
मन्दिरो का क्या करेंगें ?
मस्जिदों का क्या करेंगें ?
हम ये पूजा पाठ माला
मोतियों का क्या करेंगें ?
क्या हमे दो जून का
खाना कोई अवतार देगा ?
रोटियों की भूख वाले
पोथियों का क्या करेंगे?
भूख ने जिन्दा रखा है
भूख खातिर रोज मरते।
भूख मिट जाय महज
हर रोज हम क्या क्या ना करते।
पर्वतों को तोड़ते हैं
हवा का रुख मोड़ते हैं।
काटते चट्टान प्रतिदिन ‘
रास्तों को जोडते हैं।
तब कहीं हो पाती है
दो जून की रोटी मयस्सर।
भूख को खाकर भी
सो जाते हैं अपने बच्चे अक्क्सर।
हम ये चन्दन और टीका
टोपियों का क्या करेंगें ?
रोटियों की भूख वाले
पोथियों का क्या करेंगें ?
आरती का क्या करेंगें ?
हम जियारत क्या करेंगें ?
मजहबी धन्धे की यह
गन्दी तिजारत क्या करेंगें ?
हम मसक्कत से पले हैं
खेलना सीखा नही।
हम सियासी खेल की
इन गोटियों का क्या करेंगे ?
रोटियों की भूंख वाले
पोथियों का क्या करेंगें ?
-महेश मिश्र (मानव)
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