिक्षा मित्र हूं ।
-महेश मिश्र (मानव)
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