
हे भारत की राजनीति
तुझको जय घोष मुबारक हो।
वाताअनुकूलित बंगलों की
प्यारी शाम मुबारक हो।
हो जिससे धन की वर्षा
वह सेवा काम मुबारक हो।
और लुटेरों को
जननायक वाला नाम मुबारक हो।
गद्दो के तकियो के
प्यारे-प्यारे नोट मुबारक हों।
और जातीय बंटवारे के
सारे वोट मुबारक हों।
झोपडियों की बर्बादी
महलो हास मुबारक हो।
वैभव का अथाह सागर
सत्ता की प्यास मुबारक हो।
सिहासन सत्ता की शक्ति
भोले जन मानस की भक्ति।
भाई चारे की हत्या
मजहब का रोष मुबारक हो।
हे भारत की राजनीति
तुझको जय घोष मुबारक हो।
सभी सियासी समीकरण
और सारे दाँव मुबारक हों।
भिन्न विचारों से
गठबन्धन के सब घाव मुबारक हों।
संघर्षो की धूप मुबारक
पद की छांव मुबारक हों।
दूषित शहर मुबारक
सारे निर्धन गांव मुबारक हों।
कलुषित कारोवार मुबारक।
सपनो का व्यापार मुबारक।
तुझको तेरी जीत मुबारक।
तुझको तेरी हार मुबारक।
खद्दरधारी अवतारों के
सब गुण दोष मुबारक हों।
हे भारत की राजनीति
तुझको जय घोष मुबारक हो।
लुटती अबलाओं की अस्मत
रोता बाप मुबारक हो।
सत्ताधीषों की छाती की
झूठी माप मुबारक हो।
बन्दूको के आगे सहमा सा
गणतन्त्र मुबारक हो।
और कौडियों मे बिकता
सरकारी तंन्त्र मुबारक हो।
मोहन भोग जहां मिलता है
कारागार मुबारक हो।
बिकी हुई खबरें छपती हैं
वह अखबार मुबारक हो।
सत्ता के सामर्थ्य वृत्त का
भारी ब्यास मुबारक हो।
और मान से भरा हुआ
हिंसक सन्यास मुबारक हो।
नेताओं के भाषन का
भाषायी जोश मुबारक हो।
हे! भारत की राजनीति तुझको
जयघोष मुबारक हो।
– महेश मिश्र (मानव)

