अतुल्य भारत चेतना
रईस
रुपईडीहा/बहराइच। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित बहराइच जिले के बक्शी गांव के चकिया इलाके में शुक्रवार, 4 जुलाई 2025 को वन महोत्सव के अंतर्गत एक अनूठा वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित किया गया। “एक पेड़ माँ के नाम 2.0” अभियान के तहत यह आयोजन न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ, बल्कि मातृत्व के प्रति श्रद्धा और भारत-नेपाल के बीच सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी बना। इस कार्यक्रम में दोनों देशों के नागरिकों, विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों, और किसानों की संयुक्त भागीदारी ने इसे एक भावनात्मक और सांस्कृतिक आंदोलन में बदल दिया।
“एक पेड़ माँ के नाम 2.0” अभियान का उद्देश्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस 2024 को शुरू किया गया “एक पेड़ माँ के नाम” अभियान पर्यावरण संरक्षण को मातृत्व के सम्मान के साथ जोड़ने की एक अनूठी पहल है। इस अभियान का लक्ष्य सितंबर 2024 तक 80 करोड़ और मार्च 2025 तक 140 करोड़ पौधे लगाने का है, जिसमें सामुदायिक भागीदारी और सरकारी सहयोग पर विशेष जोर दिया गया है। “एक पेड़ माँ के नाम 2.0” के तहत बक्शी गांव में आयोजित यह कार्यक्रम इस अभियान का हिस्सा था, जिसने स्थानीय समुदाय और सीमावर्ती क्षेत्रों में पर्यावरण जागरूकता को बढ़ावा दिया।
वृक्षारोपण: पर्यावरण और मातृत्व का संगम
चकिया इलाके में आयोजित इस वृक्षारोपण कार्यक्रम में नीम, शीशम, जामुन, अर्जुन, साल, सागौन, और कटहल जैसे देसी और फलदार पौधों का रोपण किया गया। प्रत्येक पौधा माताओं के नाम समर्पित किया गया, जो न केवल पर्यावरण के लिए वरदान साबित होगा, बल्कि मातृत्व के प्रति श्रद्धा और स्नेह का प्रतीक भी बना। इस आयोजन में भारत और नेपाल के नागरिकों ने एक साथ मिलकर पौधे रोपे, जिसने सीमाओं को तोड़ते हुए साझा सांस्कृतिक और पर्यावरणीय बंधन को मजबूत किया।
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कार्यक्रम के दौरान, प्रतिभागियों ने पौधों की सुरक्षा और देखभाल का संकल्प लिया। क्षेत्रीय वन अधिकारी अतुल श्रीवास्तव ने कहा, “यह अभियान केवल पौधे लगाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक भावनात्मक और सांस्कृतिक पहल है जो लोगों को अपनी माताओं और प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी याद दिलाती है।” उन्होंने यह भी बताया कि रोपे गए पौधों की नियमित निगरानी और देखभाल सुनिश्चित की जाएगी।
सामुदायिक और सीमावर्ती भागीदारी
इस आयोजन की सबसे खास बात रही भारत और नेपाल के नागरिकों की संयुक्त भागीदारी। बक्शी गांव की ग्राम प्रधान संगीता देवी, समाजसेवी मुकुट बिहारी मिश्रा, उन्नतशील किसान बसंतलाल, पंचायत सदस्य भागवंती, ममता शर्मा, और जानकी देवी ने स्थानीय समुदाय का नेतृत्व किया। इसके साथ ही, नेपाल की महिलाओं और बच्चों ने भी उत्साहपूर्वक इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया, जिसने दोनों देशों के बीच सौहार्द और सहयोग को दर्शाया।
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स्थानीय निवासियों ने इस अभियान को मातृत्व और प्रकृति के सम्मान का एक अनूठा अवसर बताया। एक नेपाली प्रतिभागी ने कहा, “माँ और प्रकृति दोनों ही जीवनदायिनी हैं। इस अभियान ने हमें एकजुट होकर पर्यावरण और अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करने का मौका दिया है।” बच्चों ने भी अपनी माताओं और दादी-नानी के नाम पर पौधे रोपे, जिससे आयोजन में भावनात्मक जुड़ाव और गहरा हो गया।
