
कामनाओं,आकांक्षाओं से मुक्त
नदिया, पहाड़ और झरने
सदैव एक से होते हैं
ना बाढ़ से परेशान
ना सुखे से हलाकान,
पहाड़ चट्टान सदृश्य कठोर
नदियों में निर्बाध प्लावन
झरनों में स्निग्धता।
परिस्थितियों भी
मौसम की तरह है
कभी सावन, कभी
भादो,कभी आषाढ़
कभी भयानक सूखा
कभी भयानक बाढ़,
हे मनुष्य,
जीवन तो जीवन है
तेरा,मेरा नहीं सबका है,
क्यों ना हम निस्पृह रहें,
इन पेड़ों और पत्तियों
टहनियों की तरह
ना बारिश से परेशान
ना पतझड़ से हैरान।
सुख और आनंद
दुख और अवसाद
चाहत का अतिरेक
स्पृहा का मोहपाश
मोह के मायाजाल
का अदृश्य स्वरूप,
कृष्ण ने भी कहा है
क्या लेकर आया है
क्या लेकर जाएगा,
खाली हाथ आया है
खाली हाथ जाएगा,
फिर क्यों इतनी
चाहत,लोभ, कामना?
आओ मिलकर मुस्कुराए
अबोध नन्हे की तरह
बात-बात पर खिलखिलाएं
और हो जाएं
निराकार पवन की तरह
बहते जाएं उतुंग
शिखर में,
विचार रहित
आकाश में
कामनाओं, आकांक्षाओं से मुक्त
मासूम नवजात की तरह।
-संजीव ठाकुर “संजीव-नी”
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