
दर्पण के जैसा होना कितना मुश्किल है।
दुनिया में अच्छा होना कितना मुश्किल है।
इसका अनुभव कोल्हू के गन्ने से पूछो,
इस जग में मीठा होना कितना मुश्किल है।
अग्नि परीक्षा दे कर भी सुख चैन मिला कब,
नारी का सीता होना कितना मुश्किल है।
कटवानी पड़ती हैं शाखाएँ पेड़ों को,
धरती पर सीधा होना कितना मुश्किल है।
सबकी प्यास बुझाने का फल खारा सागर,
इक दिल का दरिया होना कितना मुश्किल है।
दम घुटता है बोझ तले झूठी कसमों के,
कलयुग में गीता होना कितना मुश्किल है।
सारे जग के पाप युगों से धुलती आयी,
सब सह कर गंगा होना कितना मुश्किल है।
रत्न बाँट कर मंथन का खुद पिये हलाहल,
मुखिया का भोला होना कितना मुश्किल है।
-जे. पी. नाचीज़

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