अतुल्य भारत चेतना
रईस
बहराइच। कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग के मुर्तिहा रेंज जंगल में स्थित लक्कड़ शाह बाबा की मजार सहित भंवर शाह, चमन शाह, और शहंशाह की मजारों को वन विभाग ने 8 जून 2025 की देर रात बुलडोजर चलाकर ध्वस्त कर दिया। यह कार्रवाई वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत अतिक्रमण हटाने के लिए की गई, क्योंकि ये मजारें जंगल के संरक्षित कोर क्षेत्र में अवैध रूप से निर्मित थीं। इस कार्रवाई ने स्थानीय मुस्लिम समुदाय में गम और आक्रोश पैदा कर दिया है।
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वन विभाग और प्रशासन की कार्रवाई
कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग के प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) बी. शिवशंकर ने बताया कि मजारों को बेदखली का नोटिस 5 जून 2025 को जारी किया गया था। मजार प्रबंधन समिति ने 1986 का वक्फ बोर्ड पंजीकरण का एक दस्तावेज प्रस्तुत किया, लेकिन वे स्वामित्व या भूमि अधिकार से संबंधित कोई अन्य वैध कागजात पेश नहीं कर सके। डीएफओ ने बताया कि वन क्षेत्र में गैर-वानिकी उद्देश्य के लिए कोई निर्माण बिना भारत सरकार की अनुमति के गैरकानूनी है। इस आधार पर, रविवार देर रात सात बुलडोजरों की मदद से मजारों को ध्वस्त किया गया, और मलबे को तत्काल हटाने का कार्य शुरू कर दिया गया।

कार्रवाई के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारी संख्या में पुलिस, पीएसी, स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स, और सशस्त्र सीमा बल तैनात किए गए थे। मोतीपुर, हसुलिया, बेलछा, और बिछिया वन बैरियर पर आवागमन पूरी तरह रोक दिया गया था। जंगल क्षेत्र में आम लोगों और मीडिया के प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगाया गया, जिसे वन विभाग ने मानव-वन्यजीव संघर्ष की संभावना के मद्देनजर जरूरी बताया।
मुस्लिम समुदाय में आक्रोश
लक्कड़ शाह बाबा की मजार, जिसे ‘बड़ी दरगाह’ के नाम से भी जाना जाता है, 16वीं सदी से हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक रही है। मजार प्रबंधन समिति के अध्यक्ष रईस अहमद और सचिव इसरार ने कार्रवाई को एकतरफा और असंवैधानिक बताते हुए विरोध जताया। रईस अहमद ने कहा, “यह मजार सदियों से दोनों समुदायों के लिए आस्था का केंद्र रही है, जहां 40% मुस्लिम और 60% हिंदू श्रद्धालु आते हैं। बिना उचित सूचना और पर्याप्त समय दिए रात के अंधेरे में बुलडोजर चलाना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है।” उन्होंने इस कार्रवाई के खिलाफ हाई कोर्ट में जाने की बात कही।
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पृष्ठभूमि और विवाद
लक्कड़ शाह बाबा की मजार पर हर साल ज्येष्ठ माह में आयोजित होने वाला एकदिवसीय उर्स मेला पिछले चार वर्षों से प्रतिबंधित था, क्योंकि यह जंगल के कोर क्षेत्र में पड़ता है, जहां टाइगर, लेपर्ड, और अन्य वन्यजीवों का निवास है। वन विभाग ने इसे मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए आवश्यक बताया था। मजार प्रबंधन समिति ने इसे वक्फ संपत्ति बताकर दावा किया था, लेकिन सुनवाई में उनके तर्क खारिज हो गए। डीएफओ के अनुसार, मजार कमेटी को कागजात पेश करने के लिए 9 मई और 14 मई की तारीख दी गई थी, लेकिन वे कोई ठोस सबूत नहीं दे सके, जिसके बाद 5 जून को बेदखली का आदेश जारी किया गया।
सामाजिक प्रभाव
यह कार्रवाई बहराइच में एक संवेदनशील मुद्दा बन गई है। स्थानीय समुदाय और सामाजिक संगठनों ने इसे धार्मिक भावनाओं पर प्रहार बताया है, जबकि प्रशासन का कहना है कि यह कार्रवाई केवल वन संरक्षण और कानूनी प्रक्रिया के तहत की गई। कई संगठनों ने निष्पक्ष जांच और मुआवजे की मांग की है। क्षेत्र में तनाव को देखते हुए प्रशासन ने अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया है और हालात पर कड़ी नजर रखी जा रही है।
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आगे की राह
मजार प्रबंधन समिति ने इस कार्रवाई को हाई कोर्ट में चुनौती देने का ऐलान किया है। यह घटना न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि धार्मिक और पर्यावरणीय नीतियों के संदर्भ में भी व्यापक चर्चा का विषय बन सकती है। यह कार्रवाई वन संरक्षण और धार्मिक स्थलों के प्रबंधन के बीच संतुलन की चुनौती को रेखांकित करती है।