
तुम कहते तो मैं गंगा का पथ भी रोकने को तैयार रहता
तुम कहते तो मैं इन्द्र का वज्र भी तोड़ने को तैयार रहता।
कहते तुम धरा के मग मे खड़े पर्वत को फोड़ने को
कहते तुम आसमान पर भी भव्य ईमारत जोड़ने को।
मै तैयार रहता हर वक्त कभी न तेरे आदेशो को तोड़ता
कमाता खेतो मे पेट पीठ एक कर भले मुट्ठी भर दाना न मिलता।
सदियो बीत गये मुझे तुम्हारा महल और अट्टालिका बनाते
सदियो बीत गये मुझे फूलो की रंगीन लहर लहराते।
मै देता तुम्हे मखमली सेज मखमली परदो के अंदर सोने को
भले मेरे भार्या को लज्जावसन और शिशु को क्षीर न मिलता पीने को।
इस पर भी सैकड़ो मनुज भक्षी आज मुझे हुंकार रहा
इस पर भी सैकड़ो क्रूरजन मुझ पर अत्याचार कर रहा।
कब तक सहते रहूंगा अब इन मनुज भक्षियो के हुंकार को
कब तक सहते रहूंगा बताओ इन क्रुर जनो के अत्याचार को।।
-प्रमोद कश्यप “प्रसून”
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