वन विभाग की भूमिका
कार्यक्रम का नेतृत्व क्षेत्रीय वन अधिकारी अतुल श्रीवास्तव और उप क्षेत्रीय वन अधिकारी विनय कुमार ने किया। उनके साथ वन दरोगा मोहम्मद अरशद, अनंतराम, हरिओम गौतम, विमल कुमार, और वन रक्षक ब्रह्मदेव, रविकांत सहित वन विभाग की पूरी टीम मौजूद रही। वन विभाग ने पौधों की उपलब्धता और रोपण स्थल के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अधिकारियों ने स्थानीय समुदाय को पौधों की देखभाल के लिए जागरूक किया और यह सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया कि रोपे गए पौधे स्वस्थ और दीर्घकालिक रहें।
पर्यावरण और सांस्कृतिक महत्व
बक्शी गांव में आयोजित यह वृक्षारोपण कार्यक्रम भारत-नेपाल सीमा पर पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक एकता का एक शानदार उदाहरण बन गया। रुपईडीहा, जो भारत-नेपाल सीमा पर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र है, इस तरह के आयोजनों से दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग और सौहार्द को बढ़ावा मिलता है। यह अभियान न केवल ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने में सहायक है, बल्कि सामुदायिक एकता और मातृत्व के प्रति सम्मान को भी रेखांकित करता है।
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“एक पेड़ माँ के नाम 2.0” अभियान के तहत देशभर में विभिन्न राज्यों ने व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण किया है। उत्तर प्रदेश ने सितंबर 2024 तक 26.5 करोड़ पौधे लगाकर इस अभियान में अग्रणी भूमिका निभाई है। बक्शी गांव जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में इस तरह के आयोजन स्थानीय समुदायों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करते हैं और सीमाओं के पार साझा जिम्मेदारी का संदेश देते हैं।
सामाजिक प्रभाव और भविष्य की योजनाएं
इस आयोजन ने स्थानीय समुदाय में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाई और सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया। ग्राम प्रधान संगीता देवी ने कहा, “यह अभियान हमें अपनी माताओं और प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी याद दिलाता है। हम भविष्य में भी ऐसे आयोजनों को जारी रखेंगे और रोपे गए पौधों की देखभाल सुनिश्चित करेंगे।” वन विभाग ने भी घोषणा की कि इस तरह के वृक्षारोपण कार्यक्रम भविष्य में नियमित रूप से आयोजित किए जाएंगे, जिसमें स्कूलों, पंचायतों, और अन्य सामुदायिक संगठनों को शामिल किया जाएगा।
प्रशासन और समुदाय की अपील
क्षेत्रीय वन अधिकारी अतुल श्रीवास्तव ने नागरिकों से अपील की कि वे इस अभियान में सक्रिय रूप से भाग लें और अपने स्तर पर पौधे रोपें। उन्होंने कहा, “प्रकृति और माँ का सम्मान करने का यह सबसे सुंदर तरीका है। प्रत्येक पौधा न केवल पर्यावरण को स्वच्छ बनाएगा, बल्कि हमारी भावनाओं को भी जीवित रखेगा।” समाजसेवी मुकुट बिहारी मिश्रा ने भी लोगों से इस अभियान को एक जन आंदोलन बनाने का आह्वान किया।
बक्शी गांव में “एक पेड़ माँ के नाम 2.0” अभियान के तहत आयोजित यह वृक्षारोपण कार्यक्रम पर्यावरण, संस्कृति, और भावनाओं का एक अनूठा संगम बन गया। भारत-नेपाल सीमा पर यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक कदम है, बल्कि दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और सामुदायिक एकता का प्रतीक भी है। यह आयोजन साबित करता है कि जब प्रकृति और मातृत्व का सम्मान एक साथ होता है, तो सीमाएं भी एकजुटता के सामने नतमस्तक हो जाती हैं।