अतुल्य भारत चेतना
चन्द्रभान सिंह यादव
उदयगिरि। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के उदयगिरि नसिया में आयोजित 7 दिवसीय स्वाध्याय शिविर के दौरान बाल ब्रह्मचारी सुमतप्रकाश ने आत्मा, कर्म, और जीवन की वास्तविकता पर गहन प्रवचन दिया। यह शिविर सुबह उदयगिरि नसिया और दोपहर में सीमंधर जिनालय में आयोजित हो रहा है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु लाभ प्राप्त कर रहे हैं। प्रवक्ता डॉ. मक्खन लाल जैन ने बताया कि शिविर में आत्मज्ञान, संयम, और धर्म के गूढ़ रहस्यों पर प्रकाश डाला जा रहा है।
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आत्मा और कर्म का संबंध
बा. ब्र. सुमतप्रकाश ने अपने प्रवचन में पांच भावों की विस्तृत व्याख्या की, जिसमें आत्मा और कर्म के संबंध को समझाया गया। उन्होंने कहा कि जीवन एक सिनेमा की तरह है, जिसमें हम जो देखते हैं, वह केवल दृश्य है, न कि वास्तविकता। “जो दिखता है, वह ‘मैं’ नहीं है। आत्मा को देख पाना कठिन है, क्योंकि वह भौतिक दृष्टि से परे है।” उन्होंने आत्मा को शाश्वत और सत्य बताते हुए कहा कि अनुभव अस्थायी और भ्रममय हैं।
पाप और पुण्य का अंतर
उन्होंने धर्म के संदर्भ में पाप और पुण्य के बीच के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा, “धर्म में भी पाप और पुण्य का भेद समझना आवश्यक है। जो दिखाई देता है, वह सत्य नहीं है।” उन्होंने केले के उदाहरण से समझाया कि जैसे छिलका भ्रम का प्रतीक है, वैसे ही कर्मों के प्रभाव से उत्पन्न अनुभूतियाँ मात्र बाहरी आवरण हैं। असली सत्य आत्मा की मिठास में छिपा है, जिसे समझने के लिए पुरुषार्थ की आवश्यकता है।

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चार भावों की व्याख्या
बा. ब्र. सुमतप्रकाश ने चार भावों—पार्णामिक भाव, औदायिक भाव, संयम, और सम्यक दर्शन—पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि पार्णामिक भाव कर्मों द्वारा प्रदर्शित अनुभव हैं, जो आत्मा की सच्चाई नहीं दर्शाते। औदायिक भाव कर्मों के फलस्वरूप उत्पन्न परिणाम हैं। सच्चा आत्मज्ञान और मोह से मुक्ति का मार्ग संयम और सम्यक दर्शन से होकर गुजरता है। “संयम और सही दृष्टिकोण के माध्यम से ही आत्मा का अनुभव संभव है।”
आत्मज्ञान का महत्व
उन्होंने आत्मज्ञान को जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य बताते हुए कहा, “स्वयं की खोज और वास्तविकता से जुड़ाव ही सबसे बड़ा पुरुषार्थ है। सच्चाई को स्वीकार करना सरल है, पर सरलता के कारण यह कठिन लगता है।” उन्होंने जोर दिया कि दूसरों की गलतियों को अपने ऊपर लेना और भ्रम को छोड़कर सत्य को अपनाना आध्यात्मिकता का आधार है। “आत्मा शाश्वत और सत्य है, जबकि अनुभव अस्थायी और भ्रममय हैं।”
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जीवन की वास्तविकता
उन्होंने जीवन को सिनेमा के परदे की तरह बताया, जहाँ दृश्य बदलते रहते हैं, पर वास्तविकता आत्मा में निहित है। “हमें कर्मों के छिलके को पहचानकर उसके पीछे छिपे सत्य को समझना चाहिए। आत्मज्ञान और सही दृष्टिकोण ही हमें भ्रम से मुक्ति दिला सकता है।”
श्रद्धालुओं की प्रतिक्रिया
शिविर में उपस्थित श्रद्धालुओं ने बा. ब्र. सुमतप्रकाश के प्रवचनों को गहराई से सुना और आत्मज्ञान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त की। प्रवक्ता डॉ. मक्खन लाल जैन ने कहा कि यह शिविर आत्मिक जागरूकता और धर्म के प्रति सही समझ विकसित करने का एक अनूठा अवसर है।
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उदयगिरि नसिया और सीमंधर जिनालय में चल रहा यह स्वाध्याय शिविर आत्मा, कर्म, और धर्म के गहन रहस्यों को समझने का एक महत्वपूर्ण मंच साबित हो रहा है। बा. ब्र. सुमतप्रकाश के प्रवचनों ने श्रद्धालुओं को आत्मज्ञान की ओर प्रेरित किया और पाप-पुण्य के अंतर को समझने की दिशा में एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया। यह शिविर न केवल आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ा रहा है, बल्कि समाज में सत्य और संयम के मूल्यों को भी स्थापित कर रहा है।