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Chattisgarh news; ऐतिहासिक कृति ‘रतनपुर राज्य का इतिहास’ का विमोचन, बाबू प्यारेलाल गुप्त की 134वीं जयंती पर व्याख्यानमाला और कवि सम्मेलन संपन्न

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अतुल्य भारत चेतना
प्रमोद कश्यप

तनपुर/बिलासपुर/छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ के प्रख्यात साहित्यकार, इतिहासकार और स्वतंत्रता सेनानी बाबू प्यारेलाल गुप्त की 134वीं जयंती के अवसर पर बाबू प्यारेलाल गुप्त सृजन पीठ द्वारा रतनपुर के इतिहास और संस्कृति पर केंद्रित एक व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. रमेन्द्र नाथ मिश्र उपस्थित थे, जबकि अध्यक्षता रायपुर के वरिष्ठ पुरातत्ववेत्ता डॉ. जी.एल. रायकवार ने की। कार्यक्रम के दौरान बाबू प्यारेलाल गुप्त द्वारा 1944 में लिखित ऐतिहासिक कृति ‘रतनपुर राज्य का इतिहास’ का विमोचन किया गया, जो सृजन पीठ द्वारा पुनः प्रकाशित की गई है। इसके अलावा, अतिथियों का सम्मान और एक आंचलिक कवि सम्मेलन भी आयोजित हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी, इतिहासकार और स्थानीय नागरिक शामिल हुए।

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बाबू प्यारेलाल गुप्त (जन्म: 1891) छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख साहित्य मनीषी और इतिहासकार थे, जिन्होंने छत्तीसगढ़ की प्राचीन संस्कृति, इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम पर महत्वपूर्ण कार्य किया। वे रतनपुर क्षेत्र के निवासी थे और उनकी रचनाएँ छत्तीसगढ़ के कल्चुरि राजवंश तथा स्थानीय पुरातत्व पर प्रकाश डालती हैं। इस जयंती समारोह का उद्देश्य रतनपुर की गौरवशाली विरासत को संरक्षित करने और युवा पीढ़ी को इससे जोड़ने का था। कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन से हुई, जिसके बाद सृजन पीठ के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र कुमार वर्मा ने स्वागत भाषण दिया।

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मुख्य अतिथि डॉ. रमेन्द्र नाथ मिश्र, जो पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के पूर्व प्रोफेसर और छत्तीसगढ़ इतिहास पर कई पुस्तकों के लेखक हैं, ने अपने उद्बोधन में रतनपुर के गौरवशाली इतिहास और पुरातात्विक संपदा का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, “रतनपुर कल्चुरि राजवंश की राजधानी रहा है, और यहां की मंदिरों, तालाबों तथा प्रतिमाओं का संरक्षण हमारी सांस्कृतिक जिम्मेदारी है। आजादी के अमृत महोत्सव के इस दौर में हमें स्थानीय इतिहास को सहेजना होगा।” डॉ. मिश्र ने विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ छत्तीसगढ़ की भूमिका पर भी प्रकाश डाला।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. जी.एल. रायकवार, जो छत्तीसगढ़ संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के पूर्व उप निदेशक हैं और महेशपुर (सुरगुजा) जैसे स्थलों पर खुदाई कार्यों में संलग्न रहे हैं, ने रतनपुर के मंदिर शिल्प और प्रतिमा विज्ञान पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कंठी देवल मंदिर में उत्कीर्ण लिंगोद्भव शिव प्रतिमा तथा हाथीकिले में उत्कीर्ण रावण की प्रतिमा के शिल्पांकन पर विस्तार से चर्चा की। डॉ. रायकवार ने कहा, “ये प्रतिमाएं छत्तीसगढ़ की प्राचीन कला की उत्कृष्टता दर्शाती हैं, और इन्हें संरक्षित करने के लिए सामाजिक प्रयास आवश्यक हैं।”

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विशिष्ट अतिथि बिलासपुर के वरिष्ठ साहित्यकार विजय कुमार गुप्ता ने रतनपुर के मंदिरों एवं तालाबों के महत्व को रेखांकित किया, जबकि डॉ. सुनील जायसवाल ने कल्चुरि राजवंश के इतिहास को सहेजने के लिए सामाजिक स्तर पर प्रयासों की जरूरत पर जोर दिया।

कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण बाबू प्यारेलाल गुप्त की कृति ‘रतनपुर राज्य का इतिहास’ का विमोचन रहा। यह पुस्तक रतनपुर राज्य के राजनैतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक इतिहास पर आधारित है, जो छत्तीसगढ़ के स्कूली पाठ्यक्रम में भी शामिल है। मुख्य अतिथि और अध्यक्ष ने संयुक्त रूप से इसका विमोचन किया। इस अवसर पर सृजन पीठ ने डॉ. रमेन्द्र मिश्र को ‘छत्तीसगढ़ इतिहास गौरव सम्मान’ तथा डॉ. जी.एल. रायकवार को ‘छत्तीसगढ़ पुरा गौरव सम्मान’ से सम्मानित किया। सम्मान में शाल, श्रीफल और अभिनंदन पत्र भेंट किए गए।

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समारोह के दूसरे चरण में आंचलिक कवि सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें भादों की तपन के बीच कविता की रसधार बही। बिलासपुर के वरिष्ठ कवि जगतारन डहरे, विजय कुमार गुप्ता, मदन सिंह ठाकुर, पूर्णिमा तिवारी, विपुल तिवारी; कोटा के चंद्र प्रकाश साहू, ज्योति श्रीवास, गया प्रसाद साहू, मोहित साहू; जयराम नगर के दशरथ मतवाले; कोटमी सोनार के व्यास सिंह गुमसुम तथा रतनपुर के वरिष्ठ कवि काशीराम साहू, डॉ. राजेन्द्र कुमार वर्मा, रामरतन भारद्वाज, रामानंद यादव, दिनेश पांडेय, रामेश्वर सिंह शांडिल्य, प्रमोद कश्यप एवं ब्रजेश श्रीवास्तव ने सुमधुर गीतों एवं गजलों से समां बांध दिया। कार्यक्रम का संचालन ब्रजेश श्रीवास्तव ने किया।

इस मौके पर वरिष्ठ शिक्षाविद् शंकर लाल पटेल, बलराम पांडेय, अनिल शर्मा, राकेश निर्मलकर, सुईया गुप्ता, मुकेश श्रीवास्तव, भानुप्रताप कश्यप सहित बड़ी संख्या में नागरिक और महिलाएं उपस्थित थे। आयोजकों ने बताया कि ऐसे कार्यक्रम रतनपुर की सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सृजन पीठ के प्रयासों से छत्तीसगढ़ के इतिहास को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य जारी रहेगा।

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